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जिस मसूद अजहर को पाक बता रहा था ‘लापता’, उसने अमेरिका-तालिबान डील पर जताई खुशी

फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) के हाल में हुए सत्र से पहले पाकिस्तान ने अजहर को ‘लापता’ घोषित कर रखा था. लेकिन अब अजहर ने अज्ञातवास से बाहर आकर बयान जारी किया है. जिस दिन अमेरिका और तालिबान के बीच डील हुई, उसी दिन अजहर ने तालिबान की पूर्व और मौजूदा लीडरशिप और उसके लड़ाकों को बधाई देते हुए बयान जारी किया.

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मसूद अजहर ने खादिम नाम से बयान जारी किया (फाइल फोटो)
मसूद अजहर ने खादिम नाम से बयान जारी किया (फाइल फोटो)

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  • जैश सरगना अजहर ने अमेरिका को बताया भेड़िया
  • कहा- भेड़िए की पूंछ कट चुकी है, दांत किटकिटा रहे

भारत के लिए ‘मोस्ट वांटेड’ आतंकवादी मौलाना मसूद अजहर ने पाकिस्तान और तालिबान के बीच शांति समझौते का स्वागत किया है. ‘फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) के हाल में हुए सत्र से पहले पाकिस्तान ने अजहर को ‘लापता’ घोषित कर रखा था. लेकिन अब अजहर ने अज्ञातवास से बाहर आकर बयान जारी किया है. जिस दिन अमेरिका और तालिबान के बीच डील हुई, उसी दिन अजहर ने तालिबान की पूर्व और मौजूदा लीडरशिप और उसके लड़ाकों को बधाई देते हुए बयान जारी किया.

जैश-ए-मोहम्मद के सरगना अजहर के उपनाम ‘खादिम’ के नाम से जारी बयान को जैश से जुड़े टेलीग्राम चैनल ने पढ़ कर सुनाया. बयान में कहा गया है- “शहीदों को बधाई, मुजाहिदीन, गाजियों, हजरत शेख हक्कानी को बधाई, अल्लाह के बेटे हक्कानी को बधाई.” बता दें कि इस्लामी कट्टरपंथी राजनीतिक और सैनिक संगठन और अमेरिका के बीच शांति समझौते पर शनिवार को दोहा में दस्तखत हुए.

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अजहर को पिछले साल संयुक्त राष्ट्र की ISIL (दाएश) और अल कायदा पर प्रतिबंधों वाली सूची में शामिल किया गया था. अजहर ने अफगानिस्तान पर अमेरिकी नीति का अपने बयान में मखौल उड़ाते हुए कहा, ‘एक दिन था जब अमेरिका भेडिए की तरह अफगानिस्तान में घूम रहा था. आज दोहा, कतर में वो दिन है, जब भरोसा ऊंचा है, जेहाद ऊंचा है, उम्मीदें मुस्कुरा रही हैं, भेड़िए की पूंछ कट चुकी है और दांत किटकिटा रहे हैं.” बता दें कि पाकिस्तान के आर्थिक मामलों के मंत्री हम्माद अजहर ने पहले कहा था कि मसूद अजहर देश से ‘लापता’ है.

क्या है मसूद अजहर की पाक के लिए अहमियत

पाकिस्तान ने हाल में संयुक्त राष्ट्र की ओर से घोषित एक और आतंकवादी हाफिज सईद को टेरर फंडिंग केस में गिरफ्तार किया था. तब ये सवाल उठे थे कि अजहर को पाकिस्तान की ओर से क्यों छूट दी गई. इंटेलिजेंस सूत्रों का मानना है कि अजहर की तालिबान से करीबी उसे पाकिस्तान सरकार और सेना लीडरशिप से सौदेबाजी का मौका देती है. ताजा घटनाक्रम से अवगत इंटेलिजेंस सूत्र ने इंडिया टुडे को बताया,“पाकिस्तान अफगानिस्तान में अहम भूमिका निभाना चाहता है. और ऐसा कोई शख्स जिसकी तालिबान से नजदीकी है, वो संसाधन ही माना जाएगा.”

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इतिहास पर नजर डालें तो अजहर की तालिबान लीडरशिप के साथ मजबूत बॉन्डिंग रही है. तालिबान ने ही 1999 कंधार इंडियन एयरलाइंस विमान हाईजैक कांड के बाद मसूद अजहर की भारतीय जेल से रिहाई में अहम भूमिका निभाई थी. उस वक्त वहां तालिबान सरकार के विदेश मंत्री रहे मुल्ला अख्तर मोहम्मद मंसूर के साथ नजदीकी संबंधों को लेकर अजहर अक्सर शेखी बघारता रहा है. कंधार कांड के बाद पाकिस्तान लौटने से पहले अजहर कई महीनों तक अफगानिस्तान में रहा था. तालिबान ने ही अजहर को तब नया आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद खड़ा करने में मदद की थी.

अमेरिका-तालिबान डील में हैं कुछ गुप्त शर्तें

दोहा में अमेरिका-तालिबान डील के बाद अमेरिका के एक वरिष्ठ अधिकारी ने डील में कुछ गुप्त शर्तें होने की पुष्टि भी की. हालांकि अधिकारी ने साफ किया कि इन शर्तों का अमेरिका की ओर से की गई प्रतिबद्धताओं से कोई लेना-देना नहीं है. साफ है कि ये शर्तें अन्य पक्ष या पक्षों के वादों से जुड़ी हैं.

वॉशिंगटन में अमेरिकी प्रशासन से जुड़े एक अधिकारी ने मीडिया से कहा, “तो समझौते में ऐसे कुछ हिस्से हैं जो सार्वजनिक नहीं किए जा रहे हैं. लेकिन इन हिस्सों में अमेरिका की ओर से किया गया कोई अलग वादा शामिल नहीं है और न ही उसका ऐसा कोई इरादा है. जो कुछ है उसमें डील के अमल और सत्यापन के लिए कुछ गुप्त प्रक्रियाएं शामिल हैं.” उसी अधिकारी ने बाद में कहा, “समझौते के अमल पर आगे बढ़ने के लिए हमें पाकिस्तान की कोशिशों और समर्थन की आगे भी आवश्यकता होगी.”

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जब अधिकारी से सवाल किया गया कि क्या ट्रंप प्रशासन पाकिस्तान में आतंकवाद की पनाहगाहों को लेकर चिंतित नहीं है, तो उसने कहा, “हमारी पाकिस्तान से बहुत अच्छी बातचीत हुई है, और हम चाहते हैं कि समझौते पर अमल के लिए हमारी मदद करने में पाकिस्तान रचनात्मक भूमिका निभाता रहेगा.”

अधिकारी ने पाकिस्तान की भूमिका को उसे सैन्य मदद को लेकर अमेरिकी रुख में आए बदलाव से जोड़ा. अधिकारी ने कहा, “पाकिस्तान को सैन्य मदद में कटौती का फैसला राष्ट्रपति ट्रंप का था और अगर वो (पाकिस्तान) अमेरिका से अच्छा रिश्ता चाहते हैं तो उन्हें अफगानिस्तान की समस्या को सुलझाने के लिए हमारी मदद करनी होगी.”

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