बीती रात अमेरिका के कनेक्टिकट राज्य से एक ऐसी खबर आई है जिसने हर किसी को झकझोर कर रख दिया है. एक सनकी हमलावर ने बच्चो के स्कूल में मौत और तबाही की ऐसी विनाशलीला दिखाई जिसमे 28 बेगुनाहों की मौत हो चुकी है, जिसमे ज्यादातर छोटे-छोटे स्कूली बच्चें हैं. हमलावर की भी मौत हो चुकी है लेकिन पूरे इलाके में दहशत है.
स्कूल में हई गोलीबारी ने अमेरिकी राष्ट्पति बराक ओबामा को भी हिला कर रख दिया. ह्वाइट हाउस में पत्रकारों से बात करते हुए अमेरिका के राष्ट्रपति रो पड़े.
अमेरिका के राष्ट्रपति के शब्द से कही ज्यादा उनकी कांपती जुबान बोल रही थी. उनकी आवाज तो संभली हुई, दबी हुई, बुझी हुई सी थी लेकिन उनका चेहरा चिल्ला-चिल्ला कर बोल रहा था. आंखो के रास्ते टपक रहे दर्द को वो बार-बार हाथों से संभालने की नाकाम कोशिश कर रहे थे. चार मिनट के अपने इस संबोधन में ओबामा ने सात बार आंसू पोछे और तीन बार कहा कि आज मेरा दिल टूट गया है.
बराक ओबामा की बेबसी की वजह भी है. ये कोई आतंकी घटना नहीं थी. ये कोई नस्लवाली हिंसा भी नहीं थी. ये एक सनकी का पागलपन था, जो अचानक इंसान से शैतान बन बैठा, जो मौत का सामान ने लेकर मासूमों के स्कूल पहुचा, अंधाधुंध फायरिंग कर दी और खुद को भी गोली मार ली.
सवाल सबसे बड़ा ये है कि आखिर एक ऐसा समाज जो सबसे सभ्य होने का दम भरता है, जहां का समाज अपने लोगों को सबसे ज्यादा मौके देने का दावा करता है. वहां इस तरह का पागलपन बार-बार सामने क्यो आ रहा है. कभी स्कूल में गोली बारी, कभी मॉल में फायरिंग तो कभी गुरुद्वारे में कत्लेआम. गुरुद्वारा गोलीकांड में 7 लोगों की मौत के बाद राष्ट्रपति ओबामा ने शायद सच ही कहा था कि ये अमेरिका के लिए आत्ममंथन का वक्त है.