जाहिर है पिछले कुछ सालों में महत्वाकांक्षी शी जिनपिंग ने काफी उग्रता के साथ सभी पड़ोसी देशों के क्षेत्रों पर अतिक्रमण करने की कोशिश की है. फिर चाहे वो जापान हो, फिलीपिंस, वियतनाम, भारत, या भूटान. चीन ने साउथ चाइना सी, ईस्ट चाइना सी पर भी अपना दावा किया है. जिसको लेकर आशियान देशों में भी नाराजगी है.
यह बात गौर करने लायक है कि राष्ट्रपति शी ने चीन के अंदर भी लोकतंत्र को तो खत्म कर दिया है. पिछले एक साल से हॉन्गकांग में चल रहे विरोध प्रदर्शन और चीनी राष्ट्रपति द्वारा उसे दबाने की कोशिश भी इसी सोच का नतीजा है. हालात यह है कि जिनपिंग के खिलाफ उठने वाले सभी आवाजों को दबा दिया गया है.
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1950 तक खूबसूरत और शांति प्रिय कहलाने वाला बौद्ध देश तिब्बत आज चीन के विस्तारवाद का शिकार बन गया है. वहीं ताइवान जैसा प्रोग्रेसिव और एडवांस सोच वाला देश भी चीन की कार्यनीतियों की वजह से काफी दबाव झेल रहा है. अभी हाल ही में ताइवान ने चीन की शर्त को ठुकराते हुए वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन की मीटिंग में भाग लेने से मना कर दिया था. जाहिर है ताइवान डब्ल्यूएचओ का सदस्य नहीं है और वह वर्ल्ड हेल्थ असेंबली में पर्यवेक्षक के तौर पर भाग लेने के लिए कोशिश कर रहा था. चीन ने ताइवान को अपना हिस्सा बताते हुए उसे ऐसा करने से मना कर दिया.
जबकि ताइवान साउथ ईस्ट एशिया में उन दो देशों में शामिल है जिसने कोविड 19 के खिलाफ बेहतरीन काम किया है. दूसरा देश है वियतनाम. क्या डब्ल्यूएचओ ने कोविड-19 को लेकर ताइवान द्वारा उठाए गई चिंता पर ध्यान नहीं दिया और इसी वजह से आज वैश्विक तबाही फैली, जिसे कम किया जा सकता था? वहीं इस संदर्भ में अगर चीन की बात करें तो शी जिनपिंग ने पूरे मामले में सच्चाई को छिपाया. यही वजह है कि आज पूरी दुनिया में उनके खिलाफ आवाज उठाई जा रही है.
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जिनपिंग ने अपनी बादशाहत को बरकरार रखने के लिए चीनी कम्यूनिस्ट सिस्टम को भी बरगलाया है. यही वजह है कि आज वहां के नागरिक भी अब इससे पीछा छुड़ाना चाहते हैं. हॉन्गकांग में पिछले एक साल से चल रहा विरोध प्रदर्शन इस बात की गवाही है.