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पाकिस्तान: EC ने कहा- अभी तैयारी नहीं, अक्टूबर में करा पाएंगे चुनाव

मुख्य न्यायाधीश उमर अता बंदियाल ने कहा कि इफ्तार के बाद सुप्रीम कोर्ट आज शाम 7:30 बजे अविश्वास प्रस्ताव को खारिज करने के डिप्टी स्पीकर के फैसले पर अपना फैसला सुनाएगा.

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सांकेतिक तस्वीर.
सांकेतिक तस्वीर.
स्टोरी हाइलाइट्स
  • स्पीकर के फैसले का बचाव नहीं: अटॉर्नी जनरल
  • राष्ट्रपति के वकील ने कहा- संविधान की रक्षा होनी चाहिए

पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस उमर अता बंदियाल ने कहा कि इफ्तार के बाद सुप्रीम कोर्ट गुरुवार शाम 7:30 बजे (भारत के समय के मुताबिक रात 8 बजे) अविश्वास प्रस्ताव को खारिज करने के डिप्टी स्पीकर के फैसले पर अपना फैसला सुनाएगा. वहीं पाकिस्तान के चुनाव आयोग ने राष्ट्रपति के पत्र का जवाब दिया है. चुनाव आयोग ने कहा है कि अक्टूबर 2022 में आयोग चुनाव कराने के लिए तैयार है. संविधान और कानून के अनुसार परिसीमन के लिए 4 महीने और लगेंगे. 

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पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश (सीजेपी) उमर अता बंदियाल ने गुरुवार को कहा कि यह स्पष्ट है कि नेशनल असेंबली के डिप्टी स्पीकर कासिम खान सूरी ने 3 अप्रैल को जो फैसला दिया था और इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को खारिज कर दिया था, वह गलत था. उन्होंने कहा कि असली सवाल यह है कि आगे क्या होता है. उन्होंने कहा कि अब पीएमएल-एन के वकील और पाकिस्तान के अटॉर्नी जनरल (एजीपी) खालिद जावेद खान कोर्ट का मार्गदर्शन करेंगे कि कैसे आगे बढ़ना है.

उन्होंने कहा कि हमें राष्ट्रीय हित को देखना होगा. बंदियाल की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ में न्यायमूर्ति इजाजुल अहसन, न्यायमूर्ति मजहर आलम मियांखेल, न्यायमूर्ति मुनीब अख्तर और न्यायमूर्ति मंडोखेल शामिल थे, जिन्होंने डिप्टी स्पीकर के फैसले की वैधता और उसके बाद के विघटन से संबंधित मामले की सुनवाई फिर से शुरू की.

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स्पीकर के फैसले का बचाव नहीं: अटॉर्नी जनरल

अटॉर्नी जनरल ने तर्क देते हुए दावा किया कि 28 मार्च को जब प्रस्ताव पेश करने की अनुमति दी गई थी तब इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया था. उनके अनुसार प्रस्ताव पेश करते समय बहुमत का समर्थन दिखाना जरूरी था. चूंकि विपक्ष के पास 28 मार्च को प्रस्ताव पेश करने के पक्ष में 161 सदस्य थे, इसलिए अटॉर्नी जनरल ने कहा कि ऐसे में यह कदम कहां से अनुचित था. 

अटॉर्नी जनरल को जवाब देते हुए जस्टिस अख्तर ने कहा कि इस तर्क के अनुसार अगर 172 सदस्यों (बहुमत) ने प्रस्ताव को मंजूरी दे दी होती, तो प्रधानमंत्री को बाहर कर दिया जाता. इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि प्रस्ताव पर अंतिम वोट से पहले संविधान द्वारा तीन से सात दिनों का समय प्रधानमंत्री को नाराज सांसदों को मनाने का दिया जाता. 

चीफ जस्टिस ने कहा, "अदालत को संविधान को ध्यान में रखते हुए फैसला सुनाना है." उधर, अटॉर्नी जनरल ने कहा कि वह स्पीकर के फैसले का बचाव नहीं कर रहे थे. अभी के लिए मेरी चिंता नए चुनाव हैं.

उधर, जस्टिस मंडोखेल ने पूछा कि किस कानून में कहा गया है कि अध्यक्ष के पास अविश्वास प्रस्ताव को खारिज करने की शक्ति है? हम व्यवस्था के एक बिंदु की परिभाषा को समझना चाहते हैं. 

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संवैधानिक संकट कहां है?

आज की सुनवाई के दौरान राष्ट्रपति के वकील सीनेटर अली जफर से न्यायमूर्ति मियांखेल ने पूछा कि क्या प्रधानमंत्री जन प्रतिनिधि हैं. वकील ने हां में जवाब दिया. मियांखेल ने तब पूछा कि क्या संसद संविधान की संरक्षक नहीं है?. उन्होंने यह भी सवाल किया कि संसदीय कार्यवाही के कारण किसी के प्रभावित होने की स्थिति में न्याय कैसे मिलेगा.

इस पर जफर ने जवाब दिया कि संविधान की रक्षा उसके द्वारा बताए गए नियमों के मुताबिक होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि संविधान की रक्षा के लिए प्रत्येक अनुच्छेद को ध्यान में रखना होगा. जस्टिस बंदियाल ने तब पूछा कि क्या होगा जब सिर्फ एक सदस्य के साथ नहीं, बल्कि पूरे असेंबली के साथ अन्याय होगा. जफर ने जवाबी तर्क के तौर पर कहा, "अगर जजों के बीच कोई विवाद है तो क्या संसद हस्तक्षेप कर सकती है, जवाब नहीं है. कोर्ट को मामले को सुलझाना है. यह संसद की तरह हस्तक्षेप नहीं कर सकती है.

जफर ने कहा कि अविश्वास प्रस्ताव और प्रधानमंत्री का चुनाव संसद के दायरे में आता है. उन्होंने कहा कि नेशनल असेंबली का गठन स्पीकर और प्रधानमंत्री की नियुक्ति के उद्देश्य से किया जाता है. उन्होंने पूर्व पीएम मोहम्मद खान जुनेजो के मामले का भी जिक्र किया, जिसे पूर्व राष्ट्रपति जनरल जियाउल हक ने खारिज कर दिया था. जफर ने कहा, "जुनेजो की सरकार भंग कर दी गई और अदालत ने इसे असंवैधानिक घोषित कर दिया."

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हालांकि, न्यायमूर्ति मियांखेल ने कहा कि मामला फिलहाल अविश्वास प्रस्ताव से जुड़ा है. इस मुद्दे को संबोधित करें. सीजेपी बंदियाल ने भी कहा कि वे जिस फैसले का जिक्र कर रहे थे, वह शपथ से संबंधित था. यहां मामला सत्तारूढ़ का है, शपथ का नहीं. हमें कहीं न कहीं एक रेखा खींचनी है.

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