श्रीलंका में पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे की सियासी फलक पर वापसी की उम्मीदों को उस वक्त करारा झटका लगा, जब संसदीय चुनाव में उनकी पार्टी को मात झेलनी पड़ी. राजपक्षे ने हार स्वीकार कर ली और अब रानिल विक्रमसिंघे फिर से प्रधानमंत्री बनने की तैयारी में हैं. इस रिपोर्ट में हम ये बताएंगे कि विक्रमसिंघे की वापसी किस तरह हमारे तमिल और आर्थिक मसलों के लिए फायदेमंद है.
वैश्विक संदर्भ में अहम चुनाव
श्रीलंका में संसदीय चुनावों के इन नतीजों को वैश्विक पटल पर श्रीलंका के लिए एक नए युग के सूत्रपात के रूप में देखा जा रहा है. चुनाव नतीजों के बाद विक्रमसिंघे ने देश में एकता और एक नई राजनीतिक संस्कृति क़ायम करने की अपील की. विक्रमसिंघे को राष्ट्रपति मैत्रिपाला सिरीसेना का समर्थन भी प्राप्त है. साथ ही उम्मीद की जा रही है कि देश के उत्तरी हिस्सों में अच्छी पैठ रखने वाली और चुनावों में भी अच्छा प्रदर्शन करने वाली तमिल नेशनल एलायंस का समर्थन भी विक्रमसिंघे सरकार को मिलेगा.
राजपक्षे की उम्मीदें खत्म
इन चुनावों में विजय से 66 वर्षीय विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री पद पर एक और कार्यकाल मिल गया. उनकी पार्टी यूनाईटेड नेशनल पार्टी चुनाव में विजयी हुई है. भारत के लिए विक्रमसिंघे की जीत जितनी मायने रखती है उससे ज्यादा मायने रखती है चुनाव में राजपक्षे की हार. इस हार से राष्ट्ररपति चुनाव में हार के बाद प्रधानमंत्री के रूप में सत्ता में वापसी की राजपक्षे की कोशिशों को गहरा झटका लगा है और लंबे समय के लिए सत्ता से उनकी दूरी बन गई है. राजपक्षे श्रीलंका में चीन के हितों के सरपरस्त के तौर पर देखे जा रहे थे और चीन के साथ-साथ पाकिस्तान के साथ उनकी नजदीकी किसी भी मायने में भारत के लिए हितकर नहीं कही जा सकती थी. अब का शासन राष्ट्रपति मैत्रिपाला सिरिसेना और उनके समर्थन प्राप्त रानिल विक्रमसिंघे के हाथों में है जो कि भारत के लिए पक्षकर ही माना जाएगा.
PM मोदी ने दी विक्रमसिंघे को बधाई
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने श्रीलंका के अपने समकक्ष रानिल विक्रमसिंघे को उनके देश के संसदीय चुनाव में विजय के लिए बधाई दी और उम्मीद जताई कि उनके नेतृत्व में दोनों देशों के रिश्ते और मजबूत होंगे. प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट किया, ‘श्री रानिल विक्रमसिंघे से बात की और उन्हें और उनके गठबंधन को चुनावों में शानदार प्रदर्शन के लिए बधाई दी .' उन्होंने कहा, ‘मुझे विश्वास है कि विक्रमसिंघे के नेतृत्व में भारत और श्रीलंका के द्विपक्षीय संबंध और प्रगाढ़ होंगे.’ प्रधानमंत्री मोदी ने शांतिपूर्ण चुनाव संपन्न होने के लिए श्रीलंका की जनता को भी हार्दिक बधाई दी.
पड़ोस से संबंध बेहतरी प्राथमिकता
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी की विदेश नीति में पड़ोसी देशों के साथ संबंधों में सुधार प्राथमिकता में हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने इसी साल श्रीलंका की यात्रा की थी. इस साल जनवरी में श्रीलंका का राष्ट्रपति पद संभालने के बाद मैत्रिपाला सिरिसेना ने भी अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए भारत को चुना था और साझी प्रगति के लिए साथ मिलकर चलने की प्रतिबद्धता जताई थी. चुनाव नतीजे को राष्ट्रपति मैत्रिपाल सिरिसेना की जीत के रूप में देखा जा रहा है. उन्होंने प्रण किया था कि यूपीएफए को बहुमत मिलने के बाद भी राजपक्षे को प्रधानमंत्री बनने नहीं देंगे. श्रीलंका में सुधारों को लागू करने उद्देश्य से मजबूत बहुमत के लिए सिरिसेना ने समय से पूर्व चुनाव कराए.
चीन की चुनौती बढ़ी
श्रीलंका में हुए ये चुनाव भारत और दुनिया के अन्य देशों के लिए भी अहम है. कारण इसके नतीजे श्रीलंका की राजनीतिक दिशा तो तय करेंगे ही साथ ही हिंद महासागर क्षेत्र में भौगोलिक-राजनीतिक प्रभाव भी डालेंगे. हिंद महासागर क्षेत्र व्यापार और ऊर्जा के लिहाज से एक नया वैश्विक केंद्र बन गया है. एशिया में प्रभुत्व जमाने की कोशिशों में लगे चीन के लिए श्रीलंका काफी मायने रखता है लेकिन राजपक्षे गुट के सत्ता से बाहर होने के बाद चीन के लिए श्रीलंका में रणनीतिक एवं व्यापारिक सुगमता कम हो जाएगी. जिसका फायदा भारत को मिल सकता है.
राजपक्षे का रुख चीन समर्थक था
राजपक्षे के शासन में चीन को श्रीलंका में कई बड़ी परियोजनाएं हाथ लगी जो कि रणनीतिक और आर्थिक रूप से वहां भारत की तुलना में चीन को अग्रिम पंक्ति में रखता था. अगर सत्ता में राजपक्षे की वापसी होती तो श्रीलंका में कोलंबो सिटी प्रॉजेक्ट सहित चीन के कई प्रॉजेक्ट्स को ग्रीन सिग्नल मिल सकता था, जो अभी रुके हुए हैं. चीन की फंडिंग वाले बड़े प्रॉजेक्ट्स या तो पर्यावरण संबंधी मुद्दों या दूसरी मंजूरियां न मिलने के कारण फंसे हुए हैं. राजपक्षे को लेकर पिछले साल भारत ने सख्त ऐतराज जताया था, जब चाइनीज सबमरींस दो बार कोलंबो पोर्ट पर पहुंची थीं. इस बात को लेकर भारत के प्रधानमंत्री के स्तर से आपत्ति जताई गई थी.
रणनीतिक रूप से भी भारत को लाभ
चीन के परिप्रेक्ष्य में श्रीलंका भारत के लिए इस कारण भी अहम हो जाता है क्योंकि दक्षिणी चीन सागर में अपनी भूमि पर कब्जा करने और आउटपोस्ट बनाने के बाद चीन ने हिंद महासागर पर अपनी नजरें गड़ा दी हैं. यहां इसकी गतिविधियां वर्तमान शक्ति संतुलन को चुनौती दे रही हैं. चीन श्रीलंका में हंबनटोटा बंदरगाह बनवा चुका है. चीन प्रायोजित समुद्री सिल्क रूट के लिए श्रीलंका प्रमुख जगह है. यह ऐसा व्यापारिक प्रयास है, जिसके तहत चीन ईंधन भरने, माल भरने, जहाजों के चालक दल के ठहरने और जहाजों का रखरखाव दुरुस्त करने के लिए समझौतों के जरिए हिंद महासागर क्षेत्र में कई समुद्री पहुंच केंद्र बनाने का इरादा रखता है. लेकिन विक्रमसिंघे की सत्ता में वापसी का भारत के लिए मतलब होगा कि अब चीन का परमाणु सबमरीन श्रीलंका के तट पर नहीं रूक सकेगा.
राजनीतिक मेल-मिलाप का काम होगा तेज
नई सरकार के उत्तरी क्षेत्रों के तमिल पार्टियों के साथ अच्छे संबंधों के कारण श्रीलंका में राजनीतिक मेल-मिलाप के काम में तेजी आएगी. साथ ही विक्रमसिंघे की पार्टी हमेशा भारत के साथ खासकर दक्षिणी भारत के पांच राज्यों के साथ मजबूत और प्रगाढ़ व्यापारिक संबंधों के हिमायती रहे हैं और सत्ता में उनकी वापसी से इस प्रक्रिया को फिर तेजी मिलेगी. साथ ही उनका भारत के साथ व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते- CEPA पर बातचीत को भी नए सिरे से आगे बढ़ाने पर जोर होगा.
राष्ट्रपति सिरसेना का समर्थन आएगा काम
रानिल विक्रमसिंघे की इसी साल जनवरी में प्रधानमंत्री पद पर वापसी हुई थी. राष्ट्रपति चुनावों में सिरिसेना के हाथों में हारकर राजपक्षे के जाने के बाद सिरिसेना ने विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री बनाया था. राजपक्षे ने तब अपनी हार के लिए भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ को जिम्मेदार ठहरा दिया था.
विक्रमसिंघे के बयान भी विवादों में
इसी साल मार्च में प्रधानमंत्री मोदी की श्रीलंका यात्रा से ऐन पहले विक्रमसिंघे का एक बयान विवादों में आ गया था. जब विक्रमसिंघे ने कहा कि भारतीय मछुआरे यदि हमारे जलक्षेत्र सीमा पार करते हैं और उन पर गोलीबारी की जाती है तो यह मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं है. भारतीय मछुआरे हमारे जलक्षेत्र में दाखिल होते हैं तभी उन पर ताकत का इस्तेमाल किया जाता है, जो सही भी है.
भारत ने बढ़ाया सहयोग का हाथ
हालांकि, इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा के दौरान मछुआरों के मामलों के स्थायी समाधान के लिए तंत्र बनाने पर सहमति बनी और श्रीलंका में पकड़े गए भारतीय मछुआरों के मामलों पर मानवीय दृष्टिकोण से फैसले लिए गए. ये कदम भारत और श्रीलंकाई नेतृत्व के बीच आपसी समझ और सौहार्दपूर्ण संबंधों की ओर बढ़ने का संकेत देता है. प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी यात्रा के दौरान जाफना का भी दौरा किया और वहां भारत के सहयोग से चलाई जा रही मानवीय परियोजनाओं को मदद जारी रखने की प्रतिबद्धता जताई. 28 वर्षों के अंतराल के बाद कोई भारतीय प्रधानमंत्री श्रीलंका की यात्रा पर पहुंचा. इससे पहले राजीव गांधी ने 1987 में इस देश की यात्रा की थी.
नई शुरुआत का संकेत
विक्रमसिंघे ने एक बयान जारी कर कहा कि मैं आप सभी को हाथ मिलाने के लिए आमंत्रित करता हूं. चलिए साथ मिलकर सभ्य समाज का निर्माण करते हैं, सहमति वाली सरकार बनाते हैं और नया देश बनाते हैं. यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) के 65 वर्षीय नेता विक्रमसिंघे चौथी बार श्रीलंका के प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं. इससे पहले 1993 से 1994 और 2002 से 2004 तक और फिर इस साल जनवरी से अबतक वे प्रधानमंत्री प्रधानमंत्री पद संभाल चुके हैं.
श्रीलंका में पूर्वाग्रहरहित शासन
राजपक्षे का सत्ता से जाना भारत के लिए बेहतर है. भारत के लिए यह राहत की बात है कि दोनों ही शीर्ष व्यक्तित्व, मैत्रीपाल सिरिसेना और रानिल विक्रमसिंघे भारत के प्रति किसी तरह का पूर्वाग्रह नहीं रखते. विक्रमसिंघे को तो भारत का मित्र ही माना जाता है और वे भारत के साथ संबंध प्रगाढ़ करने के प्रबल हिमायती रहे हैं. सिरिसेना ने भी चुनाव प्रचार के दौरान खुलकर कहा था कि वे भारत के साथ अच्छे संबंध विकसित करेंगे. हालांकि उन्होंने यह टिप्पणी भी की कि उनकी विदेश नीति न तो भारत के प्रति शत्रुतापूर्ण होगी और न ही उस पर निर्भर होगी.