नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेता पुष्प कमल दहल प्रचंड के बीच एक बार फिर तनाव बढ़ गया है. बताया जा रहा है कि ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि पहले तय हुआ था कि आगे से सभी फैसले आपसी परामर्श के बाद ही लिए जाएंगे लेकिन पीएम ओली की तरफ से ऐसा नहीं किया जा रहा था. दहल गुट ने पीएम ओली पर एकतरफा फैसले लेने के आरोप लगाए हैं.
न्यूज एजेंसी एएनआई की खबर के मुताबिक ओली और दहल ने शनिवार को पार्टी की बैठक बुलाई थी इसी दौरान दोनों नेताओं के बीच आपसी तनाव बढ़ गया. इसके बाद दोनों ही नेताओं ने अपने-अपने गुट की अलग-अलग बैठक बुलाई. खबर में दावा किया गया है कि दहल ने रविवार शाम को बुलाई अपनी मीटिंग में आए लोगों को पार्टी के टूटने की संभावनाओं से अवगत कराया है.
रविवार की बैठक में शामिल एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि उस दौरान दहल ने कहा, "प्रधानमंत्री ओली ने स्पष्ट किया है कि वे पार्टी के सचिवों की बैठक नहीं बुलाएंगे. उन्होंने यह भी कहा है कि वे दो तिहाई बहुमत से दिए गए किसी भी समिति के निर्णय का पालन भी नहीं करेंगे. पीएम ओली ने हमें चेतावनी दी है कि वे हमारे खिलाफ सख्त कार्रवाई करने को बाध्य होंगे अगर हमने उनके खिलाफ कोई कदम उठाया या साजिश रची. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अगर हम एक साथ काम नहीं कर सकते हैं तो हम अलग रास्ता चुन सकते हैं."
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इससे पहले रविवार दोपहर को नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव और वित्त मंत्रालय का कार्यभार संभाल रहे बिष्णु प्रसाद पौडेल ने भी कहा था कि उनकी पार्टी गंभीर खतरे का सामना कर रही है. उन्होंने कहा कि "इस समय, नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (CPN) के एकीकृत और अविभाज्य अस्तित्व के सामने एक गंभीर संकट उत्पन्न हो गया है. मैं सभी नेताओं, कैडरों और सदस्य साथियों से अनुरोध करता हूं कि वे पार्टी एकता के संरक्षण के लिए योगदान दें.
नेपाल के पीएम ओली के करीबी माने जाने वाले पोडेल ने ये बातें अपने ट्वीट में कही थीं. पोडेल के ट्वीट ने सीपीएन के भविष्य के बारे में संदेह बढ़ा दिया है, जिसके पास नेपाल की दोनों सदनों में पूर्ण बहुमत (लगभग दो-तिहाई) और हिमालयी राष्ट्र के 7 में से 6 प्रांतों में बहुमत है.
माना जा रहा है कि पार्टी के दोनों वरिष्ठ नेताओं में ये नाराजगी ओली कैबिनेट में हुए हालिया बदलावों को लेकर है. ओली ने अक्टूबर में बिना प्रचंड की सहमति के अपनी कैबिनेट में फेरबदल किया था. उन्होंने पार्टी के अंदर और बाहर की कई समितियों में अन्य नेताओं से बातचीत किए बगैर ही कई लोगों को नियुक्त किया है. दोनों नेताओं के बीच मंत्रिमंडल में पदों के अलावा, राजदूतों और विभिन्न संवैधानिक और अन्य पदों पर नियुक्ति को लेकर दोनों गुटों के बीच सहमति नहीं बनी थी.