भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narenda Modi), पोलैंड दौरे के बाद शुक्रवार, 24 अगस्त को यूक्रेन पहुंचे और उन्होंने राष्ट्रपति वलोदिमीर जेलेंस्की से मुलाकात की. दोनों नेताओं ने हाथ मिलाया और फिर नरेंद्र मोदी ने यूक्रेन के राष्ट्रपति को गले लगा लिया. पीएम मोदी ने जेलेंस्की को भारत आने का न्योता भी दिया. मुलाकात के दौरान नरेंद्र मोदी ने रूस-यूक्रेन के बीच चल रही जंग को खत्म करने पर भी चर्चा की.
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, 'समाधान का रास्ता केवल बातचीत और कूटनीति के जरिए ही निकाला जा सकता है, हमें बिना समय बर्बाद किए इस दिशा में आगे बढ़ना चाहिए. दोनों पक्षों को इस संकट से बाहर निकलने के लिए एक साथ बैठना चाहिए.' उन्होंने जेलेंस्की से रूस के साथ बातचीत करने की गुजारिश की.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जेलेंस्की से कहा, 'मैं आपको यकीन दिलाता हूं कि भारत शांति की दिशा में किसी भी कोशिश में एक्टिव भूमिका निभाने के लिए तैयार है. अगर मैं व्यक्तिगत रूप से इसमें कोई भूमिका निभा सकता हूं, तो मैं ऐसा करूंगा, यह मैं आपको एक दोस्त के रूप में आश्वस्त करना चाहता हूं.'
पीएम मोदी ने ‘बातचीत और कूटनीति’ को एकमात्र समाधान बताया और रूस के साथ शांति मध्यस्थता के लिए एक दोस्त के रूप में व्यक्तिगत रूप से मदद करने की पेशकश की. उन्होंने कीव में एक संयुक्त बयान के दौरान जोर देकर कहा, 'भारत इस युद्ध में कभी भी न्यूट्रल नहीं रहा, हम शांति के पक्ष में हैं.'
वहीं, यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोदिमीर जेलेंस्की ने रूस के साथ जंग में भारत से यूक्रेन को अपना समर्थन देने की बात कही और संकट में 'संतुलित रुख' अपनाने से परहेज करने की गुजारिश की. उन्होंने कहा, 'जंग को खत्म करना और न्यायपूर्ण शांति स्थापित करना यूक्रेन की प्राथमिकता है.'
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले महीने (जुलाई) रूस के दौरे पर थे. इस यात्रा ने ग्लोबल स्तर पर सुर्खियां बटोरी थी. नरेंद्र मोदी की मॉस्को यात्रा, कीव में बच्चों के अस्पताल पर बमबारी के आस-पास हुई थी, जिससे यूक्रेन और पश्चिमी देश नाराज हुए थे. पीएम मोदी ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को भी गले लगाया था, जिस पर पश्चिमी देशों और खुद जेलेंस्की की तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आई थीं. यूक्रेन के राष्ट्रपति ने इस बैठक को 'बहुत बड़ी निराशा और शांति प्रयासों के लिए विनाशकारी झटका' कहा था.
जेलेंस्की ने विशेष रूप से आलोचना करते हुए कहा था, 'दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के नेता को मॉस्को में दुनिया के सबसे खूंखार अपराधी को गले लगाते देखकर निराश हूं.'
इस तरह से पीएम मोदी की कीव यात्रा को कई क्षेत्रों में कूटनीतिक संतुलन बनाने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है. वहीं, विदेश मंत्री जयशंकर ने गले लगने को 'भारत की संस्कृति' का हिस्सा बताया था.
हालांकि, पीएम मोदी के यूक्रेन और रूस दौरे के वक्त एक बड़ा फर्क भी देखने को मिला. मॉस्को यात्रा के दौरान नरेंद्र मोदी ने अज्ञात सैनिक की समाधि पर श्रद्धांजलि अर्पित की थी और युद्ध में मारे गए रूसी सैनिकों के किसी स्मारक पर नहीं गए. वहीं, कीव में उन्होंने यूक्रेन के राष्ट्रीय संग्रहालय में बच्चों पर आधारित शहीद प्रदर्शनी का दौरा किया. यह उन बच्चों की याद में स्थापित किया गया था, जिन्होंने संघर्ष में अपनी जान गंवाई.
‘राष्ट्रीय हित से समझौता नहीं कर सकता हिंदुस्तान...’
दिल्ली में जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के सेंटर ऑफ यूरोपीयन स्टडीज की प्रोफेसर उम्मु सलमा बावा aajtak.in के साथ बातचीत में कहती हैं, 'भारत किसी एक का पक्ष नहीं ले सकता है, वो अपनी कूटनीति के तहत काम करेगा. भारत अपना नेशनल इंट्रेस्ट पहले रखेगा. भारत के लिए दोनों देशों से संबंध बनाकर रखना बहुत जरूरी है.'
वो आगे कहती हैं कि भारत का 75 फीसदी से ज्यादा सूरजमुखी का तेल यूक्रेन से आता है. 20 हजार से ज्यादा स्टूडेंट्स वहां पर मेडिकल की पढ़ाई कर रहे थे. भारत के लिए रूस और यूक्रेन दोनों जरूरी है, जैसा कि पीएम मोदी ने कहा, 'यहां दो पक्ष है- यूद्ध और शांति, हम शांति के पक्ष में खड़े हैं.' यानी भारत युद्ध के पक्ष में नहीं है और भारत पक्षपात नहीं करेगा.
'जेलेंस्की नही बताएंगे भारत की विदेश नीति...'
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के प्रोफेसर मोहम्मद मोहिबुल हक़ कहते हैं, 'भारत की विदेश नीति क्या होनी चाहिए, ये जेलेंस्की नही बताएंगे. हमारा जो नेशनल इंट्रेस्ट है, हम उससे समझौता नहीं कर सकते. अगर जेलेंस्की ये उम्मीद करते हैं कि जिस तरह से NATO और अमेरिका खड़ा है, उसी तरह से हिंदुस्तान खड़ा हो जाए, तो ये मुमकिन नहीं है. क्योंकि रूस 1947 से लेकर आज तक हमारा अच्छा पार्टनर रहा है.'
वे आगे कहते हैं कि रूस को हम यूक्रेन के लिए इन्वेडर नहीं बोल सकते. अगर भारत जेलेंस्की के साथ खड़ा हो जाए तो बातचीत कैसे होगी. हिंदुस्तान की जो अपनी पोजीशन है, उसको रूस भी स्वीकार करता है. ये बेहतर मौका है कि हिंदुस्तान रूस-यूक्रेन को एक मेज पर लाकर जंग के नुकसानों से बचाए.'
साल 1991 में USSR के पतन के बाद यूक्रेन का जन्म हुआ. यूक्रेन की आजादी के बाद पहली बार किसी भारतीय प्रधानमंत्री का यूक्रेन दौरा हुआ है. भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कीव में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान पीएम मोदी की यूक्रेन यात्रा को एक ऐतिहासिक घटना बताया.
वहीं, यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोदिमीर जेलेंस्की ने कहा, 'देश की आजादी के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली यूक्रेन यात्रा ने इतिहास रच दिया है. भारत और यूक्रेन ने कई क्षेत्रों में चार दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए हैं.' रिपोर्ट के मुताबिक, अधिकारियों ने बताया कि इन समझौतों से कृषि, खाद्य उद्योग, चिकित्सा, संस्कृति और मानवीय सहायता के क्षेत्रों में सहयोग सुनिश्चित होगा.
फरवरी 2022 में रूस-यूक्रेन जंग शुरू होने के बाद द्विपक्षीय संबंधों में गिरावट आई है. वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, भारत-यूक्रेन व्यापार का वॉल्यूम 2021-22 में 3.39 बिलियन डॉलर से घटकर 2022-23 और 2023-24 में क्रमशः 0.78 बिलियन डॉलर और 0.71 बिलियन डॉलर रह गया है.
पीएम मोदी के यूक्रेन दौरे के वक्त दोनों पक्षों ने भारतीय-यूक्रेनी अंतर-सरकारी आयोग (Indian-Ukrainian Intergovernmental Commission: IGC) से द्विपक्षीय व्यापार और आर्थिक संबंधों को न केवल संघर्ष के पहले वाले स्तर पर बहाल करने, बल्कि उन्हें और ज्यादा मजबूत करने के लिए सभी मुमकिन तरीके तलाशने पर सहमति व्यक्त की.
‘सिर्फ हिंदुस्तान ही ऐसा कर सकता है…’
प्रोफेसर उम्मु सलमा बावा कहती हैं, 'मौजूदा वक्त में यूरोप में भू-राजनीतिक स्थिति बदली हुई है और पिछले ढाई साल से रूस-यूक्रेन जंग चल रही है. यूक्रेन को पश्चिमी देशों का पूरा सपोर्ट मिला हुआ है और रूस पर कई तरह की पाबंदियां लगी हुई हैं. पीएम मोदी पिछले महीने रूस गए थे और अब पोलैंड और यूक्रेन गए. नरेंद्र मोदी का यूक्रेन विजिट बहुत अहमियत रखता है और ऐतिहासिक है क्योंकि हिंदुस्तान ही एक ऐसा देश है, जो दोनों पक्षों के साथ बात कर सकता है. उम्मीद की जा रही है कि इसके बाद बातचीत से कुछ अच्छा निकलकर आ सकता है और शांति स्थापित हो सकती है.'
'डिफेंस मोड में है रूस...'
प्रोफेसर मोहम्मद मोहिबुल हक़ कहते हैं, 'दूसरे विश्व युद्ध के बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि रूस में किसी ने घुसपैठ किया है. ऐसा वक्त, जब रूसी टेरिटरी में यूक्रेन की फोर्सेज घुस चुकी हैं. इसके बाद रूस खुद डिफेंसिव मोड में आ चुका है और ये बहुत ही अहम वक्त है, जब रूस और यूक्रेन को एक टेबल पर लाया जा सके. आज रूस को भी नेगोशिएशन और डायलॉग का अंदाजा हो रहा होगा और यूक्रेन को भी इसकी बहुत ज्यादा जरूरत है. ऐसी हालत में पीएम मोदी का यूक्रेन विजिट अहम है. विजिट से पहले हो सकता है बैकडोर डिप्लोमेसी के जरिए रूस ने कुछ इशारा दिया हो.'
वे आगे कहते हैं कि पीएम मोदी का यूक्रेन दौरा अपने आप में इसलिए भी बहुत ज्यादा अहमियत रखता है क्योंकि हमें याद रखना चाहिए कि जब कोल्ड वॉर का जमाना था, उस वक्त भारत ने NAM (Non-Aligned Movement) का नेतृत्व किया था. हिंदुस्तान उस वक्त इंटरनेशनल कम्युनिटी में बहुत रिस्पेक्ट कमांड करता था. मौजूदा वक्त में कोल्ड वॉर पॉलिटिक्स नहीं है लेकिन रूस एक मिलिट्री और एनर्जी सुपरपॉवर की हैसियत से मौजूद है और दूसरी तरफ, NATO इकोनॉमिक और मिलिट्री पॉवर की हैसियत से मौजूद है. ऐसी हालत में इन दोनों फोर्सेज को आप इग्नोर नहीं कर सकते, अगर भारत को ग्लोबल रोल प्ले करना है. भारत की स्वीकारता रूस और यूक्रेन दोनों जगहों पर है और भारत अपनी डिप्लोमेसी से रोल प्ले करके पूरी दुनिया का ध्यान खींच सकता है.'
ब्रिटिश भू-राजनीतिक विचारक हेलफोर्ड मैकेंडर ने 20वीं सदी की शुरुआत में कहा था, 'जो पूर्वी यूरोप पर शासन करता है, वह हार्टलैंड पर शासन करता है. जो हार्टलैंड पर शासन करता है, वह विश्व-द्वीप पर शासन करता है. जो विश्व-द्वीप पर शासन करता है, वह दुनिया पर शासन करता है.'
यूक्रेन के जैसे, 1979 के बाद से यह किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पोलैंड की पहली यात्रा भी है. 1979 में मोरारजी देसाई ने वारसॉ की यात्रा की थी. सोवियत संघ के पतन के बीच यूक्रेन के उभरने के बाद से किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री ने कीव का दौरा नहीं किया था. ऐसे में युद्ध के बीच पीएम मोदी का यूरोप दौरा कई मायनों में अहम नजर आता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस हफ्ते पोलैंड और यूक्रेन की यात्रा यूरोप के नजरिए से भी अहम है क्योंकि भारत यूरोप के चार बड़े देशों- रूस, जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन के साथ ही अपने संबंधों पर ज्यादा गौर करता रहा है. वहीं, पिछले एक दशक में, भारत ने यूरोप के अलग हिस्सों में भी अपनी पहुंच बढ़ाने की कोशिश की है. प्रधानमंत्री के रूप में अपने पहले दो कार्यकालों के दौरान, नरेंद्र मोदी ने 27 बार यूरोप की यात्रा की और 37 यूरोपीय सरकार के प्रमुखों का स्वागत किया.
भारत ने उठाए कई अहम कदम
भारत ने इटली (मरीन मामला) जैसे प्रमुख भागीदारों के साथ कुछ लंबित समस्याओं को सुधारने की कोशिश की, जिसने दिल्ली और ब्रुसेल्स के बीच वार्षिक शिखर सम्मेलनों को रोक दिया था. मोदी सरकार ने यूरोपीय संघ के साथ व्यापार वार्ता को फिर से शुरू किया, EFTA ग्रुप (The European Free Trade Association) के साथ एक व्यापार और इन्वेस्टमेंट एग्रीमेंट किया, यूरोप के साथ एक ट्रेड और टेक्नोलॉजी काउंसिल की स्थापना की, यूके के साथ एक टेक्नोलॉजी सेक्योरिटी इनिशिएटिव शुरू की, फ्रांस के साथ एक ज्वाइंट डिफेंस इंडस्ट्रियल रोडमैप की रूपरेखा तैयार की, इंडो-पैसिफिक में यूरोप के साथ रीजनल सेक्योरिटी ऑपरेशन शुरू किया और इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप कॉरिडोर (IMEC) का अनावरण किया. भारत ने नॉर्डिक (Nordic) और बाल्टिक (Baltic) सहित यूरोप के कई उप-क्षेत्रों के साथ सामूहिक कूटनीति शुरू की है.
पिछले महीने (जुलाई) पीएम मोदी ने ऑस्ट्रिया की यात्रा की. भारत की तरफ से यह यात्रा जून 1983 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की ऑस्ट्रिया यात्रा के लगभग 41 साल बाद हुई है. ऑस्ट्रिया के साथ भारत के संबंध औपचारिक रूप से 1949 में स्थापित हुए थे. इसके बाद, 1955 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की ऑस्ट्रिया यात्रा नए आजाद देश में किसी विदेशी नेता की पहली यात्रा थी.
worldometers.info के मुताबिक, पोलैंड और यूक्रेन यूरोपीय जनसंख्या रैंकिंग (रूस सहित) में सातवें और आठवें स्थान पर हैं. World Bank के मुताबिक, पोलैंड मध्य यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. इसके अलावा यूरोप के नजरिए से देखा जाए, तो टॉप इकोनॉमी वाले देशों में शामिल है.
'सेंट्रल और ईस्टर्न यूरोप भौगोलिक रूप से अहम...'
उम्मु सलमा बावा कहती हैं, 'अगर हम सेंट्रल और पूर्वी यूरोप पर नजर डालें तो, पोलैंड के साथ भारत का 70 साल का संबंध है. और द्विपक्षीय संबंध को स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप में बदला गया है, यानी उसकी अहमियत और ज्यादा बढ़ाई गई है. पश्चिमी यूरोप देखें, तो फ्रांस के साथ 1997 से स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप है और जर्मनी के साथ भी भारत का अच्छा संबंध रहा है. आज के लिए अहमियत रखने वाले वैश्विक मुद्दों में सेंट्रल और ईस्टर्न यूरोप भौगोलिक रूप से बहुत ही स्ट्रैटेजिक स्पेस बन गया है और पोलैंड खास तौर से, कनेक्टिविटी के हिसाब से नॉर्थ साउथ कॉरिडोर और ईस्ट-वेस्ट कॉरिडोर दोनों में इसका अहम स्थान है. पोलैंड की राजधानी के लिए नई दिल्ली से डायरेक्ट फ्लाइट है.'
वे आगे कहती हैं कि अगर ईस्ट यूरोप पर नजर डालें, तो पोलैंड एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था है, बहुत रफ्तार के साथ विकास हो रहा है. भारत के लिए निवेश के लिए भी अहमियत रखता है और पीएम मोदी ने भी कहा कि हम चाहते हैं, पोलैंड भारत आकर निवेश करे.
उम्मु सलमा बावा आगे कहती हैं कि ढाई साल की जंग के बाद सेंट्रल और ईस्टर्न यूरोप की अहमियत ट्रांसफॉर्म हो चुकी है क्योंकि हाल ही में स्वीडन और फिनलैंड भी NATO के मेंबर बन चुके हैं.
‘सेंट्रल यूरोप में पैर जमाना बहुत जरूरी…’
प्रोफेसर मोहिबुल हक़ कहते हैं, 'पोलैंड, ऑस्ट्रिया, यूरेशिया और सेंट्रल यूरोप जैसे इलाके कोल्ड वॉर के जमाने में किसी न किसी ब्लॉक में थे. ऐसी हालत में हिंदुस्तान के लिए उस वक्त मुमकिन नहीं था. मौजूदा वक्त में हिंदुस्तान ग्लोबल लेवल पर एक बड़ा रोल प्ले करना चाहता है. हमें मार्केट के साथ-साथ इन्वेस्टमेंट्स और कोलेबरेशन की जरूरत है. सेंट्रल और ईस्टर्न यूरोप में हिंदुस्तान को अपने पैर जमाने की कोशिश करना और उनके मार्केट में प्रवेश करना अपने आप में भारत की इनोनॉमिक डिप्लोमेसी के लिए बहुत जरूरी है.'
वे आगे कहते हैं कि आज के वक्त में हिंदुस्तान को सिर्फ जर्मनी, फ्रांस, रूस और ब्रिटेन से ही नहीं बल्कि छोटे-छोटे देशों से भी डील करना होगा. पोलैंड के पास काफी हथियार है. इसके अलावा, पोलैंड, ईस्टर्न और वेस्टर्न यूरोप को कनेक्ट करता है. पोलैंड और ऑस्ट्रिया जैसे देशों में हिंदुस्तान का जाना कूटनीतिक विस्तार और वक्त की जरूरत है.
उम्मु सलमा बावा कहती हैं, 'दो राष्ट्रों के बीच संबंध द्विपक्षीय होते हैं और वे कितने मजबूत हैं, उनके अपने आंकड़ों के हिसाब से देखना पड़ता है. भारत और रूस का संबंध ऐतिहासिक है, यूक्रेन यात्रा से इस पर असर नहीं होने वाला है. 70 के दशक में जब भारत को सपोर्ट चाहिए था, तो सोवियत यूनियन ही खड़ा था. वो ऐतिहासिक चीज दोनों देशों को जोड़ती है. इसमें ट्रस्ट का फैक्टर बहुत अहमियत रखता है.'
वो आगे कहती हैं, 'इसके साथ ही हमारा संबंध पश्चिमी देशों के साथ भी ऐतिहासिक है. और फ्रांस, जर्मनी के साथ भी भारत के ऐतिहासिक संबंध हैं. रूस के साथ हमारा संबंध विश्वास का संबंध है. भौगोलिक रूप से भले उतार-चढ़ाव देखा गया होगा लेकिन संबंध टिके हुए हैं.'
‘हिंदुस्तान से नाराजगी नहीं झेल सकता रूस…’
प्रोफेसर मोहम्मद मोहिबुल हक़ कहते हैं, 'पीएम की यूक्रेन विजिट से रूस के साथ हमारे संबंधों पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला क्योंकि हिंदुस्तान ने ऐसा कोई व्यवहार नहीं किया है. जेलेंस्की ने चाहा कि भारत की तरफ से ऐसा कोई स्टेटमेंट आ जाए लेकिन हमारी तरफ से बिल्कुल गार्डेड लैंग्वेज में अपनी बात कही गई है.'
वे आगे कहते हैं कि पीएम मोदी के यूक्रेन जाने से रूस को नाराजगी नहीं होनी चाहिए. सबसे जरूरी बात है कि मौजूदा वक्त में हिंदुस्तान से नाराजगी रूस खुद नहीं झेल सकता है. रूस की जितनी भारत को जरूरत है, उससे कहीं ज्यादा भारत की जरूरत रूस को है. रूस और भारत के बीच जो दोस्ती है, उसमें यूक्रेन दौरे से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है.