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पाकिस्तान की अदालत का अजीब फैसला, पिता की विरासत में गैर-मुस्लिम बेटे का हक किया खारिज

लाहौर हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि किसी मुस्लिम रिश्तेदार की संपत्ति में गैर-मुस्लिम वारिस को कोई हिस्सा विरासत में नहीं मिल सकता. कोर्ट ने कहा कि एक मुस्लिम की विरासत में किसी गैर-मुस्लिम को हक नहीं दिया जा सकता. शख्स अहमदी समुदाय से था, जिन्हें पाकिस्तान में गैर-मुस्लिम माना जाता है.

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कोर्ट (प्रतीकात्मक तस्वीर)
कोर्ट (प्रतीकात्मक तस्वीर)

पाकिस्तान में लाहौर हाई कोर्ट ने एक अजीब फैसला सुनाया है. यहां एक अहमदी मुस्लिम समुदाय के शख्स को सिर्फ इसलिए पिता की प्रॉपर्टी में हिस्सा नहीं मिला, क्योंकि वह अहमदी है. शख्स का पिता मुस्लिम था, और उसके मरने के बाद प्रॉपर्टी उसके तीन बेटों और दो बेटियों में विभाजित किया गया था.

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अब मामला यहां तक पहुंच गया कि उसका एक पोता अपने एक चाचा के खिलाफ कोर्ट पहुंच गया, जिसके बारे में उसने दावा किया कि वह अहमदी हैं और मुस्लिम नहीं - इसलिए पिता कि प्रॉपर्टी में उनका हक नहीं बनता. लाहौर हाईकोर्ट ने भी यह बात स्वीकार कर ली, और पोते के हक में फैसला सुना दिया.

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मरने के बाद बेटे-बेटियों में बांटी गई संपत्ति

लाहौर हाईकोर्ट के चौधरी मुहम्मद इकबाल ने यह फैसला उस मामले में दिया, जिसमें तोबा टेक सिंह जिले के गोजरा तहसील की 83 कनाल भूमि के उत्तराधिकार का मुद्दा था. यह जमीन एक मुस्लिम की थी, जिसकी मृत्यु के बाद संपत्ति उसके तीन पुत्रों और दो पुत्रियों के बीच विभाजित कर दी गई थी.

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हालांकि, मृतक के एक मुस्लिम पोते ने इस विभाजन को चुनौती दी, क्योंकि उसने दावा किया कि उसका एक चाचा (जिसके पक्ष में विभाजन हुआ था) अहमदी था, जिसकी वजह से मुस्लिम पिता की संपत्ति विरासत में नहीं मिल सकती थी. कोर्ट ने पोते के पक्ष में फैसला सुनाया, जिससे विभाजन को निरस्त किया गया. क्रॉस-परीक्षा के दौरान गैर-मुस्लिम वारिस के एक उत्तराधिकारी ने भी यह गवाही दी कि उसके पिता अहमदी थे.

गैर-मुस्लिम उत्तराधिकारी को विरासत नहीं मिल सकती!

जस्टिस इकबाल ने कहा कि यह एक स्वीकार करने वाली बात है कि शख्स अहमदी था, लेकिन उसने अपने मुस्लिम पिता की विरासत में इस सच्चाई को स्पष्ट नहीं किया. जस्टिस ने कहा कि शरिया के मुताबिक, मृतक मुस्लिम की संपत्ति गैर-मुस्लिम उत्तराधिकारी को विरासत में नहीं मिल सकती.

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जस्टिस ने बताया कि ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में विभिन्न समुदायों के व्यक्तिगत कानून लागू किए गए थे और मुस्लिम पर्सनल लॉ 1937 के अधिनियम के माध्यम से मुसलमानों पर भी लागू किया गया. सुझाव देते हुए कहा कि कुरान और सुन्नत के सिद्धांत मृतक मुस्लिम की संपत्ति की विरासत के लिए लागू होते हैं, जहां मुस्लिम की प्रॉपर्टी गैर-मुस्लिम को विरासत में नहीं मिल सकती.

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