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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा को लेकर भारी उत्साह है. अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि यह यात्रा दोनों देशों के रिश्तों को आसमान की ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए एक 'स्प्रिंगबोर्ड' की तरह काम करेगी, रक्षा औद्योगिक सहयोग में नए बेंचमार्क सेट करेगी और रिश्तों को तेजी से आगे बढ़ाएगी. उनका कहना है कि वो भारत के साथ लंबे समय की साझेदारी के लिए काम कर रहे हैं.
राष्ट्रपति जो बाइडेन के प्रमुख मंत्रियों ने हाल के दिनों में भारत के साथ पूरी स्पष्टता और उत्साह के साथ बात की है. इस बातचीत के दौरान अमेरिका मंत्रियों ने पुरानी धारणाओं को तोड़ने और अमेरिकी नौकरशाही के भीतर भारत को लेकर अभी भी मौजूद झिझक को दूर करने के लिए पहल पर जोर दिया है.
व्हाइट हाउस मोदी की यात्रा को एक ऐसे धागे के रूप में पेश कर रहा है जो दोनों देशों के रिश्तों को बांधने का काम करेगा और उसे ऊंचाई पर ले जाएगा. इंडो-पेसिफिक के लिए व्हाइट हाउस के समन्वयक कर्ट कैंपबेल के शब्दों में कहें तो, दोनों देशों के रिश्ते भारी परिवर्तन के दौर से गुजर रहे हैं. कैंपबेल ने इसी महीने की शुरुआत में भारत की यात्रा की थी.
अमेरिका और भारत के बीच वरिष्ठ स्तर के मंत्रियों की यात्राएं रिश्ते मजबूत करने का अहम उपाय हैं. यह दिखाता है कि दुनिया के सामने आने वाली बड़ी चुनौतियों का सामना करने के लिए दोनों ही पक्ष साथ मिलकर काम करने और एक-दूसरे का पूरक होने के लिए प्रतिबद्ध हैं.
साल की शुरुआत में ही दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों- अजीत डोभाल और जेक सुलिवन ने मुलाकात की. इस मुलाकात में दोनों ने रक्षा सहयोग, रणनीतिक व्यापार, शिक्षा, अंतरिक्ष में सहयोग, सप्लाई चेन के निर्माण पर पर बात की. उन्होंने iCET (Critical and Emerging Technologies) का उद्घाटन भी किया.
रूस और चीन को लेकर भारत के रुख पर अमेरिका की नजर
पेन्सिलवेनिया एवेन्यू (व्हाइट हाउस) के दूसरे छोर पर कैपिटल हिल (अमेरिकी संसद भवन) स्थित है जहां पीएम मोदी से अलग अपेक्षाएं हैं. जब वो अमेरिकी संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करेंगे तब रूस और चीन पर को लेकर भारत के रुख पर कड़ी नजर रखी जाएगी.
मंगलवार को यूएस-इंडिया बिजनेस काउंसिल की तरफ से आयोजित एक आइडियाज समिट में दो प्रमुख अमेरिकी सांसदों ने रूस-यूक्रेन युद्ध में यूक्रेन का पक्ष न लेने को लेकर भारत की कड़ी निंदा की थी. ये दोनों ही सांसद भारत के पुराने दोस्त माने जाते हैं.
इंडिया कॉकस के सह-अध्यक्ष डेमोक्रेट सांसद मार्क वार्नर ने समिट में कहा कि अब भारत महान और दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण देशों में से एक के रूप में उभरकर सामने आया है. ऐसे में भारत अब विश्व के प्रमुख मुद्दों से बचकर नहीं निकल सकता जैसे वो यूक्रेन पर रूस के आक्रमण को लेकर कर रहा है.
उनके साथ बैठे रिपब्लिकन सांसद जॉन कार्निन ने कहा, 'यह थोड़ा निराशाजनक था कि जब रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया, तब भारत ने इसे लेकर रूस की आलोचना नहीं की.'
हालांकि, कॉर्निन ने यह बात भी स्वीकार की कि भारत रूस के रिश्तों का 50 साल पुराना इतिहास रहा है और भारत रूसी हथियारों पर निर्भर है.
वार्नर ने शिखर सम्मेलन के दौरान यह भी कहा कि वह चाहते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी भारत में असंतोष की आवाजों को जगह दें. उन्होंने कहा कि वो पीएम मोदी से कानून के राज के लिए प्रतिबद्धता, निष्पक्ष राजनीतिक प्रक्रिया और स्वतंत्र प्रेस चाहते हैं. उन्होंने कहा कि पत्रकारों के खिलाफ मामलों, कांग्रेस नेता राहुल गांधी की संसद सदस्यता खत्म किए जाने और अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा के संदर्भ में भारत सरकार की कुछ प्रतिक्रियाओं ने उन्हें परेशान किया है.
साथ ही वार्नर ने भारत की तारीफ करते हुए कहा कि यह समय भारत का है. उन्होंने सीमा विवाद को लेकर चीन का डटकर मुकाबला करने के लिए भी भारत की तारीफ की.
'अगर चाहते हैं कि पीएम मोदी की तारीफ हो....'
अगर पीएम मोदी और उनके पॉलिटिकल मैनेजर चाहते हैं कि अमेरिकी संसद में पीएम की खूब तारीफ हो तो इसके लिए उन्हें रूस और चीन पर अपना रुख स्पष्ट करना होगा. रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत की तटस्थ नीति पर वार्नर और कॉर्निन की टिप्पणियां दिखाती हैं कि इसे लेकर अमेरिकी संसद काफी निराश है.
इससे यह भी पता चलता है कि अमेरिकी संसद सरकार की एक अलग शाखा के रूप में स्वतंत्र तरीके से काम करती है जिसका खुद का एक एजेंडा है और वो अपने फैसले खुद लेती है.
पीएम मोदी के संबोधन के दौरान अमेरिकी सांसद उनसे ऐसे शब्द सुनना चाहेंगे जिससे यह लगे कि भारत रूस को एक आक्रमणकारी और चीन को 'हड़प की नीति रखने वाला देश' समझता है. ऐसे में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि भारतीय पक्ष पीएम मोदी के भाषण को क्या दिशा देता है.
इस साल अब तक केवल दो नेताओं ने अमेरिका संसद को संबोधित किया है- यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की और दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति यून सुक येओल.
पीएम मोदी की यात्रा के दौरान मोदी के आलोचक कुछ सांसदों, इल्हान उमर और राशिदा तलीब के बयान और ट्वीट देखने को मिल सकते हैं. देखना होगा कि अमेरिका का डेमोक्रेट नेतृत्व मोदी के आलोचकों को शांत रहने के लिए राजी कर पाता है या नहीं.
कई समझौते होने की उम्मीद
अमेरिकी प्रशासन के अधिकारियों ने वादा किया है कि मोदी की यात्रा के दौरान कई समझौते होंगे और रिश्तों में और मिठास आएगी. इस दौरान भारत में जनरल इलेक्ट्रिक जेट इंजनों का सह-उत्पादन करने के लिए एक समझौता हो सकता है. इस समझौते में जेट इंजनों को असेंबल करने और सिस्टम्स को मिलकर बनाने पर सहमति हो सकती है.
सूत्रों का कहना है कि इस समझौते के तहत अमेरिका भारत को 60 फीसद तकनीक देगा और यह प्रक्रिया कई चरणों में संपन्न होगी. पहले अमेरिका भारत को यह तकनीक देने से बचता रहा था लेकिन अब वो तकनीक साझा करने पर राजी हो गया है जो दोनों देशों के बीच एक महत्वपूर्ण विकास है.
सेमीकंडक्टर्स के क्षेत्र में भी दोनों देश समझौता कर सकते हैं. भारत चाहता है कि अमेरिकी कंपनियां असेंबलिंग, टेस्टिंग और पैकेजिंग के लिए एक नया इकोसिस्टम तैयार करने में भारत की मदद करें. अमेरिकी अधिकारियों और अमेरिकी सांसदों ने भी अमेरिका के प्राइवेट सेक्टर से यह आग्रह किया है कि वो सेमीकंडक्टर के लिए भारत को चीन का विकल्प मानें.
पहले जब भारत अमेरिका से कहता था कि वो सेमीकंडक्टर्स के क्षेत्र में अपनी कंपनियों को निवेश के लिए कहे तब अमेरिका कहता था कि वो प्राइवेट सेक्टर को आदेश नहीं दे सकता कि उसे क्या करना है. लेकिन अब वो अपनी प्राइवेट कंपनियों के समक्ष चीन के विकल्प के रूप में भारत को रख रहे हैं.
अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाएंगे पीएम मोदी
मोदी की 21-24 जून की यात्रा के दौरान दोनों पक्ष रिश्तों में दृढ़ संकल्प और इरादा दिखाने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश करेंगे. पीएम मोदी की यात्रा न्यूयॉर्क से शुरू होगी जहां प्रधानमंत्री संयुक्त राष्ट्र में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाएंगे.
मोदी उसी दिन वाशिंगटन के लिए उड़ान भरेंगे और ब्लेयर हाउस में रुकेंगे. ब्लेयर हाउस राष्ट्रपति भवन के गणमान्य लोगों से मिलने के लिए देश का गेस्ट हाउस है. इसे दुनिया का सबसे बेहतरीन होटल भी कहा जाता है.
पीएम मोदी अमेरिका की प्रथम महिली जिल बाइडेन के साथ एक कार्यक्रम में भाग लेंगे. यह कार्यक्रम शिक्षा पर आधारित है जिसमें अमेरिका में भारत के राजदूत तरनजीत संधू अमेरिकी यूनिवर्सिटीज और भारतीय यूनिवर्सिटीज के बीच अधिक संबंध बनाने के प्रयासों पर बात करेंगे.
पीएम मोदी अपनी यात्रा के पहले ही दिन जो बाइडेन और उनके परिवार की तरफ से आयोजित डिनर में शामिल होंगे. संभावना है कि दोनों नेता व्हाइट हाउस में कुछ वक्त बिताएंगे. पीएम मोदी और बाइडेन ब्लेयर हाउस से व्हाइट हाउस तक चलकर जाएंगे या ड्राइव करेंगे, यह सुरक्षा के लिहाज से बड़ा सवाल है.
अमेरिकी संसद के संयुक्त सत्र को दो बार संबोधित करने वाले पीएम बनेंगे मोदी
पीएम मोदी का आधिकारिक राजकीय यात्रा 22 जून को व्हाइट हाउस के लॉन में औपचारिक स्वागत के साथ शुरू होगी. इसके बाद पीएम मोदी और बाइडेन की द्विपक्षीय वार्ता होगी. दोपहर में अमेरिकी संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करने के लिए पीएम मोदी कैपिटल हिल जाएंगे.
इसी के साथ ही पीएम मोदी अमेरिकी संसद के संयुक्त सत्र को दो बार संबोधित करने वाले एकमात्र भारतीय प्रधानमंत्री बन जाएंगे.
शाम को प्रधानमंत्री स्टेट डिनर के लिए व्हाइट हाउस आएंगे जहां वो भारतीय अमेरिकी समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले 250 मेहमानों के साथ डिनर करेंगे. इस दौरान भारतीय रंग में रंगे कलाकार पीएम मोदी की मनोरंजन करेंगे.
23 जून को मोदी उप राष्ट्रपति कमला हैरिस और विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन की तरफ से आयोजित लंच के लिए अमेरिकी विदेश मंत्रालय जाएंगे. उम्मीद है कि पीएम मोदी की यात्रा के दौरान भारतीय अमेरिका समुदाय भारी संख्या में वाशिंगटन, कैपिटल हिल और व्हाइट हाउस के बाहर जमा होकर पीएम मोदी का स्वागत करेगा.
एक तरफ यात्रा को सफल बनाने की मेहनत तो दूसरी तरफ प्रदर्शन की तैयारी
एक तरफ जहां पीएम मोदी की अमेरिका यात्रा को सुचारु रूप से चलाने और उसे सफल बनाने के लिए भारतीय राजदूत और उनकी टीम कड़ी मेहनत कर रही है. वहीं दूसरी तरफ, अमेरिका में कुछ समूह पीएम मोदी के विरोध की तैयारी में हैं. उदाहरण के लिए, एक अति सक्रिय अमेरिकी समूह ने मांग की है कि मोदी को अमेरिकी संसद को संबोधित न करने दिया जाए.
माना जा रहा है कि प्रदर्शनकारी बीजेपी और पीएम मोदी के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर करने के लिए विरोध प्रदर्शन भी कर सकते हैं.
भारत-अमेरिका की सरकारें संबंध मजबूत करने की समर्थक
हालांकि, कोशिशों के बावजूद भी अमेरिका स्थित पीएम मोदी के आलोचक नाकामयाब रहे हैं. मजबूत द्विपक्षीय संबंध अमेरिका की डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन सरकारों और भारत की यूपीए और एनडीए सरकारों की दो दशकों की कड़ी मेहनत पर टिके हैं. दोनों ही देशों की सभी पार्टियों में द्विपक्षीय संबंधों को लेकर समर्थन रहा है.
बाइडेन अमेरिका और भारतीयों हितों के रक्षक माने जाते हैं जो आज एशिया को चीनी दबाव से बचाए रखने के लिए प्रतिबद्ध दिखते हैं. भले ही वो रूस को लेकर इस मामले में इतने सख्त न हों. विदेश मंत्री ब्लिंकन ने मंगलवार के आइडियाज समिट के अपने भाषण में कहा कि जो बाइडेन लंबे समय से भारत के साथ एक मजबूत साझेदारी में विश्वास करते हैं. भारत को लेकर बाइडेन का यह विचार कोई नया नहीं है बल्कि वो दशकों से ऐसा सोचते हैं.
जो बाइडेन पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तरफ से शुरू की गई इंडो-पैसिफिक नीति को आगे ले जा रहे हैं, क्वाड को आगे बढ़ा रहे हैं. यही काम मोदी और उनके मंत्री भी कर रहे हैं. वो अमेरिका के साथ कई क्षेत्रों में मिलकर काम करने पर जोर दे रहे हैं.