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पाकिस्तान सरकार को मिली लखवी की जमानत आदेश की कॉपी, अपील दायर करने की तैयारी

पाकिस्तान सरकार 2008 के मुंबई आतंकी हमले के मुख्य साजिशकर्ता जकीउर रहमान लखवी की जमानत के आदेश की कॉपी मिल जाने के बाद अब जमानत के फैसले को चुनौती देने की तैयारी कर रही है.

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जकीउर रहमान लखवी
जकीउर रहमान लखवी

पाकिस्तान सरकार 2008 के मुंबई आतंकी हमले के मुख्य साजिशकर्ता जकीउर रहमान लखवी की जमानत के आदेश की कॉपी मिल जाने के बाद अब जमानत के फैसले को चुनौती देने की तैयारी कर रही है.

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26/11 हमले के मामले में मुख्य अभियोजक चौधरी अजहर ने कहा, ‘हमें आतंकरोधी अदालत (इस्लामाबाद) से आखिरकार आदेश की कॉपी मिल गई. हमने इसके खिलाफ अपील तैयार कर ली है और जनवरी के पहले हफ्ते में ऊपरी अदालतों की दो हफ्तों की छुट्टियां खत्म होने के बाद इसे हाई कोर्ट में दायर करेंगे.’ इस्लामाबाद की आतंकरोधी अदालत के न्यायाधीश कौसर अब्बास जैदी ने एक हफ्ते पहले लखवी को जमानत दी थी. सरकार को शुक्रवार को जमानत आदेश की कॉपी मिली.

इससे पहले अभियोजन पक्ष को आदेश की कॉपी मिलने में दिक्कतों का सामना करना पड़ा था, क्योंकि अज्ञात कारणों से न्यायाधीश यह प्रति जारी नहीं कर रहे थे. अजहर ने कहा, ‘अदालत के फैसले को अदालतों की छुट्टियों के दौरान चुनौती नहीं दी जा सकती, क्योंकि यह ‘बहुत जरूरी मामले’ के तहत नहीं आता.

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लखवी को 18 दिसंबर को सबूतों के अभाव में जमानत दे दी गई थी, लेकिन उसे जेल से रिहा नहीं किया जा सका. क्योंकि सरकार ने उसे सार्वजनिक व्यवस्था बहाली के आदेश के तहत और तीन महीने के लिए हिरासत में ले लिया.

डॉन अखबार ने अदालती आदेश के हवाले से लिखा है कि आपराधिक प्रक्रियाओं में अपराध की प्राथमिकी दर्ज कराने में देरी का आरोपी को हमेशा ही लाभ मिलता है. पूर्व डिप्टी अटार्नी जनरल तारिक महमूद जहांगीरी ने डॉन से कहा कि ‘लिमिटेशन एक्ट’ आपराधिक मामलों में लागू नहीं होता और किसी अपराध के कई महीने बाद भी प्राथमिकी दर्ज करायी जा सकती है, हालांकि प्राथमिकी दर्ज कराने में देरी का हमेशा आरोपी को फायदा होता है, अपराध चाहे जो भी हो.

इसके अलावा अभियोजन पक्ष ने इस आरोपी के खिलाफ एक ऐसे अपराध की धारा लगायी है जो लखवी के विरूद्ध प्राथमिकी दर्ज किए जाने के समय फरवरी, 2009 में हुआ ही नहीं था. अखबार के मुताबिक आदेश में कहा गया है कि वर्ष 2011 में इस आरोपी के खिलाफ एटीए (आतंकवाद निरोधक कानून) की संशोधित धारा 6-बी प्राथमिकी में शामिल की गई थी, जिसके अनुसार किसी अन्य देश की सरकार या आबादी या अंतरराष्ट्रीय संगठन के विरूद्ध आतंकी कृत्य और धमकी भी एटीए के तहत आती है.

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अदालती आदेश में कहा गया है कि कमजोर सबूत, संदिग्ध के विरुद्ध गैर प्रासंगिक धाराएं लगाते हुए प्राथमिकी दर्ज करने और कभी न समाप्त होने वाली सुनवाई और सुनी सुनाई बात आरोपी के पक्ष में गई. संघीय जांच एजेंसी ने मुम्बई हमले के एकमात्र जीवित हमलावर अजमल कसाब के इकबालिया बयान के आधार पर फरवरी, 2009 में लखवी को गिरफ्तार करके अदियाला जेल में रखा था. कसाब को उचित कानूनी प्रक्रिया के बाद 21 नवंबर, 2012 को फांसी दे दी गई थी.

25 नवंबर, 2009 को जारी आरोपपत्र के मुताबिक लखवी प्रतिबंधित ‘लश्कर ए तैयबा’ का कथित कमांडर और मुम्बई हमले का साजिशकर्ता है. उस पर विभिन्न केंद्रों पर हथियार का प्रशिक्षण हासिल करने के बाद लश्कर के अन्य आतंकवादियों को ट्रेनिंग देने का आरोप है. उस पर मुम्बई पर हमला करने वाले 10 आतंकवादियों को ट्रेनिंग देने और निर्देश देने का भी आरोप है. इस हमले में 166 लोगों की जान चली गई थी.

हालांकि जमानत मिलने के बाद भी लखवी कानून व्यवस्था बनाए रखने संबंधी कानून एमपीओ के तहत जेल में रखा गया है. लखवी ने एमपीओ के तहत हिरासत में रखे जाने को हाई कोर्ट में चुनौती दे रखी है. अदालती आदेश में कहा गया है कि इस मामले में जिस मुख्य सबूत के आधार पर लखवी को आरोपित किया गया वह अजमल कसाब का बयान है. एटीसी न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा कि लखवी के खिलाफ सबूत सीआईडी के अधिकारियों के बयानों पर आधारित है जो स्पष्ट तौर पर उसकी जमानत नामंजूर करने के लिए नाकाफी है.

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अदालती आदेश में कहा गया है, ‘पांच सीआईडी अधिकारियों के बयान आरोपी याचिकाकर्ता के खिलाफ प्रासंगिक समझे गए. इन अभियोजन गवाहों का अब अदालत में परीक्षण किया गया और उनके बयानों से यह खुलासा हुआ कि उन्होंने सुनी सुनाई बातों के आधार पर आरोपी पर आरोप लगाए.’ न्यायाधीश ने सुनवाई में देरी संबंधी लखवी के वकील की दलीलों का भी हवाला दिया. आदेश में कहा गया है, ‘पिछले छह साल में अभियोजन के 50 गवाहों का अदालत में परीक्षण हुआ और 100 से ज्यादा गवाहों का अभी परीक्षण बाकी है, जिसमें और दस साल लग सकते हैं.’ आतंकवाद निरोधक कानून की धाराओं का उल्लेख करते हुए अदालत ने कहा कि उसे उस समय को ध्यान में रखना होगा जो आरोपी जेल में हिरासत में बिता चुका है और उस समय का भी, जिसके दौरान, यदि जमानत मंजूर नहीं की गई तो वह शायद हिरासत में रहे.

हालांकि न्यायाधीश ने अपने आदेश के अंतिम पैरे में कहा कि उनकी ये टिप्पणियां अंतरिम है और उसका मुकदमे की सुनवाई या उसके भविष्य पर कोई असर नहीं पड़ेगा. लखवी को जमानत दिए जाने के फैसले का भारत ने कड़ी आलोचना की थी और पेशावर में बडी संख्या में बच्चों सहित 148 व्यक्तियों के नरसंहार की घटना के चंद दिनों बाद ही लखवी को जमानत दिए जाने पर आश्चर्य प्रकट किया. मुंबई हमला प्रकरण मे लखवी और छह अन्य अब्दुल वाजिद, मजहर इकबाल, हमद अमीन सादिक, शाहित जमील रियाज, जमील अहमद और यूनिस अंजुम आरोपी हैं.

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