scorecardresearch
 

पोलैंड पहुंचे PM मोदी का हुआ जोरदार स्वागत, कोल्हापुर स्मारक पर दी श्रद्धांजलि

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, 1939 में, पोलैंड पर सोवियत संघ और जर्मनी द्वारा आक्रमण किया गया और इसे विभाजित कर दिया गया था. नतीजा यह हुआ कि जनरल सिकोरस्की के नेतृत्व वाली पोलिश सरकार लंदन में निर्वासन में चली गई. बड़ी संख्या में बच्चे, महिलाएं, अनाथ और विकलांग लोगों को सोवियत संघ में निर्वासित कर दिया गया, जहां उन्हें बेहद कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा.

Advertisement
X
PM मोदी ने कोल्हापुर स्मारक पर श्रद्धांजलि अर्पित की
PM मोदी ने कोल्हापुर स्मारक पर श्रद्धांजलि अर्पित की

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार को दो दिवसीय यात्रा पर पोलैंड पहुंचे. पीएम का यहां जोरदार स्वागत किया गया. उन्होंने मोंटे कैसीनो युद्ध स्मारक के पास वलीवडे-कोल्हापुर शिविर के स्मारक पट्टिका पर श्रद्धांजलि अर्पित की, जिसका उद्घाटन नवंबर 2017 में किया गया था. पोलैंड और भारत के संबंधों का इतिहास बेहद दिलचस्प है जो द्वितीय विश्व युद्ध से जुड़ा है. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, जामनगर के महाराजा और कोल्हापुर के छत्रपति ने पोलैंड के हजारों शरणार्थियों को शरण दी थी.

Advertisement

पोलैंड के वारसॉ में जाम साहब ऑफ नवानगर स्मारक भारत और पोलैंड के बीच साझा इतिहास की याद दिलाता है. स्मारक जाम साहब दिग्विजयसिंहजी रणजीतसिंहजी को समर्पित है, जो नवानगर (अब जामनगर) के पूर्व महाराजा थे. 1942 में महाराजा ने शरणार्थी पोलिश बच्चों के लिए जामनगर में पोलिश चिल्ड्रन कैंप की स्थापना की, जिन्हें द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यूएसएसआर से बाहर लाया गया था. इससे पहले प्रधानमंत्री का पोलैंड में भारतीय प्रवासियों के सदस्यों ने स्वागत किया. पिछले 45 वर्षों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पोलैंड की यह पहली यात्रा है. 

पीएम मोदी ने X पर लिखा, 'वारसॉ में कोल्हापुर स्मारक पर श्रद्धांजलि अर्पित की. यह स्मारक कोल्हापुर के महान शाही परिवार को श्रद्धांजलि है. यह शाही परिवार द्वितीय विश्व युद्ध की भयावहता के कारण विस्थापित पोलिश महिलाओं और बच्चों को आश्रय देने में सबसे आगे था. छत्रपति शिवाजी महाराज के आदर्शों से प्रेरित होकर, कोल्हापुर के महान शाही परिवार ने मानवता को हर चीज से ऊपर रखा और पोलिश महिलाओं और बच्चों के लिए सम्मान का जीवन सुनिश्चित किया. करुणा का यह कार्य पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा.'

Advertisement

भारत ने पोलिश शरणार्थियों को दी शरण

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, 1939 में, पोलैंड पर सोवियत संघ और जर्मनी द्वारा आक्रमण किया गया और इसे विभाजित कर दिया गया था. नतीजा यह हुआ कि जनरल सिकोरस्की के नेतृत्व वाली पोलिश सरकार लंदन में निर्वासन में चली गई. बड़ी संख्या में बच्चे, महिलाएं, अनाथ और विकलांग लोगों को सोवियत संघ में निर्वासित कर दिया गया, जहां उन्हें बेहद कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा.

जनरल सिकोरस्की ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल से पोलिश लोगों के लिए शरण की मांग की थी. चर्चिल ने तब भारत की ओर देखा जो उस समय ब्रिटिश शासन के अधीन था. जल्द ही, दिल्ली में नवानगर (अब जामनगर, गुजरात) के महाराजा जाम साहब दिग्विजय के राज्य में एक शरणार्थी शिविर स्थापित करने का निर्णय लिया गया.

कैंप में हर मूलभूत सुविधा की सुनिश्चित

इस मानवीय संकट से निपटने के लिए महाराजा दिग्विजयसिंहजी ने इन बच्चों को अपने राज्य नवानगर में शरण दी. उन्होंने छात्रावास बनवाए और शरणार्थियों के लिए भोजन, कपड़े, मेडिकल केयर और शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाएं सुनिश्चित कीं. उन्होंने बच्चों के लिए पढ़ाई-लिखाई की खास व्यवस्था की. उन्होंने पोलिश टीचर्स का इंतजाम किया जो शरणार्थी बच्चों को पढ़ाते थे. उनके इन प्रयासों से अशांति से जूझ रहे लोगों को सामान्य स्थिति का आभास हुआ.

Advertisement

पोलैंड में है 'स्क्वायर ऑफ द गुड महाराजा'

उन्होंने थिएटर ग्रुप, आर्ट स्टूडियो और सांस्कृतिक गतिविधियों की भी व्यवस्था की. बालाचडी में पोलिश अनाथों को शरण देने के लिए जाम साहब को आज भी पोलैंड में याद किया जाता है. पोलैंड ने राजधानी वारसॉ में एक चौराहे का नाम उनके नाम पर रखकर महाराजा दिग्विजयसिंहजी को सम्मानित किया है, जिसे 'स्क्वायर ऑफ द गुड महाराजा' के नाम से जाना जाता है. 

Live TV

Advertisement
Advertisement