पाकिस्तान सरकार ने भले ही अपने यहां स्कूलों के पाठ्यक्रम से स्वतंत्रता संग्राम के कई पन्ने गायब कर दिए हों, लेकिन आज भी पड़ोसी देश में कई लोग ऐसे हैं जो उन यादों को सहेज कर रखना चाहते हैं. उन्हें भगत सिंह आज भी याद हैं और वे लाहौर जैसे शहरों से भगत सिंह के रिश्ते को जिंदा रखने के लिए आज भी जद्दोजहद कर रहे हैं.
पाकिस्तान की लेफ्ट विंग पार्टी और अवामी वर्कर्स पार्टी लाहौर में इन दिनों एक कैंपेन चला रही है, जिसके तहत फवारा चौक के नाम को बदलकर भगत सिंह चौक किए जाने की मांग है. फवारा चौक वही जगह है जहां भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दी गई थी. तब यह जगह लाहौर जिला जेल के अंदर हुआ करती थी. लाहौर जेल भी अब कैंप जेल हो चुका है और फांसी वाली जगह एक ट्रैफिक आइलंड बन गया है. गौरतलब है कि भगत सिंह ने अपने कॉलेज के दिन लाहौर में ही गुजारे थे, जबकि उनका गांव लाहौर से कुछ घंटों की दूरी पर है.
बन गया था प्रस्ताव, मिल गई थी मंजूरी लेकिन...
लेफ्ट पार्टी की मांग पर पिछले साल लाहौर सिटी गवर्मेंट ने दिलकशा लाहौर समिति बनाई थी, जिन्हें लाहौर से जुड़ी शख्सियतों के नाम पर उनसे जुड़ी जगहों के नामकरण का प्रस्ताव तैयार करना था. तब समिति ने फवारा चौक को भगत सिंह का नाम देने का सुझाव दिया और लाहौर सिटी गवर्मेंट ने इसकी मंजूरी भी दे दी, लेकिन कट्टरपंथियों को यह प्रस्ताव रास नहीं आया. वे इस्लामिक देश में गैरइस्लामिक नाम देने का मुद्दा उठाकर प्रस्ताव को अदालत भी गए, लेकिन अवामी वर्कर्स पार्टी और लाहौर स्थित मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने अपनी लड़ाई जारी रखी. फिलहाल नामकरण के मामले पर अदालत ने स्टे लगा रखा है.
इस साल 23 मार्च को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी के दिन पार्टी के नेता फारुक तारिक, महिला कार्यकर्ता सईदा दीप और कुछ लोग भगत सिंह की तस्वीर लेकर फवारा चौक शहीदों को श्रद्धाजली देने पहुंचे, लेकिन हाफिज सईद की जमात उद दावा के कार्यकर्ताओं ने इसका विरोध शुरू कर दिया. लेकिन बाद में पुलिस की मौजुदगी में कार्यक्रम संपन्न हुआ.
तब बेकरी वाले ने अपनी तरफ से बढ़ा दिया 25 किलो केक
27 सितंबर 2013 को भी भगत सिंह के जन्मदिन पर ऐसा ही कार्यक्रम रखा गया. लाहौर की राहत बेकरी में इसके लिए 50 किलो केक का ऑर्डर दिया गया. बेकरी के मालिक चौधरी अक्रम को जब कार्यक्रम का पता चला तो उन्होंने कार्यक्रम के समर्थन में केक में 25 किलो अपनी तरफ से जोड़ दिए. फारुक कहते हैं, 'ना तो अक्रम साहब पार्टी के कार्यकर्ता हैं और ना ही वो मुझे जानते हैं, लेकिन उनके समर्थन ने यह बता दिया कि एक आम पाकिस्तानी इस मसले पर क्या सोचता है. 27 सितंबर को फवारा चौक पर 200 से ज्यादा लोग मुहिम को समर्थन देने पहुंचे और इस बार जमात उद दावा के समर्थक गायब थे. इस दौरान कुछ लोग भगत सिंह के पुश्तैनी गांव से भी आए थे.'