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'हमारे अल्लाह, पैगंबर और कुरान से है नफरत तो वो मुझे क्या पसंद करेंगे?' जब तकनीक चोरी के आरोप पर भड़के थे PAK के परमाणु बम के जनक

पाकिस्तान के परमाणु जनक कहे जाने वाले डॉ. अब्दुल कदीर खान का रविवार को निधन हो गया. 85 साल के खान अपने देश के लिए राष्ट्रीय नायक तो माने ही जाते हैं साथ ही कई विवादों के चलते भी सुर्खियों में रहे हैं.  कदीर खान पर विदेश से परमाणु बम बनाने की तकनीक चुराने के आरोप भी लगे. इसे लेकर एक बार कदीर ने कहा था, मुझे इन सब चीजों से बिल्कुल परेशानी नहीं होती है, वे हमारे अल्लाह को पसंद नहीं करते, हमारे पैगंबर को पसंद नहीं करते, हमारी पवित्र कुरान को भी पसंद नहीं करते हैं तो फिर वे मुझे कैसे पसंद कर सकते हैं.

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अब्दुल कादिर खान फोटो क्रेडिट: रॉयटर्स
अब्दुल कादिर खान फोटो क्रेडिट: रॉयटर्स
स्टोरी हाइलाइट्स
  • पाकिस्तान के परमाणु जनक की लाइफ रही विवादास्पद
  • पूरी दुनिया के सामने परमाणु तकनीक बेचने की बात कबूल चुके थे अब्दुल कादिर खान

पाकिस्तान के परमाणु बम के जनक कहे जाने वाले डॉ. अब्दुल कदीर खान का रविवार को निधन हो गया. 85 साल के परमाणु वैज्ञानिक खान पाकिस्तान के नेशनल हीरो तो माने ही जाते हैं, साथ ही कई विवादों के चलते भी सुर्खियों में रहे थे.  80 और 90 के दशक में उन्हें पाकिस्तान के सबसे पावरफुल लोगों की श्रेणी में भी शुमार किया जाता था. वहीं, अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए के पूर्व डायरेक्टर जॉर्ज टेनेट ने उन्हें ओसामा बिन लादेन जितना खतरनाक व्यक्ति बताया था. 

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डॉक्टर अब्दुल कदीर खान का जन्म साल 1935 में भोपाल में हुआ था. वे विभाजन के चार साल बाद अपने परिवार समेत पाकिस्तान बस गए थे. उन्होंने साल 1960 में कराची यूनिवर्सिटी से मेटालर्जी यानी धातु विज्ञान की पढ़ाई की थी. इसके बाद उन्होंने नीदरलैंड्स से मेटालर्जी में मास्टर्स डिग्री हासिल की थी. डॉ. अब्दुल कदीर खान ने साल 1972 में बेल्जियम की कैथोलिक यूनिवर्सिटी से मेटालर्जिकल इंजीनियरिंग में डॉक्टरेट हासिल की. 

अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद कदीर खान ने एमस्टरडैम में फिजिकल डायनेमिक्स रिसर्च लेबोरेटरी से अपने करियर की शुरुआत की. 1974 में जब भारत ने अपना पहला परमाणु परीक्षण किया, तो उस वक्त डॉक्टर अब्दुल खान नीदरलैंड की इसी लैब में काम कर रहे थे. अमेरिकी पत्रिका फॉरेन अफेयर्स में साल 2018 में छपे एक आर्टिकल के मुताबिक, 'इस घटना ने डॉ खान के भीतर छिपे राष्ट्रवाद की भावना को प्रबल किया था और वे पड़ोसी मुल्क की बराबरी करने की कोशिश करने लगे.' 

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'शॉपिंग फॉर बॉम्ब्स: न्यूक्लियर प्रोलिफरेशन, ग्लोबल इन्सेक्योरिटी ऐंड द राइज ऐंड फॉल ऑफ द एक्यू खान नेटवर्क' के लेखक गॉर्डन कोरिया के मुताबिक, "यह सच बात है कि अब्दुल कादिर के मन में परमाणु बम बनाने के जज्बे के पीछे भारत ही सबसे बड़ी वजह था. जब अब्दुल ने 16 दिसंबर 1971 में ढाका में पाकिस्तानी सेना को भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण करते हुए देखा तो उसने ठान लिया कि वह अब दोबारा ऐसा नहीं होने देगा. वह उस वक्त यूरोप में थे और मेटालरजिस्ट के तौर पर प्रशिक्षित हो चुके थे. अब्दुल कादिर को लगा कि शायद वह पाकिस्तान की मदद कर सकते हैं और उन्होंने जुल्फिकार अली भुट्टो के सामने मदद की पेशकश रख दी."

भारत से मुकाबले के लिए बनाया परमाणु बम

द गार्डियन की रिपोर्ट के अनुसार, बेनजीर भुट्टो के पिता और पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने 1972 में वैज्ञानिकों और जनरलों के साथ एक गुप्त बैठक में कहा था कि आप सभी लोग इस बम को मेरे लिए और पाकिस्तान के लिए बनाएंगे. भुट्टो का मकसद भारत के परमाणु कार्यक्रम का मुकाबला करना था. इस पूरे मिशन के दौरान जुल्फिकार के लिए ट्रंप कार्ड अब्दुल कदीर खान ही थे. उन्होंने साल 1976 में पाकिस्तान आने का फैसला किया और वे न्यूक्लियर प्रोग्राम को हेड करने लगे. 22 साल बाद पाकिस्तान ने अपना पहला परमाणु बम बनाया था.

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पश्चिमी देशों की आलोचना पर भड़के थे कदीर खान

कदीर खान पर विदेश से परमाणु बम बनाने की तकनीक चुराने के आरोप भी लगे. यहां तक कि टाइम मैगजीन ने उन्हें 'द मर्चेन्ट ऑफ मेनेस' का टाइटल दिया था. इसे लेकर एक बार कदीर ने कहा था, मुझे इन सब चीजों से बिल्कुल परेशानी नहीं होती है, वे हमारे अल्लाह को पसंद नहीं करते, हमारे पैगंबर को पसंद नहीं करते, हमारी पवित्र कुरान को भी पसंद नहीं करते हैं तो फिर वे मुझे कैसे पसंद कर सकते हैं.

रूस और अमेरिका के शीत युद्ध ने कराया था पाकिस्तान का फायदा

1980 के दशक में डॉ खान ने दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में कंपनियां खड़ी कीं जिसके बाद वे पाकिस्तान के सबसे लोकप्रिय चेहरों में शुमार होने लगे थे. सीआईए उन पर नजरें बनाए हुए थी लेकिन साल 1979 में अफगानिस्तान में सोवियत संघ ने हमला कर दिया था जिसके बाद अमेरिका भी हरकत में आया था और एशिया में अपने सैन्य अड्डे के लिए अमेरिका ने पाकिस्तान की ही मदद ली थी. सोवियत संघ और अमेरिका के इस शीत युद्ध का फायदा अब्दुल खान को मिला. फॉरेन पॉलिसी पत्रिका के अनुसार, उन्होंने साल 2009 में एक इंटरव्यू में कहा था कि 'अफगानिस्तान के युद्ध ने हमें अपनी परमाणु क्षमता और बढ़ाने का मौका दे दिया था. अगर ऐसा ना होता तो हम इतनी जल्दी बम नहीं बना सकते थे.'

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परमाणु बम की तकनीक बेचने के लिए टीवी पर मांगी थी माफी

डॉ. कदीर खान साल 2004 में तब जबरदस्त विवादों में आ गए थे जब उन्होंने स्वीकारा था कि उन्होंने परमाणु बम बनाने की तकनीक उत्तर कोरिया, ईरान और लीबिया जैसे देशों को बेची है. पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने भी अब्दुल कदीर खान पर उंगली उठानी शुरू कर दी. अमेरिका के दबाव में कदीर खान को चार सालों तक इस्लामाबाद स्थित उनकी कोठी में नजरबंद कर दिया गया था. अमेरिका इसलिए भी खान से काफी नाराज था क्योंकि परमाणु तकनीक खरीदने के बाद साल 2006 में उत्तर कोरिया ने अपना पहला परमाणु बम तैयार कर लिया था. 

हालांकि, चार सालों बाद जब मुशर्रफ की सत्ता पर पकड़ ढीली होने लगी तो डॉ. कदीर ने अपने बयान को बदलते हुए कहा था कि परवेज मुशर्रफ ने उन पर इस तरह के बयान के लिए दबाव डाला था और उन्होंने अपनी मर्जी से ये बयान नहीं दिया था. खान ने ये भी कहा था कि वे अंतर्राष्ट्रीय परमाणु एजेंसी के जांचकर्ताओं के साथ कभी सहयोग नहीं करेंगे. उन्होंने द गार्डियन के साथ बात करते हुए साफ किया था कि वे ना तो किसी परमाणु अप्रसार संधि के हस्ताक्षरकर्ता हैं और ना ही उन्होंने इंटरनेशनल कानूनों का उल्लंघन किया है. 

डॉ कदीर खान को पाकिस्तान में 'मोहसिन-ए-पाकिस्तान' यानी पाकिस्तान का रक्षक भी कहा जाता है. उन्हें पाकिस्तान के सर्वोच्च अवॉर्ड से भी नवाजा गया. हालांकि, वे सिर्फ परवेज मुशर्रफ ही नहीं बल्कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान से भी डॉ अब्दुल काफी निराश थे. उन्होंने डॉन अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा था कि मैं बहुत निराश हूं क्योंकि प्रधानमंत्री इमरान खान और उनकी कैबिनेट के किसी सदस्य ने मेरी सेहत के बारे में पूछताछ नहीं की.

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