पाकिस्तान इस समय चौतरफा मार झेल रहा है. देश में एक तरफ जहां खैबर पख्तूनख्वा में तहरीक-ए-तालिबान के आतंकियों की संख्या बढ़ती जा रही है. वहीं, दूसरी तरफ पाकिस्तान को इस्लामिक स्टेट (आईएसआईएस) से भी लगातार खतरा बना हुआ है. दरअसल आईएसआईएस पाकिस्तान में अपना पैठ जमाने की कोशिश कर रहा है.
पाकिस्तान के गृह मंत्रालय ने संसद के समक्ष बताया कि अफगानिस्तान से अमेरिकी फौजों की रवानगी और तालिबान की अगुवाई वाली अफगान सरकार के आईएसआईएस पर नकेल कसने में नाकाम रहने के बाद पाकिस्तान में टीटीपी की गतिविधियां बढ़ गई है. लेकिन सबसे बड़ा खतरा फिलहाल आईएसआईएस से है, जो पाकिस्तान में पैठ जमाने की पुरजोर कोशिश कर रहा है.
गृह मंत्रालय ने संसद में प्रश्नकाल के दौरान एक सवाल के लिखित जवाब में 2022 में शांति वार्ता के दौरान टीटीपी के नए सिरे से संगठित होने और उसकी गतिविधियों में विस्तार का ब्योरा रखा, जिससे पता चलता है कि पाकिस्तान में आंतकी गतिविधियां बढ़ी हैं.
पाकिस्तान को क्यों सता रहा डर?
मंत्रालय ने कहा कि टीटीपी की आतंकी गतिविधियां बढ़ी है और वह अपनी ताकत बढ़ाने के लिए अन्य आतंकी संगठनों से भी मदद मांग रहा है. टीटीटी मुख्य तौर पर खैबर पख्तूनख्वा तक ही सीमित है लेकिन देशभर में अपने नेटवर्क को एक्टिवेट करने की कोशिश कर रहा है.
पाकिस्तान के लिए टीटीपी में आतंकियों की बढ़ रही भर्तियां और उनके प्रशिक्षण चिंता का सबब बने हुए हैं. मंत्रालय ने कहा कि आईएसआईएस पाकिस्तान में अपनी पैठ जमाना चाहता है और सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने के लिए यहां शियाओं और धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ आतंकी गतिविधियां का सहारा ले रहा है.
सीमापार से अवैध आवाजाही रोकने के लिए पाकिस्तान की पश्चिमी सीमाओं की फेंसिंग का काम लगभग पूरा हो गया है. लेकिन ये दोनों ही आतंकी संगठन विशेष रूप से टीटीपी इस फेंसिंग को तोड़ने में लगे हुए हैं. बता दें कि पाकिस्तान ने मार्च 2017 में अफगानिस्तान से सटी सीमाओं पर बाड़ लगाने का काम शुरू कर दिया था.
क्या है तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान?
2007 में कई सारे आतंकी गुट एकसाथ आए और इनसे मिलकर बना तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान. टीटीपी को पाकिस्तान तालिबान भी कहते हैं. इसका मकसद पाकिस्तान में इस्लामी शासन लाना है. अगस्त 2008 में पाकिस्तानी सरकार ने टीटीपी को बैन कर दिया था.
हालांकि, टीटीपी की जड़ें 2002 में ही जमनी शुरू हो गई थीं. अक्टूबर 2001 में जब अमेरिकी सेना ने अफगानिस्तान की सत्ता से तालिबान को बेदखल किया तो उसके आतंकी भागकर पाकिस्तान में बस गए थे. इसके बाद पाकिस्तानी सेना ने इन आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन शुरू कर दिया था.
दिसंबर 2007 में बैतुल्लाह महसूद ने टीटीपी का ऐलान किया. 5 अगस्त 2009 को महसूद मारा गया. उसके बाद हकीमउल्लाह महसूद टीटीपी का नेता बना. 1 नवंबर 2013 को उसकी भी मौत हो गई.
हकीमउल्लाह की मौत के बाद मुल्ला फजलुल्लाह नया नेता बना. 22 जून 2018 को अमेरिकी सेना के हमले में वो भी मारा गया. अभी नूर वली महसूद टीटीपी का नेता है.
पाकिस्तान तालिबान अफगानिस्तान के तालिबान से अलग है. लेकिन दोनों का मकसद एक ही है और वो ये कि चुनी हुई सरकार को उखाड़ फेंको, कट्टर इस्लामिक कानून लागू कर दो.