90 साल की भारतीय महिला रीना छिब्बर वर्मा (Reena Chhibber Varma) पाकिस्तान दौरे के बाद भारत आ चुकी हैं. पाकिस्तान के नौ दिनों की यह यात्रा उनके लिए बेहद ऐतिहासिक और यादगार रही. रावलपिंडी का पुश्तैनी घर देखने का उनका सपना सच हुआ. इस दौरान उन्हें पाकिस्तानियों का बेशुमार प्यार मिला.
यही वजह रही कि जब वह सोमवार को भारत के लिए रवाना हो रही थीं तो सभी की आंखें गमगीन थी, उन्हें भारत के लिए रुखसत करते वक्त पाकिस्तानी लोग भावुक हो रहे थे.
लाहौर के ब्लॉगर जाहिर महमूद ने रीना छिब्बर को विदाई देते हुए सोशल मीडिया पोस्ट में कहा, अलविदा मांजी, आप हमें बहुत याद आएंगी. इन दस दिनों में आपके साथ जिस तरह का वक्त गुजरा है, यूं लगता है कि समय ठहर गया हो. हमारी दोस्ती सालों की हो, आपकी बातें, आपकी सलाह, आपका प्यार और फिर कभी कभी हल्का-हल्का गुस्सा और डांट, सब कुछ बहुत मिस करुंगा. काश हम ऐसे ही दोबारा मिल सकें और आपकी मीठी-मीठी बातों से अपना दिल बहला सकें. हम सभी आपको बहुत याद करेंगे. पाकिस्तान आपको याद करेगा.
नौशाद शहजाद मसूद ने हिंदी के लोकप्रिय गाने बाबुल की दुआएं लेती जा गाने के बोल से अपनी भावनाएं जाहिर कीं. उन्होंने सोशल मीडिया के जरिए रीना छिब्बर को विदाई देते हुए कहा, अलविदा पिंडी गर्ल. आपकी बहुत याद आएगी.
रीना छिब्बर की पाकिस्तान से रवानगी पर मुहम्मद अली राउफ सोशल मीडिया के जरिए कहते हैं, वह हमारी मेहमान थीं और मेहमान से अधिक वह अपनी जड़ों की ओर लौटी थीं. उनकी मेहमाननवाजी कर हमें अच्छा लगा. हम दोनों मुल्क मिलकर बेहतर समाज बना सकते हैं, जहां एक दूसरे के लिए प्यार और सम्मान हो. अपना ख्याल रखें. पाकिस्तान से शुभकामनाएं.
गफूर साहिबजादा ने कहा, आपको बहुत सारा प्यार मांजी, उम्मीद है कि आप बहुत अच्छी यादें लेकर जा रही होंगी.
बता दें कि रीना लगभग नौ दिनों तक पाकिस्तान में रहीं. इस दौरान वह रावलपिंडी अपने घर पहुंचीं और बचपन के उस घर को निहारा, जिसे वह 75 साल पहले छोड़ गई थीं.
रावलपिंडी की अपनी गली प्रेम गली पहुंचते ही उनका गर्मजोशी से स्वागत किया गया. कैमरों की चमक और ढोल नगाड़ों के बीच वह बचपन की यादों में खो गईं. घर के अंदर दाखिल होते ही रीना का वह सपना भी पूरा हो गया, जिसका सपना वह कई दशकों से देख रही थीं.
अपने इस पुश्तैनी घर के प्रति यह उनका लगाव ही था कि अब उस घर में रह रहे लोगों ने रीना को एक रात वहीं रुकने को कहा. रीना की खुशी का ठिकाना नहीं था. वह रात में उसी कमरे में सोईं, जहां वह बचपन में सोया करती थीं. 15 साल की उम्र तक रीना मकान के पहली मंजिल के इसी कमरे में सोती थीं. इस कमरे के दरवाजे पर घर वालों ने रीना के नाम की नेमप्लेट भी लगा दी, जिस पर लिखा था, रीनाज होम यानी रीना का घर.
रीना ने रावलपिंडी और लाहौर के अलावा आसपास के उन सभी इलाकों की सैर की, जिनसे उनका बचपना जुड़ा हुआ था. वह लाहौर के फॉर्मैन क्रिश्चियन कॉलेज भी पहुंची, जहां पहुंचकर वह अपने आंसू रोक नहीं सकी. दरअसल उनके पति ने 1945 में इसी कॉलेज से पढ़ाई की थी.
इसके बाद वह पाकिस्तान के लोकप्रिय पर्यटन स्थल मरी (Murree) भी पहुंचीं. मरी से रीना के बचपन की यादें जुड़ी हुई हैं. उनका परिवार अक्सर गर्मियों की छुट्टियों में मरी आया करता था.
भारत के बंटवारे के बाद रीना अपने परिवार के साथ 1947 में भारत आ गई थीं. उस दौरान उनकी उम्र सिर्फ 15 साल थी. पाकिस्तान के रावलपिंडी के अपने घर से 75 सालों से जुदा रही रीना कहती हैं, मैं अपने पुश्तैनी घर, मेरे पड़ोस और पिंडी की गलियों की यादें कभी नहीं मिटा पाई.
फेसबुक पर इंडिया-पाकिस्तान हेरिटेज क्लब (India Pakistan Heritage Club) की मुहिम से रीना छिब्बर वर्मा आखिरकार अपनी जन्मभूमि पाकिस्तान पहुंची. वह इससे पहले दो बार पाकिस्तान जाने की असफल कोशिश कर चुकी थीं.
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