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भारत पर करीब 200 साल तक राज करने वाले ब्रिटेन की महारानी क्वीन एलिज़ाबेथ द्वितीय आज अपना 95वां जन्मदिन मना रही हैं. हाल ही में क्वीन एलिजाबेथ के पति प्रिंस फिलिप का निधन हुआ था, ऐसे में इस बार कोई बड़ा जश्न नहीं मनाया जा रहा है. यानी महारानी इस बार सिर्फ परिवार के करीबी लोगों के साथ ही रहेंगी.
युवा आयु से लेकर अब इस उम्र तक क्वीन एलिज़ाबेथ ने ब्रिटेन के शाही परिवार की अगुवाई की है. अब करीब 7 दशक हो गए हैं, जब क्वीन एलिजाबेथ शाही परिवार, ब्रिटेन की रियासत को संभाल रही हैं. ऐसे में एक महिला कैसे इतने लंबे वक्त तक तमाम मुश्किलों के बीच भी ब्रिटेन पर राज करती रहीं, क्वीन एलिज़ाबेथ के इसी सफर पर एक नज़र डालिए...
क्वीन एलिज़ाबेथ का जन्म...
ब्रिटेन में जब किंग जॉर्ज पंचम का राज था, उस काल में 21 अप्रैल 1926 को क्वीन एलिज़ाबेथ का जन्म हुआ. एलिजाबेथ के पिता किंग जॉर्ज छह भी बाद में ब्रिटेन के राजा बने. क्वीन एलिज़ाबेथ का पूरा नाम एलिजाबेथ एलेक्जेंडरा मैरी विंडसर है. क्वीन एलिज़ाबेथ की एक बहन थीं, जिनका नाम प्रिंसेज मार्ग्रेट था. क्वीन एलिजाबेथ ने अपनी पढ़ाई घर में ही पूरी की. उनकी एक बायोग्राफी में लिखा गया है कि बचपन में ही क्वीन एलिजाबेथ का लगाव घोड़ों, डॉग्स में था जो जीवन भर रहा, बाद में वह घोड़ों की रेस पर दांव भी लगाया करती थीं.
राजकुमारी जब महारानी बन गई...
साल 1947 में जब भारत अपनी आजादी की तैयारियों में जुटा था, उसी वक्त एलिजाबेथ और प्रिंस फिलिप की शादी हुई. ब्रिटेन के शाही परिवार ने बड़े धूमधाम से इस शादी का जश्न मनाया. शादी के कुछ वक्त बाद ही प्रिंस फिलिप, एलिजाबेथ शाही परिवार के लिए अपनी ड्यूटी में लग गए. शादी के करीब पांच साल बाद यानी साल 1952 में प्रिंस फिलिप, प्रिंसेस एलिजाबेथ केन्या के दौरे पर थे.
दरअसल, किंग जॉर्ज छह की तबीयत काफी खराब रहती थी और उनका ऑस्ट्रेलिया दौरा बार-बार टल रहा था. ऐसे में तय हुआ था कि केन्या में छुट्टियां मनाने के बाद एलिजाबेथ और फिलिप ऑस्ट्रेलिया का दौरा करेंगे. लेकिन केन्या के इसी दौरे पर 6 फरवरी, 1952 को सबकुछ बदल गया.
लंबे वक्त से बीमार चल रहे एलिजाबेथ के पिता किंग जॉर्ज का निधन हो गया, एलिजाबेथ क्योंकि केन्या के ग्रामीण इलाके में थीं ऐसे में उनके पास ये संदेश पहुंचने में कुछ देर हुई. लेकिन खबर मिलने के बाद एलिजाबेथ और प्रिंस फिलिप को अपनी छुट्टियां रद्द कर तुरंत वापस ब्रिटेन आना पड़ा.
जब ये घटना हुई तब एलिजाबेथ की उम्र सिर्फ 25 साल थी और इसी घड़ी में सबकुछ बदल गया. क्योंकि किंग जॉर्ज छह के निधन के बाद ये साफ हो गया था कि अब ब्रिटेन को नई महारानी मिलने वाली थी. एलिजाबेथ ब्रिटेन से केन्या जब रवाना हुईं तब वह एक राजकुमारी थीं, लेकिन जब वो लौटीं तो एक महारानी के रूप में लौटीं. 6 फरवरी, 1952 को एलिजाबेथ द्वितीय ब्रिटेन की महारानी नियुक्त हुईं, 2 जून 1953 को उनका आधिकारिक रूप से राज्याभिषेक किया गया.
वो दौरा जिसने सबकुछ बदल दिया...
दूसरे विश्व युद्ध में भले ही ब्रिटेन को जीत मिल गई हो, लेकिन उसके बाद से ही वह कमजोर होने लगा था. यही कारण था कि जिन देशों पर ब्रिटेन का राज था, वहां से वह हटना शुरू हो गया था और सत्ता स्थानीय सरकारों को सौंपना शुरू कर दिया था. भारत भी उनमें से ही एक देश था. लेकिन इसी कमजोर वक्त के बीच क्वीन एलिजाबेथ को ब्रिटेन की कमान मिली थी.
जब 25 साल की एक युवा लड़की एक शाही परिवार की प्रमुख बनी और उस देश के अंतर्गत दर्जनों देश आते थे, तब दुनिया की नज़रें सिर्फ क्वीन एलिजाबेथ पर ही थीं. 1953 में राज्याभिषेक के बाद क्वीन एलिजाबेथ ने आधिकारिक रूप से अपना कामकाज संभाला. लेकिन साल 1961 में एक वक्त ऐसा आया, जब सबकुछ बदल गया.
दरअसल, साल 1961 में क्वीन एलिजाबेथ ने घाना का दौरा किया था, तब घाना कई मुश्किलों से जूझ रहा था और उसके ऊपर एक तानाशाह का खतरा भी मंडरा रहा था. लेकिन तमाम मुश्किलों के बाद क्वीन एलिजाबेथ ने यहां का दौरा किया, विवाद को अपने दम पर हल किया और इसी दौरे ने एक युवा महारानी के ओहदे को दुनिया की नज़रों में बढ़ा दिया.
घाना 1957 में ही आजाद हुआ था और उसके बाद से ही वहां पर हिंसा का दौर चल रहा था. 1961 में महारानी को वहां का दौरा करना था, लेकिन तत्कालीन सरकार ने उन्हें ना जाने की सलाह दी. इस सलाह को दरकिनार करते हुए महारानी ने घाना का दौरा किया, महारानी के पहुंचने से पांच दिन पहले ही घाना की राजधानी पर बम से हमला हो गया था. इसके बावजूद महारानी ने अपने दौरे को पूरा किया, घाना के शासक, आम लोगों के साथ वक्त बिताया और अंतत: ये सफल दौरा हुआ. यहां के शासक ने ब्रिटेन के साथ मिलकर काम करना तय किया. इस दौरे का सभी कॉमनवेल्थ देशों पर गहरा प्रभाव पड़ा.
14 प्रधानमंत्री और एक महारानी...
क्वीन एलिजाबेथ साल 1952 से ही शाही परिवार की प्रमुख बनी हुई हैं. यह नियम है कि हर हफ्ते मंगलवार को यूनाइटेड किंगडम का प्रधानमंत्री ब्रिटेन के शाही परिवार के प्रमुख के साथ मुलाकात करेगा और देश की स्थिति की जानकारी देगा. बतौर केयरटेकर शाही परिवार का प्रमुख देश से जुड़े कामकाम में सीधा दखल नहीं दे सकता है. क्वीन एलिजाबेथ शुरुआत से अबतक कुल 14 प्रधानमंत्रियों के साथ काम कर चुकी हैं.
जब एलिजाबेथ ने अपना राजपाठ संभाला तब यूके की कमान विंस्टन चर्चिल के हाथ में थी. चर्चिल को हमेशा ही अपने अड़ियल बर्ताव के लिए जाना जाता था, लेकिन एक 25 साल की युवा महारानी के लिए चर्चिल ने बतौर गार्जियन काम किया. शुरुआती वक्त में ही क्वीन एलिजाबेथ को राजनीति, विरोध और अन्य मुश्किलों की जानकारी चर्चिल ने ही दी.
यूके की प्रधानमंत्री मार्ग्रेट थेचर के कार्यकाल के दौरान काफी सुर्खियां रहीं. तब ऐसी खबरें रहती थीं कि थेचर और क्वीन एलिजाबेथ में कई विषयों पर नहीं बनती थी. दोनों ही महिलाएं थीं, ऐसे में उन्हें तमाम मुश्किलों के बीच सत्ता को चलाना होता था. ब्रिटेन के शाही परिवार पर बनी एक वेब सीरीज द क्राउन में भी इस हिस्से को दिखाया गया है. यूके के मौजूदा पीएम बॉरिस जॉनसन महारानी के कार्यकाल में काम करने वाले 14वें पीएम हैं.
मुश्किलों के आगे चट्टान की तरह खड़ी रहीं महारानी...
शाही परिवार के प्रमुख के लिए एक बात कही जाती है कि उसका सबसे मुश्किल काम कुछ ना करना होता है. क्योंकि शाही परिवार का प्रमुख सीधे तौर पर सरकार के कामकाज में दखल नहीं दे सकता है और ना ही सीधे कोई आदेश दे सकता है. क्वीन एलिजाबेथ ने 25 साल की उम्र में जब शाही परिवार की गद्दी संभाली तब शुरुआत में ही विंस्टन चर्चिल द्वारा इस मंत्र को उन्हें बताया गया.
तब से लेकर अब जब उनके शासन को सात दशक हो गए हैं, इस पूरे दौर में क्वीन एलिजाबेथ के सामने ऐसी कई मुश्किलें आई जिनका सामना उन्होंने अकेले दम पर खुद किया. जिसमें पारिवारिक मुश्किलों के साथ-साथ देश पर आई कई बड़ी समस्याएं भी हैं.
साल 1966 में साउथ वेल्स के एबरफन की कोयले की खदान में भूस्खलन आया, तो सौ से अधिक बच्चों की जान चली गई. घटना के अगले ही दिन प्रिंस फिलिप ने वहां का दौरा किया, लेकिन महारानी नहीं गईं. महारानी को डर था कि उनके जाने से बचाव कार्य प्रभावित होगा, लेकिन इसका ब्रिटेन की जनता पर गलत संदेश गया. कुछ दिनों के बाद महारानी ने वहां का दौरा किया, पीड़ितों के परिवार से मिलीं. महारानी ने कई बार इसका जिक्र किया है कि घटना के तुरंत बाद वहां ना पहुंचना उनके बड़े पछतावों में से एक फैसला था.
शासन के साथ-साथ पारिवारिक मुश्किलें वक्त-वक्त पर शाही परिवार की चिंता बढ़ाती रहीं. एलिजाबेथ की बहन राजकुमारी मार्ग्रेट बेहद खुले मिजाज की थीं, उन्होंने फैसला किया कि वो एक तलाकशुदा से शादी करेंगी. लेकिन उसके लिए महारानी की परमिशन जरूरी थी, महारानी ने करीब एक साल तक कोई फैसला नहीं सुनाया. क्योंकि ये चर्च के नियमों के खिलाफ था, देश में इससे बुरा संदेश जाता. महारानी की बायोग्राफी लिखने वाले कई लेखकों ने इसका जिक्र किया है कि हर बार क्वीन ने परिवार से पहले शाही परिवार के नियमों को रखा है.
'मैं इसका ऐलान करती हूं कि मेरा जीवन छोटा हो या लंबा हमेशा आपकी सेवा के लिए ही लगा रहेगा''
एक बड़ी पारिवारिक मुश्किल शाही परिवार के सामने तब आई थी, जब प्रिंस चार्ल्स की शादी प्रिंसेस डायना से हुई थी. डायना खुले मिजाज की महिला थीं और उनके इस अंदाज की वजह से ही ना सिर्फ ब्रिटेन बल्कि दुनियाभर में उनकी फैन फॉलोइंग बढ़ रही थी. लेकिन इस सबसे इतर प्रिंसेस डायना शाही परिवार के नियमों को नहीं मानती थीं, जिसकी वजह से महारानी के सामने कई बड़ी मुश्किलें पैदा हुईं.
प्रिंस चार्ल्स और प्रिंसेस डायना के रिश्तों में लंबे वक्त तक विवाद होता रहा, जो छन-छनकर बाहर आता था. 1992 में दोनों अलग हो गए और उसके पांच साल बाद ही प्रिंसेस डायना की मौत हो गई. उस दौर में ब्रिटेन में शाही परिवार के खिलाफ लहर चली क्योंकि हर कोई प्रिंसेस डायना की मौत का आरोप शाही परिवार पर ही लगा रहा था. तमाम बवालों के बाद महारानी ने देश को संबोधित किया और अपने दुख को व्यक्त किया था.
हाल ही में जब प्रिंस हैरी, मेगन मर्केल ने कुछ इसी तरह शाही परिवार पर सवाल उठाए और सभी रॉयल ड्यूटी छोड़ने का फैसला लिया, तब भी शाही परिवार ने सख्त रुख ही अपनाया. महारानी ने बिना किसी देरी के रॉयल ड्यूटी वापस लेने का फैसला लिया, उनको दिए हुए पद और सम्मान भी ले लिए गए. जिसने एक बार फिर साबित किया कि सात दशक के अपने राज में महारानी ने तमाम मुश्किलों को सहन करते हुए सिर्फ शाही परिवार के नियमों का पालन करने की कोशिश की.