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पाकिस्तान में शिया मुसलमानों पर लगातार क्यों बढ़ रहे हैं हमले?

पाकिस्तान में शिया मुस्लिम आबादी के खिलाफ लगातार हमले बढ़ते जा रहे हैं. सुन्नी मुस्लिम बहुल पाकिस्तान में शियाओं के खिलाफ हिंसा की घटनाएं बढ़ी हैं और ईश निंदा कानून के तहत भी उन्हें अक्सर निशाना बनाया जाता है.

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पाकिस्तान में बढ़ते जा रहे शियाओं के खिलाफ हमले
पाकिस्तान में बढ़ते जा रहे शियाओं के खिलाफ हमले
स्टोरी हाइलाइट्स
  • पाकिस्तान में शिया मजदूरों की हत्या
  • शियाओं के खिलाफ बढ़ रही हिंसा
  • मुहर्रम में शियाओं के खिलाफ निकाली गई थी रैली

पाकिस्तान में रविवार को बलूचिस्तान के माछ इलाके में शिया हजारा समुदाय के 11 मजदूरों की हत्या कर दी गई. ये सभी कोयला खदान में काम करते थे. मारने से पहले हत्यारों ने मजदूरों की पहचान की. इनमें हजारा शिया समुदाय के लोगों का अपहरण करके उन्हें एक पहाड़ी पर ले जाया और उन्हें मार दिया गया.

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इसकी जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट ने लेने का दावा किया है. इस्लामिक देश पाकिस्तान में केवल अल्पसंख्यक ही नहीं बल्कि इस्लाम के अलग-अलग पंथ के लोगों को भी निशाना बनाया जा रहा है. अहमदिया समुदाय के लोगों को पाकिस्तान में पहले ही इस्लाम से बाहर किया जा चुका है. कट्टरपंथी सुन्नी संगठन पाकिस्तान में शिया मुसलमानों को भी हमेशा निशाने पर रखते हैं. सरकार भी इन कट्टरपंथियों पर लगाम नहीं कस पाती है. 

पाकिस्तान सुन्नी मुस्लिम बहुल देश है. यहां की 15 से 20 फीसदी आबादी शिया है. ईरान के बाद पाकिस्तान में ही सबसे ज्यादा शिया रहते हैं. बलूचिस्तान, लाहौर, कराची, रावलपिंडी और मुल्तान में शियाओं की अच्छी-खासी आबादी है.

शियाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा

अमेरिकी धार्मिक स्वतंत्रता आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 1999 से लेकर 2003 के बीच 600 शियाओं को मार दिया गया और 500 से ज्यादा शिया डॉक्टर देश छोड़ने के लिए मजबूर हो गए. साउथ एशिया टेररिजम पोर्टल के अनुसार, पाकिस्तान में 2001 से 2018 के बीच 4847 शिया मुसलमानों को मारा गया. 

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पाकिस्तान में शिया समुदाय के लोगों को अक्सर ईश निंदा कानून के तहत निशाना बनाया जाता है. पिछले साल, अगस्त महीने में ही शियाओं के खिलाफ ईश निंदा के 42 केस दर्ज हुए. यहां तक कि शिया समुदाय के तीन साल के एक बच्चे पर भी ईशनिंदा का केस दर्ज हुआ था.

शिया सुन्नी में विवाद क्यों
शियाओं का दावा है कि मुसलमानों का नेतृत्व करने का अधिकार अली और उनके वंशजों का ही है. अली पैगंबर मोहम्मद के दामाद थे और शिया इन्हें पैगंबर मोहम्मद का उत्तराधिकारी मानते हैं. दूसरी तरफ, सुन्नी मुसलमान पैगंबर मोहम्मद का उत्तराधिकार किसी को नहीं मानते हैं. शिया और सुन्नियों की बीच के विवाद की असली जड़ इसी को माना जाता है. 

मुसलमानों का नेता या खलीफा कौन होगा, इसे लेकर हुए एक संघर्ष में अली मारे गए थे. उनके बेटे हुसैन और हसन ने भी खलीफा होने के लिए संघर्ष किया था. हुसैन की मौत युद्ध में हुई जबकि माना जाता है कि हसन को जहर दिया गया था. इस वजह से ही, शियाओं में शहादत और मातम मनाने को इतनी अहमियत दी जाती है. 

मुहर्रम के दौरान बढ़ जाते हैं ईश निंदा के मामले
पाकिस्तान में हर साल मुहर्रम के दौरान ईश निंदा के मामले बढ़ जाते हैं और इनमें ज्यादातर आरोपी शिया समुदाय के लोग ही होते हैं. जियारत-ए-आशुरा को पढ़ने की वजह से शिया समुदाय के लोगों पर ईश निंदा का आरोप लगाया जाता है. जियारत-ए-आशुरा में इमाम हुसैन के हत्यारों की निंदा की जाती है. 

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11 सितंबर को पाकिस्तान के कराची शहर में सुन्नी कट्टरपंथी संगठनों ने शियाओं के खिलाफ एक रैली निकाली थी, जिसमें 30,000 से ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया था. रैली के दौरान लोगों ने 'शिया काफिर हैं' जैसे नारे लगाए और मुहर्रम के जुलूस पर बैन लगाने की भी मांग की. 

इस रैली में शिया विरोधी समूह सिपाह-ए-सहाबा के लोग बैनर लिए खड़े थे. इस संगठन पर पिछले कई सालों से शियाओं की हत्या के आरोप हैं.

पाकिस्तान की संसद में भी शियाओं के खिलाफ नफरत फैलाने वाली इस रैली को लेकर सवाल खड़े किए गए थे. पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (पीपीपी) की सांसद शेरी रहमान ने कहा था, "पाकिस्तान की कुल मुस्लिम आबादी में 20 फीसदी शिया हैं. शियाओं पर हमले लगातार बढ़ रहे हैं और यह देश की स्थिरता के लिए खतरा है. ऐसे 20 मामले सामने आए हैं जिनमें शिया मुसलमानों को उनकी आस्था के कारण निशाना बनाया गया. सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि सरकार इसे लेकर चिंतित नहीं है. सरकार को चाहिए कि शियाओं के मूल अधिकारों की रक्षा करे. शिया भी इसी देश के नागरिक हैं."

शियाओं की धार्मिक आजादी पर हमला करने वाला कानून

शिया मुसलमानों को अब ये भी डर सता रहा है कि नए कानूनों के जरिए उनकी धार्मिक आजादी छीनी जा सकती है. जुलाई महीने में, पंजाब विधानसभा ने तहफ्फुज-ए-बुनियाद-ए-इस्लाम बिल पास किया था जिसमें कहा गया था कि पाकिस्तान में इस्लाम की सुन्नी व्याख्या ही मान्य होगी. शियाओं के कई गुरुओं ने इसका कड़ा विरोध किया था. सेक्युलर शिया वॉइसेस की फाउंडिंग मेंबर हमजा बलोच ने गार्डियन से कहा, सबसे पहले, उन्होंने हमारे खिलाफ हैशटैग इस्तेमाल किए, हमारे लोगों की हत्याएं कीं और रैलियां निकालीं. अब वे शिया अल्पसंख्यकों के खिलाफ कानून ला रहे हैं.

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पिछले कई सालों से, पाकिस्तान के शिया कभी मशीन गन का निशाना बनते हैं तो कभी आत्मघाती हमलावरों का. मस्जिदों से लेकर बाजार तक, वे कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं. साल 2011 में क्वेटा में आतंकवादी संगठनों ने शिया हजारा लोगों के लिए एक खुला खत लिखा था और धमकी दी थी कि सभी शियाओं को मारकर पाकिस्तान को उनकी कब्रगाह बना दी जाएगी.

कट्टर सुन्नी संगठनों को मिल रहा बढ़ावा

पाकिस्तान में सुन्नी के खिलाफ दो सुन्नी मुस्लिम संगठन सबसे ज्यादा सक्रिय हैं- अहल-ए-सुन्नत-वल-जमात (ASWJ) और तहरीक-ए-लबाइक पाकिस्तान. अहल-ए-सुन्नत-वल-जमात आतंकवाद निरोध कानून के तहत बैन किया गया था लेकिन साल 2018 में इसे आतंकवादी संगठन की श्रेणी से बाहर कर दिया गया. 

साल 2017 से पाकिस्तान में शिया-सुन्नी का टकराव और बढ़ा है. 2017 में, तहरीक-ए-लबाइक पाकिस्तान ने ईशनिंदा कानून पर नरमी को लेकर कानून मंत्री को इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया था. 

साल 2018 में, इन दोनों संगठनों को चुनाव लड़ने की भी इजाजत मिल गई और इनके कई कैंडिडेट जीत दर्ज कर संसद पहुंच गए. इसी चुनाव में, अहल-ए-सुन्नत-वल-जमात ने इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के 70 उम्मीदवारों को जीत दर्ज दिलाने में भी मदद की.

शिया समुदाय के खिलाफ नफरत फैलाने वाले भाषणों के बावजूद, दोनों संगठनों को रैलियां निकालने और भाषण देने की अनुमति मिल जाती है. कराची में हबीब यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. नौमन नकवी ने 'द डिप्लोमैट' से कहा, चूंकि पाकिस्तान की आर्थिक और राजनीतिक स्थिति लगातार कमजोर होती जा रही है, ऐसे में इमरान खान की सरकार सुन्नी बहुसंख्यक लोकप्रियतावाद का सहारा ले रही है. पाकिस्तान की सरकार के पास गंभीर राजनीतिक और आर्थिक समस्याओं से ध्यान हटाने के लिए एकमात्र यही रास्ता रह गया है.'' 

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नकवी ने कहा, ऐसे संगठनों की बड़े पैमाने पर मौजूदगी पाकिस्तान के संविधान और आम लोगों के लिए एक बड़ा खतरा है. ये देश को अराजकता की तरफ मोड़ सकते हैं. यहां तक कि पाकिस्तान सरकार में विज्ञान एवं तकनीक मंत्री फवाद चौधरी ने माना था कि देश में सांप्रदायिकता की समस्या नियंत्रण से बाहर होती जा रही है. फवाद चौधरी ने एक बयान में कहा था कि दुर्भाग्य से पाकिस्तान के इतिहास को देखते हुए, खासकर सुरक्षा के लिहाज से, ये एक बहुत बड़ी समस्या है.

कई अधिकारियों का कहना है कि पाकिस्तान में शिया-सुन्नी टकराव में अंतरराष्ट्रीय ताकतों की भी अहम भूमिका रही है. शिया-सुन्नी के बीच जो मतभेद थे, वो 70 के दशक में सऊदी अरब-ईरान की आपसी दुश्मनी का भी आधार बने. चूंकि पाकिस्तान की 20 फीसदी आबादी शिया है इसलिए सैन्य तानाशाह जिया-उल-हक के शासनकाल में पाकिस्तान भी शिया-सुन्नी की लड़ाई का मैदान बन गया. इस दौरान, पाकिस्तान में शियाओं के खिलाफ कई प्रॉक्सी संगठन फलने-फूलने लगे. 80 के दशक में शियाओं का भयंकर नरसंहार हुआ. साल 2010 में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी), लश्कर-ए-जंगवी और इस्लामिक स्टेट ने शिया हजारा समुदाय के तमाम लोगों की हत्या की. इन सबके बीच, पाकिस्तान की सरकार सिर्फ मूकदर्शक बनी रही.

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