पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश उमर अता बांदियाल ने रविवार को कहा कि उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश संविधान का पालन करने के लिए बाध्य हैं और उन्हें विधानसभा भंग होने के 90 दिनों के भीतर चुनाव कराने के प्रावधान को लागू करते समय अपनी आंखें नहीं झपकानी चाहिए. लाहौर में अल्पसंख्यक अधिकारों पर एक सम्मेलन में बोलते हुए, मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि उन्हें उम्मीद थी कि, देश के नेता, संस्थान और लोग सभी संविधान के प्रति प्रतिबद्ध थे.
नजदीक आ रही है चुनाव की तारीख
उन्होंने कहा, “जब संवैधानिक प्रावधान लागू करने की बात आती है तो हमें अपनी आंखें बंद करनी नहीं चाहिए. अगर यह चुनाव कराने के लिए 90 दिन का समय होने की बात कहता है, तो इस बारे में बताना हमारा कर्तव्य है, हमारी पसंद नहीं. हमें ऐसा कहने से बचने के बहाने नहीं खोजने चाहिए.” उनका यह बयान ऐसे समय में आया है जब शीर्ष अदालत द्वारा पंजाब प्रांत में चुनाव कराने की निर्धारित समयसीमा 14 मई नजदीक आ रही है जबकि देश के निर्वाचन आयोग और सरकार ने चुनाव आयोजित करने में असमर्थता दिखाई है.
क्या सरकार को अवमानना का जिम्मेदार ठहराएगी सरकार?
आशंका है कि अदालत सरकार या किसी व्यक्ति को आदेशों का उल्लंघन करने के लिए अवमानना का जिम्मेदार ठहरा सकती है, जिसके परिणामस्वरूप जिम्मेदार व्यक्ति (व्यक्तियों) को अयोग्य करार दिया जा सकता है. प्रधान न्यायाधीश ने इस बात को खारिज किया कि चुनाव कराने का शीर्ष अदालत का चार अप्रैल का फैसला विवादास्पद है. उन्होंने कहा, “अगर आप कानून और संविधान के लिए खड़े हैं तो आपको उच्चतम न्यायालय का समर्थन करना चाहिए, न कि किसी व्यक्ति का.
चुनाव ने पाकिस्तान की राजनीति को बांटा
उन्होंने कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट मेरिट पर बोलता है तो उसके फैसले का नैतिक अधिकार होता है. चुनाव के मुद्दे ने पाकिस्तानी राजनीति को बहुत गहरे में जाकर बांट दिया है. क्योंकि गठबंधन सरकार मौजूदा नेशनल असेंबली के 13 अगस्त को अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद एक ही तारीख पर संघीय और प्रांतीय विधानसभाओं के लिए चुनाव कराना चाहती है. पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने देश की मुख्य विपक्षी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए पाकिस्तान चुनाव आयोग (ईसीपी) को 14 मई को पंजाब विधानसभा के आम चुनाव कराने का निर्देश दिया था.
सरकार ने नहीं माना शीर्ष अदालत का आदेश
हालांकि, गठबंधन सरकार ने शीर्ष अदालत के आदेशों को खारिज कर दिया. पिछले हफ्ते बार-बार आगे-पीछे करने के बाद, 20 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने देश के प्रमुख राजनीतिक दलों को अस्थायी राहत दी, उन्हें प्रांतीय और राष्ट्रीय विधानसभाओं के चुनावों की तारीख पर आम सहमति बनाने के लिए 26 अप्रैल तक का समय दिया, ताकि वे पूरे देश में चुनाव एक साथ कराया जा सके. बाद में सरकार और पीटीआई के बीच बातचीत हुई लेकिन बेनतीजा रही.
सरकार और पीटीआई के बीच नहीं बनी बात
सरकार और पीटीआई के बीच बातचीत का जिक्र करते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि शीर्ष अदालत को सूचित किया गया था कि बातचीत अभी पूरी नहीं हुई है. वहीं डॉन अखबार के मुताबिक, बांदियाल ने कहा कि "हमारा इससे कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन कम से कम वे सचेत हैं कि उनका कर्तव्य संविधान का पालन करना है और हम उस प्रयास का समर्थन करने के लिए हैं. अन्यथा हमारा निर्णय है और इसकी अपनी ताकत है. मुख्य न्यायाधीश ने कहा, "इसे आज लागू नहीं किया जा सकता है, लेकिन यह समय की कसौटी पर खरा उतरेगा और कल लागू होगा."
अल्पसंख्यक अधिकारों के बारे में बात करते हुए, उन्होंने कहा कि संविधान धर्म को मानने और सार्वजनिक व्यवस्था और नैतिकता के अधीन धार्मिक संस्थानों के प्रबंधन की स्वतंत्रता का आश्वासन देता है. "हमारा संविधान कहता है कि हर कोई अपने धर्म को मानने के लिए स्वतंत्र है, और सभी नागरिकों को समान अधिकार हैं और फिर भी वर्षों से हमारे अल्पसंख्यकों ने भेदभाव, हाशिए पर और दरकिनार महसूस किया है."