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इस तिकड़ी की पसंद हैं इमरान खान, जनता तो नवाज के बाद PAK में किसी के साथ नहीं?

अगर नवाज शरीफ का गेमप्लान कामयाब नहीं रहा तो पाकिस्तान की सियासी तस्वीर कैसी होगी? क्या वाकई नवाज शरीफ के बगैर पाकिस्तान मुस्लिम लीग का कोई भविष्य रह जाएगा?

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इमरान खान
इमरान खान

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अगर नवाज शरीफ का गेमप्लान कामयाब नहीं रहा तो पाकिस्तान की सियासी तस्वीर कैसी होगी? क्या वाकई नवाज शरीफ के बगैर पाकिस्तान मुस्लिम लीग का कोई भविष्य रह जाएगा? क्या इस हालत में इमरान खान असली विजेता बनकर उभरेंगे और उनका पीएम बनने का सपना पूरा होगा?

दरअसल, जरा सोचिये अगर नवाज शरीफ को मनी लॉन्ड्रिंग केस में पूरे दस साल जेल में रहना पड़ा तो क्या होगा? एक दशक का मतलब साल 2028 यानी तब शरीफ जब आजाद होंगे तो वो 78 साल के हो चुके रहेंगे, और उम्र के इस पड़ाव पर दस साल में राजनीति की नदी में बहुत पानी बह जाता है.

अगर ऐसा हुआ तो शरीफ के लिए तो ये बड़ा झटका होगा ही पाकिस्तान की सियासत भी मुश्किल दौर में पहुंच जाएगी. भारत का पड़ोसी मुल्क बगैर कद्दावर नेतृत्व का नजर आएगा. क्या नवाज के बिना पाकिस्तान की राजनीति सबसे कमजोर दौर में पहुंच जाएगी?

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जरा पाकिस्तान के सियासी हालात पर गौर कीजिए. पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के अध्यक्ष आसिफ अली जरदारी की जनता में पकड़ नहीं है. शाहबाज शरीफ नवाज शरीफ की छाया से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं. शाहिद खाकान अब्बासी ने कभी खुद को प्रधानमंत्री माना ही नहीं, तो घूम फिरकर नजर इमरान खान पर टिकती है. याद कीजिए पाकिस्तान की सड़कों पर उतरा वो जनसैलाब, भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़े हुए उस आंदोलन को पाकिस्तान का अन्ना आंदोलन कहा जा रहा था और इमरान खान को जनता ने सिर आंखों पर बैठा लिया था.  

नवाज शरीफ ने बहुत मुश्किल से उस आंदोलन से अपना पीछा छुड़ाया था. लेकिन सवाल है कि क्या इमरान खान की विश्वसनीयता आज भी वैसी ही बची हुई है. जनता में न भी बची हो तो इमरान को पाकिस्तान की सेना पसंद करती है.

आईएसआई को इमरान के नाम पर ऐतराज नहीं होगा, बचे कट्टरपंथी तो इमरान उन्हें लेकर कभी सख्त नहीं रहे. ये वो तिकड़ी है जिसके बिना पाकिस्तान में कोई भी सत्ता परिवर्तन नहीं हो सकता. इसे अपनी तरफ मोड़ने के लिए जनता की जिस ताकत की दरकार होती है वो नवाज के बाद पाकिस्तान में किसी की नहीं.

एक आशंका ये भी है कि सेना इस राजनीति का फायदा उठाने की न सोच रही हो. जनरल हमेशा ऐसे मौकों की ताक में रहे हैं. अगर ऐसा नहीं भी होता है तो ये तय है कि पाकिस्तान के अगले प्रधानमंत्री को सेना और आईएसआई के इशारे को समझना होगा, और ये स्थिति भारत के लिए अच्छ नहीं होगी. प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा देने के एक हफ्ते पहले शाहिद खाकान अब्बासी ने कहा था कि पाकिस्तान में अगला चुनाव एलिएंस करवाएंगे, तो क्या वो नवाज की गैरमौजूदगी में पाकिस्तान की अस्थिरता की ओर इशारा कर रहे थे.

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