प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के 76 वें सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल आतंकवाद के लिए नहीं होना चाहिए. आतंकवाद को हर हाल में रोकना ही होगा. अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को इसके लिए एक सुर में आवाज उठानी होगी. प्रतिगामी सोच के साथ, जो देश आतंकवाद का राजनीतिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं, उन्हें ये समझना होगा कि आतंकवाद, उनके लिए भी उतना ही बड़ा खतरा है. पीएम मोदी ने कहा कि दुनिया के सामने चरमपंथ का खतरा बढ़ता जा रहा है. वैज्ञानिक दृष्टिकोण, प्रगतिवादी सोच को बढ़ाना जरूरी हो गया है.
पीएम मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए कहा कि हमें अपनी आने वाली पीढ़ियों को जवाब देना है कि जब फैसले लेने का समय था, तब जिन पर विश्व को दिशा देने का दायित्व था, वो क्या कर रहे थे? आज विश्व के सामने प्रतिगामी सोच और चरमपंथी का खतरा बढ़ता जा रहा है. इन परिस्थितियों में, पूरे विश्व को विज्ञान आधारित, तर्कसंगत और प्रगतिशील सोच को विकास का आधार बनाना ही होगा.
उन्होंने कहा कि साइंस बेस्ड अप्रोच को मजबूत करने के लिए भारत, अनुभव पर आधारित पढ़ाई को बढ़ावा दे रहा है.
हमारे यहां, स्कूलों में हजारों अटल टिंकरिंग लैब्स खोली गई हैं, इंक्यूब्येटर्स बने हैं और एक मजबूत स्टार्ट-अप इकोसिस्टम विकसित हुआ है. अपनी आजादी के 75वें वर्ष के उपल्क्ष्य में, भारत 75 ऐसे सैटेलाइट्स को अंतरिक्ष में भेजने वाला है, जो भारतीय विद्यार्थी, स्कूल-कॉलेजों में बना रहे हैं.
वहीं दूसरी ओर, प्रतिगामी सोच के साथ, जो देश आतंकवाद का पॉलिटिकल टूल के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं, उन्हें ये समझना होगा कि आतंकवाद, उनके लिए भी उतना ही बड़ा खतरा है. ये सुनिश्चित किया जाना बहुत जरूरी है कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल आतंकवाद फैलाने और आतंकी हमलों के लिए ना हो. हमें इस बात के लिए भी सतर्क रहना होगा कि वहां की नाजुक स्थितियों का कोई देश, अपने स्वार्थ के लिए, एक टूल की तरह इस्तेमाल करने की कोशिश नहीं करे.
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इस समय अफगानिस्तान की जनता को, वहां की महिलाओं और बच्चों को, वहां की माइनॉरिटीज को, मदद की जरूरत है, और इसमें हमें अपना दायित्व निभाना ही होगा.
वहीं समुद्री सीमा को लेकर पीएम ने कहा कि हमारे समंदर भी हमारी साझा विरासत हैं. इसलिए हमें ये ध्यान रखना होगा कि अपने सागर संसाधन का हम यूज करें, एब्यूज नहीं. हमारे समंदर, अंतरराष्ट्रीय व्यापार की लाइफलाइन भी हैं. इन्हें हमें विस्तार और छोड़ने की दौड़ से बचाकर रखना होगा. Rule-based world order को सशक्त करने के लिए, अंतरराष्ट्रीय समुदाय को एक सुर में आवाज उठानी ही होगी. सुरक्षा परिषद में भारत की प्रेसिडेंसी के दौरान बनी विस्तृत सहमति, विश्व को मैरीटाइम सेक्योरिटी के विषय में आगे बढ़ने का मार्ग दिखाती है.