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क्या कश्मीर पर हार मान गया है पाकिस्तान? आर्थिक संकट के बीच शहबाज शरीफ के तेवर क्यों पड़े नरम

पाकिस्तान की आर्थिक हालत हर रोज बिगड़ती जा रही है. आर्थिक तंगी को कम करने के लिए पाकिस्तान दुनियाभर से मदद की अपील कर रहा है. इसी के साथ पाकिस्तान ने भारत को लेकर भी नरम तेवर अपना लिए हैं. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम संदेश देते हुए कहा कि पाकिस्तान शांति चाहता है.

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फोटो- पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ
फोटो- पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ

पाकिस्तान की आर्थिक हालत बिगड़ती जा रही है. कई इलाकों में खाने-पीने के जरूरी सामानों का भी संकट पैदा हो गया है. सिर्फ आटे का एक कट्टा लेने के लिए लोग मारपीट पर उतारू हैं. इसी आर्थिक चोट ने कहीं न कहीं पड़ोसी देश भारत के खिलाफ भी पाकिस्तान के तेवर नरम कर दिए हैं. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने हाल ही में भारत को लेकर जो बयान दिया है, वह उनकी सरकार के पिछले कड़वे बयानों से काफी अलग है.    

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पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने कहा है कि पाकिस्तान ने भारत के साथ तीन युद्ध लड़े हैं. इन युद्धों से पाकिस्तान अपना सबक सीख गया है. शहबाज शरीफ ने कहा कि, हम दोनों पड़ोसी देश हैं. दोनों को एक-दूसरे के साथ रहना है. अब यह हमारे ऊपर है कि हम मिलजुल कर शांति के साथ रहें और तरक्की करें या एक दूसरे से झगड़ा करते हुए समय के साथ-साथ संसाधनों की भी बर्बादी करें. 

शहबाज शरीफ ने आगे कहा कि भारत के साथ युद्ध की वजह से पाकिस्तान में सिर्फ गरीबी और बेरोजगारी आई है. हमें सबक मिल गया है और अब हम शांति के साथ जीना चाहते हैं और अपनी परेशानियों का हल करना चाहते हैं. 

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संदेश देते हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने कहा कि, वह गरीबी को खत्म करना चाहते हैं, पाकिस्तान में खुशहाली लाना चाहते हैं. लोगों को अच्छी शिक्षा और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं और रोजगार देना चाहते हैं. शहबाज शरीफ ने आगे कहा कि पाकिस्तान अपने संसाधनों को गोला और बारूद पर बर्बाद नहीं करना चाहता है. यही संदेश वे पीएम मोदी को देना चाहते हैं. शहबाज शरीफ ने कश्मीर मुद्दे पर यूएई से मध्यस्थता की अपील भी की. 

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शहबाज शरीफ के बयान से कुछ दिनों पहले भी पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की ओर से शांति पर अमल लाने की बात की गई थी. पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मुमताज जहरा बलोच ने कहा था कि पाकिस्तान भारत के साथ मुद्दे सुलझाना चाहता है. लेकिन भारत भी इसे गंभीरता से ले. 

शहबाज शरीफ का ये बयान ऐसे वक्त में आया है जब पाकिस्तान के आर्थिक संकट की तुलना श्रीलंका से की जा रही है. पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार 5 अरब डॉलर के करीब पहुंच गया है जो कुछ हफ्तों के आयात बिल के लिए ही पर्याप्त है. अगर पाकिस्तान को जल्द वित्तीय मदद नहीं मिली तो उसके पास कर्ज चुकाने के भी पैसे नहीं होंगे और वह डिफॉल्ट कर सकता है.

पिछले कुछ महीनों से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और सेना प्रमुख आर्थिक मदद मांगने के लिए सऊदी अरब और यूएई के लगातार चक्कर लगा रहे हैं. पिछले हफ्ते पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने यूएई का दौरा किया और पाकिस्तान को सऊदी का भाई बताते हुए एक और बार मदद करने के लिए कहा. इस दौरे के बाद यूएई ने 2 अरब डॉलर कर्ज को चुकाने की मोहलत बढ़ाई और एक अरब डॉलर की मदद अलग से करने का ऐलान किया. सऊदी अरब ने भी कहा कि वह पाकिस्तान में अपना निवेश बढ़ाकर 10 अरब डॉलर तक करेगा.

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सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के साथ बातचीत करते हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ

पाकिस्तान को ये भी समझ में आ रहा है कि कश्मीर पर वैश्विक स्तर पर उसकी स्थिति बहुत कमजोर हो चुकी है. सऊदी अरब और यूएई का भारत के साथ कारोबार इतना बढ़ गया है कि ये देश भी कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ नहीं हैं. हाल ही में जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज ने यूएई का दौरा किया तो दोनों देशों के साझा बयान में कश्मीर का कोई जिक्र नहीं हुआ.

पाकिस्तान की एक प्रमुख वेबसाइट एक्सप्रेस ट्रिब्यून में हाल ही में छपे एक आर्टिकल में भी कहा गया कि कश्मीर को छोड़कर अब पाकिस्तान को अपनी आर्थिक स्थिति पर ध्यान देना चाहिए. इस आर्टिकल में कहा गया है कि भारत पहले कश्मीर को कम से कम विवादित मुद्दा तो मानता था लेकिन अब इस पर कोई चर्चा ही नहीं करता है. लेख में कहा गया है कि अमेरिका से नजदीकी की वजह से भी भारत कश्मीर को लेकर और सख्त रुख अपना रहा है.

भारत से दोस्ती मजबूत होती तो शायद ऐसा संकट न देखता पाकिस्तान!
थोड़े समय बाद ही सही, लेकिन कहीं न कहीं पाकिस्तान की सरकार को इतनी समझ तो हो गई है कि अगर भारत से संबंध ठीक बनाए जाते तो शायद यह आर्थिक संकट इतना गहरा ना होता. जाहिर तौर पर भारत बड़ा देश है और कई मायनों में पाकिस्तान से आगे है. दोनों का सबसे बड़ा कनेक्शन है कि दोनों देश कई ओर से सरहद साझा करते हैं. ऐसे में भारत पाकिस्तान की कारोबार से लेकर मानवीय सहायताओं में भी काफी आगे रह सकता है. 

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जब जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 को खत्म किया गया तो भड़के पाकिस्तान ने भारत के साथ व्यापारी संबंध खत्म करने का ऐलान कर दिया. उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान की पाकिस्तान सरकार जोश के साथ फैसले ले रही थी. 

मजबूत पड़ोसी देश से व्यापारी रिश्ते खत्म करने का क्या नुकसान हो सकता है, यह शायद पाकिस्तानी सरकार देख नहीं पा रही थी या फिर दुश्मनी की आग में देखना ही नहीं चाह रही थी. या कहें तो यह फैसला जन भावना को भी लेते हुए किया गया हो. खैर जो भी हो, लेकिन इसका नुकसान पाकिस्तान को ही रहा है.

जब संकट सिर पर तो भारत से दरियादिली की उम्मीद में पाकिस्तान!   
पाकिस्तान की हालत जब बेहद खराब हो गई है तो उसे अब शायद भारत से दरियादिली की आशा है. इसी वजह से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के तेवर काफी नरम दिखाई दे रहे हैं. कुछ समय पहले भारत को लेकर विवादित बयान देने वाले विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो भी इस मामले में चुप्पी साधे हुए हैं. 

सिर्फ पाकिस्तान की सरकार ही नहीं बल्कि अब वहां के नागरिक और मीडिया भी भारत की ओर नरमी से देख रही है. हाल ही में पाकिस्तान के एक प्रमुख अखबार में लेख छपा जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जमकर सराहना की गई.

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पाकिस्तान के मशहूर राजनीतिक, सुरक्षा और रक्षा विश्लेषक शहजाद चौधरी ने कहा कि दुनियाभर के निवेशकों के लिए भारत पसंदीदा जगह बनकर उभरा है. शहजाद चौधरी ने भारत की वैश्विक मंच में बढ़ती प्रासंगिकता का हवाला देते हुए कहा कि पाकिस्तान को अब भारत के साथ संबंध सुधारने चाहिए. जबकि इन्हीं शहजाद चौधरी ने साल 2019 में कश्मीर में भारत की हार की भविष्यवाणी कर दी थी.

शहजाद चौधरी ने लेख के जरिए कहा कि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में भारत ने विदेशी नीति के मोर्चे पर अच्छा काम किया है और खुद का डोमेन स्थापित कर लिया है. अमेरिका के साथ संबंधों का भी भारत अच्छी तरह से लाभ ले रहा है, जबकि पाकिस्तान के लोग अभी कोसने में ही लगे हुए हैं. 

वहीं शहजाद चौधरी के अनुसार, यूक्रेन से युद्ध की वजह से रूस पर कई तरह के अमेरिकी प्रतिबंध लगे हुए हैं, उसके बावजूद भी भारत खुलकर रूस के साथ व्यापार कर रहा है. यह भारतीय विदेश नीति की जीत है.

पाकिस्तान ने आगे बढ़कर संबंध मजबूत किए तो चारों ओर से मिलेगा लाभ
भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में खटास की वजह से दोनों देशों का द्विपक्षीय कारोबार थम गया है. भारत अफगानिस्तान को गेहूं भेज रहा है लेकिन पाकिस्तान को नहीं दे रहा है. जबकि पाकिस्तान में जिस तरह का खाद्य संकट चल रहा है, अगर भारत से गेहूं आयात करने लगे तो कई समस्या दूर हो सकती हैं. 

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मौजूदा समय में पाकिस्तान मोटे खर्चे के साथ यूएई, मिस्र, ब्राजील, सिंगापुर और रूस जैसे देशों से जरूरी चीजें आयात कर रहा है. अगर यही चीजें भारत से आयात होती तो काफी कम खर्च में यह काम आ जाता. 

पाकिस्तान अगर भारत से आयात करता है तो सिर्फ शिपमेंट चार्ज में ही अच्छा-खासा पैसा बचाया जा सकता है. इसके साथ ही भारत से आयात किया हुआ सामान समय के साथ चीजों को बाजारों तक पहुंचा सकता है.

दरअसल, इन सभी देशों के साथ पाकिस्तान का शिपिंग चार्ज काफी बढ़ा है, ऊपर से डॉलर के सामने कमजोर होते जा रहे पाकिस्तानी रुपये की वजह से यह संकट और ज्यादा बढ़ गया है. सिर्फ गेहूं की खरीदारी के लिए ही पाकिस्तान को कई गुना ज्यादा कीमत चुकानी पड़ रही है. 

पाकिस्तान में जारी गेहूं संकट

दूसरी ओर, सीमा पर जिस तरह से पाकिस्तान भारत के खिलाफ सुरक्षा के लिए पैसा खर्च करता है. अगर यही बस कम हो जाए तो भी पाकिस्तान को काफी फायदा पहुंच सकता है. पाकिस्तान का खर्च तो कम होगा ही, साथ ही जो पैसा बचेगा वह आर्थिक विकास और इंस्फ्रास्टक्चर के लिए इस्तेमाल किया जा सकेगा. इसके अलावा जब सीमा पर शांति होगी तो दोनों देशों के बीच जो कारोबार में तेजी आएगी, उसका फायदा भी बड़े स्तर पर पाकिस्तान को पहुंचेगा. 

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घरेलू राजनीति के आगे मजबूर पाकिस्तानी पार्टियां

पाकिस्तान ने पहली बार शांति वार्ता की कोशिश नहीं की है. जब-जब पाकिस्तान की आर्थिक गाड़ी डगमगाती है, उसे अपना पड़ोसी भारत याद आ जाता है. मौके पर कोई भी सरकार हो, वह भारत से संबंध मजबूत करने की कोशिश शुरू ही करती है कि पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति ही उन्हें कामयाब नहीं होने देती है. नेताओं में बयानबाजी होती हैं और आखिरकार वार्ता की कोशिश रुक ही जाती है. 

साल 2018 में इमरान खान सरकार में आए. उस समय ऐसी चर्चा रही कि इमरान खान अपने कार्यकाल में भारत से रिश्तों को ठीक करेंगे. हालांकि, बीच में पुलवामा और आर्टिकल 370 जैसे मुद्दों पर सबकुछ बिगड़ गया. पाकिस्तान के भारत से कारोबारी संबंध खत्म हो गए. 

हालांकि, कुछ समय बाद पाकिस्तान सरकार की ओर से द्विपक्षीय व्यापार को फिर शुरू करने की कोशिशें की गई. उस समय के वाणिज्यिक सलाहकार रजाक दाऊद ने बयान देते हुए यह कहा भी कि इस समय दोनों देशों के बीच कारोबार शुरू करना समय की मांग है, इसलिए इसे फिर से शुरू कर देना चाहिए. 

हालांकि, दाऊद का यह बयान विपक्ष में बैठी शरीफ और भुट्टो की पार्टियों के गले नहीं उतरा. विपक्षी नेताओं ने कश्मीर के मुद्दे को बीच में लाकर रुख ही मोड़ दिया. विपक्षी नेताओं ने कहा कि भारत कश्मीर के साथ जैसा व्यवहार कर रहा है, उसके बाद भी इमरान खान व्यापार करना चाहते हैं. विपक्षी खेल के बाद इमरान खान शांत पड़ गए और बात भी ठंडे बस्ते में चली गई. इमरान खान के सत्ता से बाहर होने के बाद शहबाज शरीफ सत्ता में आए. 

साल 2019 में इमरान खान सरकार के कार्यकाल में शहबाज शरीफ से हाथ मिलाते हुए बिलावल भुट्टो

अब पाला पलट गया और शहबाज शरीफ सरकार के सुर भारत की ओर हुए तो इमरान खान की पार्टी ने विरोध करना शुरू कर दिया. दरअसल, पाकिस्तान के विदेश मंत्री बनते ही बिलावल भुट्टो ने कहा कि किसी भी पड़ोसी से अलग-थलग रहना पाकिस्तान के लिए अच्छा नहीं है. 

नई दिल्ली स्थित पाकिस्तानी उच्चायोग में एक ट्रेड अफसर भी नियुक्त किया गया. ट्रेड अफसर नियुक्त होते ही इमरान खान की पार्टी ने मामले को तूल देना शुरू कर दिया और आखिरकार शहबाज शरीफ को इस मामले में चुप्पी साधना ही बेहतर विकल्प नजर आया.

दशकों से हो रहा है दोनों देशों के बीच शांति लाने का प्रयास
इमरान खान और शहबाज शरीफ की सरकारों से सालों पहले भी दोनों देशों के बीच शांति बहाल करने की कोशिशें की जा रही हैं, लेकिन हमेशा बातचीत विफल रही. साल 1999 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई शांति दूत बनकर लाहौर पहुंचे थे. लाहौर से लौटे हुए उन्हें कुछ ही दिन हुए थे कि दोनों देशों के बीच कारगिल का युद्ध छिड़ गया. रिश्तों में अब और ज्यादा खटास आ गई.

युद्ध की वजह से दोनों तरफ के लोगों की भावनाएं भी काफी भड़क गई. उस समय पर दोनों देशों के किसी भी नेता का शांति बहाली पर बात करना काफी मुश्किलें पैदा कर सकता था.

हालांकि, दो साल बाद जब लोगों के जख्म थोड़े-थोड़े भर गए तो पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ भारत आए और शांति की वार्ता फिर शुरू हुई. जनरल परवेज के वापस लौटने के कुछ दिनों बाद ही भारत में सीमापार से आतंकवाद बढ़ना शुरू हो गया. इस नई परेशानी को देखते हुए दोनों देशों में फिर खटास बढ़ गई. उसके बाद से ही जब भी शांति करने की कोशिशें हुईं तो रिजल्ट के तौर पर उरी और पुलवामा जैसे आतंकी हमले देखे गए. 

पाकिस्तान की आर्मी का नरम तेवर
पाकिस्तान की आर्मी के भी पिछले कुछ समय से तेवर नरम ही नजर आ रहे रहे हैं. आखिरी बार साल 2021 की स्पीच में पाकिस्तानी आर्मी के तत्कालीन सेना अध्यक्ष जनरल कमर जावेद बाजवा ने भारत के साथ रिश्तों को लेकर बयान जारी किया था. उस समय बाजवा ने अपने बयान में जिओ-स्ट्रेटेजी की जगह जिओ-इकोनॉमिक्स पर जोर दिया था.  

वहीं बाजवा के बाद जब जनरल मुनीर ने सेना के अध्यक्ष का कार्यभार संभाला तो उन्होंने भी एक ही बार भारत को लेकर बयान दिया. दरअसल, कुछ समय पहले जब जनरल मुनीर पीओके दौरे पर गए थे, तो उनसे पत्रकारों ने सवाल पूछे. जिसके जवाब में जनरल मुनीर ने थोड़ी नरमी रखते हुए ही कहा कि अगर हम पर हमला होता है तो पाकिस्तानी सेना अपनी मातृभूमि की एक-एक इंच की रक्षा करेगी.

पूर्व आर्मी चीफ जनरल कमर बाजवा के साथ पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान

हाल ही में पाकिस्तानी पत्रकार हामिद मीर ने एक बड़ा दावा किया था. हामिद मीर का दावा था कि इमरान खान सरकार के कार्यकाल में तत्कालीन आर्मी चीफ जनरल कमर बाजवा भारत के साथ बैकडोर डिप्लोमेसी कर रहे थे. खास बात है कि इस बात की भनक इमरान खान या किसी बड़े आर्मी के अधिकारी को नहीं थी. बाजवा सीक्रेट तरह से यह डिप्लोमेसी चला रहे थे. 

इसी डिप्लोमेसी की वजह से दोनों देशों के बीच करतारपुर कॉरिडोर खोलने का ऐतिहासिक फैसला किया गया था. इतना ही नहीं, हामिद मीर का दावा है कि फरवरी 2021 में भी भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर का ऐलान का फैसला भी बैकडोर डिप्लोमेसी की वजह से ही लिया गया था.

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