पाकिस्तान के रावलपिंडी स्थित जनरल हेडक्वार्टर्स (GHQ) में मौजूदा ग्लोबल समीकरणों और बढ़ते जियो-पॉलिटिकल तनावों के चलते रणनीतिक अनिश्चितता का माहौल है. बदलते अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में खुद को अलग-थलग पड़ने से बचाने के लिए पाकिस्तान का सैन्य नेतृत्व अब ब्रिटेन के साथ संबंधों को मजबूत करने की कोशिश कर रहा है. इस कूटनीति के पीछे खास वजह पाकिस्तान में चीनी खुफिया बेस की तैनाती भी बताई जा रही है, जिसने पश्चिमी देशों विशेष रूप से अमेरिका और यूरोपीय देशों के साथ पाकिस्तान के संबंधों में तनाव बढ़ा दिया है.
रिपोर्टों के अनुसार, पाकिस्तान में एक चीनी खुफिया सुविधा की मौजूदगी ने पश्चिमी देशों के बीच चिंता बढ़ा दी है, जिससे संभावित रूप से प्रमुख वैश्विक नेताओं से कूटनीतिक दूरी बढ़ सकती है. जैसे-जैसे पाकिस्तान बीजिंग के साथ अपने संबंधों को गहरा करता जा रहा है, उसके पारंपरिक संबंध, खासकर संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के साथ तनावपूर्ण होते दिख रहे हैं. इसने रावलपिंडी को वैकल्पिक साझेदारी तलाशने के लिए प्रेरित किया है, जिसमें ब्रिटेन अपनी अंतरराष्ट्रीय स्थिति को संतुलित करने के लिए एक संभावित सहयोगी के रूप में उभर रहा है.
वहीं, चीन और पश्चिमी शक्तियों के बीच बदलते समीकरणों से चिह्नित विकासशील वैश्विक व्यवस्था ने पाकिस्तान को एक जटिल स्थिति में डाल दिया है. जबकि इस्लामाबाद ने ऐतिहासिक रूप से चीन के साथ एक रणनीतिक साझेदारी बना रखी है. बीजिंग पर पाक की सुरक्षा और खुफिया क्षेत्रों में बढ़ती निर्भरता ने अन्य देशों के साथ इसके (पाक)संबंधों को और उलझा दिया है.
पाकिस्तान का ब्रिटेन से संपर्क करना कूटनीतिक संतुलन बनाए रखने की कोशिश हो सकती है, जिसेस ये सुनिश्चित हो सके कि वह पूरी तरह से चीन पर निर्भर नहीं है. हालांकि, ये साफ नहीं है कि पाकिस्तान के बदलते जियोपॉलिटिकल नजरिए को लंदन कैसे स्वीकार करेगा. ये स्थिति पाकिस्तान को राजनयिक अलगाव से बचने के साथ-साथ प्रमुख शक्तियों के साथ अपने संबंधों को संतुलित करने की कोशिश कर रहा है.
बता दें कि हाल ही में पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ब्रिटेन के दौरे पहुंचे थे, जहां ब्रिटेन ने उनका जोरदार स्वागत किया.