पाकिस्तान इस समय गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. इसमें कोरोना और पॉलिटिकल उठापटक के अलावा कुछ समय पहले आई बाढ़ से हालात और बिगड़े. वर्ल्ड बैंक के मुताबिक फिलहाल 6 से लेकर 9 मिलियन पाकिस्तानी जनता गरीबी रेखा के नीचे जी रही है. दूसरी तरफ पाकिस्तानी सेना लगातार बेहद अमीर होती जा रही है. यहां तक कि इसका देश के कारोबार तक में हिस्सा है.
पूर्व चीफ का परिवार हुआ खरबपति
हाल ही में एक रिपोर्ट आई, जिसके मुताबिक वहां के पूर्व सेना प्रमुख जनरल जावेद बाजवा के करीबी लोगों और परिवार की आमदनी तेजी से बढ़ी. वे नए-नए बिजनेस में आने लगे, यहां तक कि गरीब परिवारवालों के पास भी लाहौल-इस्लामाबाद जैसे शहरों में आलीशान प्रॉपर्टी बन गई. पाकिस्तान के ही कुछ पत्रकारों ने पूरा डेटा देते हुए उन सारे नए बिजनेस और संपत्ति का ब्यौरा दिया, जो बाजवा के 6 साल के कार्यकल में बने. रिपोर्ट की मानें तो इतने ही सालों में जनरल के परिवार ने साढ़े 12 बिलियन से ज्यादा की दौलत बनाई.
जनरल ही नहीं, सेना के लगभग सारे ही आला अफसर अपने कार्यकाल में अरबों-खरबों की दौलत बना चुके. ऐसा कैसे हुआ? ये जानने के लिए इस देश के इतिहास में जाना होगा.
सेना के पास हमेशा से ताकत
14 अगस्त 1947 में अस्तित्व में आने के बाद से पाकिस्तान ने लगभग 34 साल मिलिट्री डिक्टेटरशिप में बिताए. इन तीन दशकों के अलावा भी जब भी इस देश में चुनी हुई सरकार आई, उसके लिए सेना का सपोर्ट जरूरी रहा. मिसाल के तौर पर पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को ही लें तो उनके कार्यकाल में सेना उन्हें और वे सेना को सहयोग करते रहे. सरकार भी तभी गिरी, जब दोनों के बीच मनमुटाव हो गया. इससे साफ है कि पाकिस्तान में सेना का काम सीमाओं की रक्षा ही नहीं, बल्कि आंतरिक राजनीति में दखल देना भी है.
मुनाफा देने वाले बिजनेस में हिस्सेदारी
राजनीति के अलावा पाकिस्तान आर्मी इकनॉमिक तौर पर भी बेहद ताकतवर मानी जाती है. इसके पास इतनी संपत्ति है कि अगर ये बिगड़ जाए तो देश की कमर ही टूट जाएगी. ये बात खुद सेना ने मानी थी. साल 2015 में ही उनके पास 50 से ज्यादा बिजनेस थे, जो कि फौजी फाउंडेशन के कंट्रोल में चल रहे थे. ये पचासों बिजनेस कोई छोटे-मोटे नहीं, बल्कि देश में सबसे ज्यादा मुनाफा देने वाले बिजनेस हैं, जैसे प्रॉपर्टी, स्कूल-यूनिवर्सिटी, डेयरी प्रोडक्ट और तेल का कारोबार.
कारोबार में सेना का क्या काम!
इसके पीछे भी वजह है. आजाद पाकिस्तान में सेना सबसे अहम रही. लोगों पर उसका भारी दबदबा था. इसी मौके का फायदा लेते हुए पाकिस्तान आर्मी ने एक फाउंडेशन डाला, जिसे नाम दिया फौजी फाउंडेशन. इसके तहत बहुत से बिजनेस कब्जे में लिए गए. साथ में दावा ये कि चूंकि सेना ये कारोबार देख रही है तो काम ज्यादा ईमानदारी से होगा. इसके अलावा आर्मी वेलफेयर ट्रस्ट और डिफेंस हाउसिंग अथॉरिटी भी हैं, जो अलग-अलग व्यावसायों पर कब्जा किए हुए हैं.
सोने की माइन्स पर भी नजर
इन कंपनियों की वेबसाइट पर जाएं तो पाएंगे कि बिजनेस शेयर होल्डर्स सेना की अपनी पोशाक में ही शान से मीटिंग ले रहे हैं. आज पाकिस्तान की सेना बिस्किट से लेकर घर और दूध-तेल तक चैरिटी के नाम पर बेच रही है. दो साल पहले खबर आई थी कि बलूचिस्तान में सोने की खदानों को भी सेना अपने कब्जे में लेने जा रही थी. इसके बाद बलूच लोगों का गुस्सा भड़का था और जहां-तहां विस्फोट होने लगे. फिलहाल इस मामले में कोई अपडेट नहीं मिल रहा.
प्रॉफिट के मामले में पारदर्शी नहीं
साल 2007 में नेवल फोर्स के साथ रिसर्च का काम कर चुकी डॉक्टर आयशा सिद्दिकी ने दावा किया था कि सेना का कुल प्रॉफिट 20 बिलियन डॉलर से ज्यादा है. ये आज से लगभग 17 साल पुरानी बात है. इसके बाद संसद में एक सवाल के जवाब में साल 2015 में सेना ने माना कि उनका नेट वर्थ 20 बिलियन डॉलर है. इतने सालों के फर्क के बाद भी आंकड़ा उतना का उतना ही रहा. डेटा देने वाली डॉक्टर ने सेना के झोल पर एक किताब भी लिखी.
'मिलिट्री इन्क- इनसाइड पाकिस्तान मिलिट्री इकनॉमी' नाम से आई किताब तुरंत ही बैन हो गई. इसकी कॉपियां बाजार से हटवा दी गईं. यहां तक कि लेखिका को कथित तौर पर जान से मारने की धमकियां मिलने लगी थीं.
सैन्य बजट में कोई कमी नहीं
कुल मिलाकर पड़ोसी देश की सेना कॉर्पोरेट आर्मी बन चुकी, जो पहले बिजनेस देखेगी, बाद में कुछ और. इतने पैसों के बाद भी वो हर बार अपना मिलिट्री बजट बढ़ाने की बात करती है, वो भी तब जबकि देश की बड़ी आबादी गरीबी में जी रही है. यहां तक कि साल 2019 में वर्ल्ड बैंक तक ने इस देश को अपना सैन्य बजट संतुलित करने की सलाह दे दी थी.