बचपन से जन्नत में क्रिकेट खेलने और बंदूक चलाने की ख्वाहिश रखने वाले इमरान खान अब पाकिस्तान के अगले प्रधानमंत्री बनेंगे. बुधवार को पाकिस्तान में हुए आम चुनाव में इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी सबसे बड़े राजनीतिक दल के रूप में उभरी है. क्रिकेट के मैदान से निकलकर अस्पताल के गलियारे से राजनीति में उतरे इमरान खान ने चुनाव से पहले जनता के सामने अपने 'नए पाकिस्तान' की जो तस्वीर रखी थी, उस पर अब चर्चा शुरू हो गई है.
खासकर कश्मीर, आतंकवाद और भारत के मुद्दे पर इमरान खान की राय काफी अहम है. वो कई बार भारत के खिलाफ बोलते नजर आते हैं, तो कई बार अपने मुल्क से आतंकवाद को खत्म करने और भारत से दोस्ती करने की बात करते हैं.
इमरान खान अपनी जीवनी ‘पाकिस्तान: अ पर्सनल हिस्ट्री’ में भी अपने सपनों के पाकिस्तान की तस्वीर खींची है. इसमें वो अपनी इस्लामिक पहचान और आध्यात्मिक संसार का भी जिक्र किया है. आइए कश्मीर, आतंकवाद, लोकतंत्र और भारत समेत तमाम मुद्दों पर इमरान खान की राय जानते हैं....
पाकिस्तान से आतंकवाद का खात्मा करने के पक्षधर
इमरान खान ने सात दिसंबर 2012 को एजेंडा आजतक कार्यक्रम में हिस्सा लिया था, जिसमें उन्होंने पिछले चुनाव को लेकर वादा किया था कि अगर उनकी सरकार बनती है, तो 90 दिन के अंदर पाकिस्तान से आतंकवाद का खात्मा कर दिया जाएगा. नए पाकिस्तान में दहशतगर्दी के लिए कोई जगह नहीं होगी. भारत के खिलाफ आतंकवाद के लिए पाकिस्तान की जमीन का इस्तेमाल नहीं करने दिया जाएगा.
उन्होंने यह भी वादा किया था कि उनकी सरकार बनने के बाद मुंबई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद को भारत के खिलाफ जहर नहीं उगलने दिया जाएगा. मालूम हो कि भारत और पाकिस्तान के बीच आतंकवाद बड़ा मुद्दा है. सीमा पार से भारत में घुसपैठ के चलते दोनों देशों के रिश्ते सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं. अगर इमरान खान आतंकवाद के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई करने में सफल रहते हैं, तो निश्चित रूप से यह दोनों मुल्कों के हित में होगा.
दिलचस्प बात यह है कि इमरान खान कई मुद्दों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ भी करते रहे हैं. एक बार उन्होंने जब पीएम मोदी से मुलाकात की थी, तो उनकी काफी तारीफ की थी और उनसे काफी प्रभावित दिख रहे थे.
कश्मीर मसले को सुलझाने की वकालत
इमरान खान का मानना है कि कश्मीर मसले को दोनों देश बैक चैनल के जरिए सुलझा सकते हैं और अब इसका वक्त आ चुका है. ऐसा करना दोनों देशों के लिए हित में भी है.
साल 2012 में आजतक के एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा था, 'भारत और पाकिस्तान मिलकर कश्मीर समेत सभी आपसी विवादित मुद्दे सुलझा सकते हैं. हालांकि जहां पर आज हिंदुस्तान और पाकिस्तान खड़े हैं. इसको देखते हुए यह कहना कि हम अपने ये मसले आसानी से हल कर लेंगे, गलत है. लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि अगर मेरी पार्टी की सरकार बनती है, तो हम इन मसलों को हल कर लेंगे.'
उन्होंने तीन पूर्व विदेश मंत्रियों के हवाले से यह भी दावा किया था कि बैक चैनल के जरिए कश्मीर का मसला कई बार सुलझने के करीब आ चुका था, लेकिन किसी कारणवश नहीं हो सका. उन्होंने कहा था कि हम समझते हैं कि यह मसला हल हो सकता है. इस दौरान उन्होंने यह भी वादा किया था कि उनकी सरकार बनने के बाद दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली के लिए कदम उठाया जाएगा.
इस्लाम पर टिका लोकतंत्र चाहते हैं इमरान खान
इमरान खान की कल्पना में एक ऐसा लोकतंत्र है, जिसकी बुनियाद इस्लाम पर टिकी है या फिर एक ऐसा लोकतंत्र जिसके शीर्ष पर इस्लाम का परचम लहरा रहा हो. लेकिन इमरान अपने इस इस्लामी लोकतंत्र को परिभाषित कर पाने में असफल रहे हैं. इस्लाम और लोकतंत्र दो अलग चीजें हैं. इस्लाम जहां खिलाफत के जरिए हुकूमत की बात करता है, तो वहीं लोकतंत्र में जनता द्वारा चुनी हुई सरकार का शासन होता है.
इसमें अपने प्रतिनिधियों को चुनने की आजादी, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, आलोचना करने, अपने तरीके से जीने, खाने-पीने और पहनने की आजादी होती है, जबकि इस्लाम कहता है कि आप तयशुदा तरीके से जीवन जिएं.
ऐसे में इमरान की इस्लामी लोकतंत्र की कल्पना समझ से परे है. शायद पाकिस्तान के लंगड़े लोकतंत्र के पीछे एक बड़ा कारण यह भी है, क्योंकि इमरान से पहले पाकिस्तानी शासकों ने इस्लामी लोकतंत्र के ख्वाबगाह को जमीन पर उतारने की कोशिश की थी. हालांकि इमरान खान अपने देश की राजनीति के बिगड़े स्वरूप को सुधारना चाहते हैं.
तालिबान से बातचीत का समर्थन
पाकिस्तान में इमरान खान को तालिबान समर्थक के तौर पर जाना जाता है. हालांकि इसके लिए वो पाकिस्तान की अंग्रेजी मीडिया को जिम्मेदार ठहराते है. अपना और अपने देश का इतिहास लिखते हुए इमरान जब तालिबान और अलकायदा के बारे में बताते है, तो उनके शब्दों के चयन से स्पष्ट समझ में आता है कि तालिबान के प्रति इमरान का झुकाव है.
सोवियत संघ के खिलाफ कबाय़ली लड़ाकों को अमेरिका द्वारा प्रशिक्षण दिया जाना और फिर दशक भर बाद इन्हीं लड़ाकों को दुनिया के लिए खतरनाक बताते हुए युद्ध छेड़ देना या फिर 9/11 के बाद पूरी दनिया में मुसलमानों के खिलाफ अमेरिका के युद्ध छेड़ने की अप्रत्यक्ष मुहिम की इमरान खान खुलकर मुखालफत करते रहे हैं. इसके अलावा अमेरिका की साम्राज्यवादी नीतियों के सामने पाकिस्तान का घुटने टेक देना इमरान को रास नहीं आता है.
अल्लाह, आर्मी और अमेरिका के साथ सत्ता का गठजोड़
इमरान खान का मानना है कि पाकिस्तान में वही राज कर सकता है, जिसके साथ 3A यानी अल्लाह, आर्मी और अमेरिका हों. हालांकि इमरान खान जिस लोकतंत्र का ख्वाब देखते हैं, उसमें सेना की भूमिका सीमा पर है. वो पाकिस्तान में अमेरिका के दखल के भी खिलाफ हैं. इस बार के चुनाव में सेना ने इमरान खान का खुलकर समर्थन किया और उनको जीत मिली. साल 1996 में गठित राजनीतिक पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ को कई परेशानियों का सामना करना पडा, जिसके केंद्र में इमरान रहे. साल 2002 के चुनाव में पहली बार उनकी पार्टी को एक सीट पर जीत मिली.
इस्लाम और कबायली मूल्यों को ज्यादा तवज्जो
इमरान खान पश्चिमी संस्थाओं और उनके सेकुलरिज्म की बात करते है, लेकिन अपनी परंपराओं और सामाजिक ढांचे को सर्वश्रेष्ठ बताते हैं. वो पश्चिमी जीवन शैली के आलोचक भी हैं.
जिंदगी के शुरूआती साल पश्चिम में गुजारने वाले इमरान खान वहां की राजनीतिक व्यवस्था से प्रभावित हैं, लेकिन क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद से उनमें इस्लाम, कबायली मूल्यों और पहनावों के प्रति ज्यादा लगाव पैदा हो गया.
दुनिया भर में एक चीज देखने में आती है कि अगर व्यक्ति अपनी संस्कृति और मूल्यों के प्रति दृढता का भाव रखता है, तो उसे अपने ही देश में दक्षिणपंथी करार दे दिया जाता है. पाकिस्तान की अंग्रेजी मीडिया द्वारा इमरान को तालिबान समर्थक के रूप में पेश किए जाने के पीछे यह भी एक कारण हो सकता है.
राजनीति के साथ रोमांस
राजनीति के साथ इमरान खान का रोमांस रोचक है. हाल ही में उन्होंने खुद से काफी छोटी पाकिस्तानी पत्रकार रेहम खान से शादी की थी. हालांकि उनकी यह शादी ज्यादा दिन नहीं चली और रिश्ता टूट गया. दोनों में तलाक हो गया. इसके बाद इमरान खान ने तीसरी शादी कर ली. पाकिस्तान में उनके रोमांस की काफी चर्चा रहती है.