scorecardresearch
 

तीन महादेश, 3 पीढ़ियां... पंजाब के गुजरांवाला से लंदन के 10 डाउनिंग स्ट्रीट तक ऋषि सुनक के परिवार का सफरनामा

ऋषि सुनक की कहानी बेहतर जिंदगी की तलाश में हजारों किलोमीटर का सफर तय करने वाले उस परिवार की कहानी है, जिसे मुकाम मिला ब्रिटेन में. पाकिस्तान के पंजाब में स्थित गुजरांवाला का रहने वाला ये परिवार लगभग 90 साल पहले बेहतर भविष्य की तलाश में पूर्वी अफ्रीका की यात्रा पर निकला था.

Advertisement
X
ऋषि सुनक अपनी मां ऊषा और पिता यशवीर सुनक के साथ (फोटो- फेसबुक)
ऋषि सुनक अपनी मां ऊषा और पिता यशवीर सुनक के साथ (फोटो- फेसबुक)

ऋषि सुनक का दुनिया के पावर सेंटर तक पहुंचने की यात्रा कई सालों तक, कई पीढ़ियों के संघर्ष की कहानी है. लगभग 90 साल पहले ये यात्रा अविभाजित भारत के पंजाब से शुरू हुई और अब उस स्थान पर मुकम्मल हो रही है जहां से ब्रिटेन ने कई सौ सालों तक दुनिया पर राज किया. ये जगह है 10 डाउनिंग स्ट्रीट, यानी ब्रिटेन के पीएम का आधिकारिक आवास.

Advertisement

पंजाब का एक परिवार कई दशकों पहले अच्छी जिंदगी की तलाश में एशिया से अफ्रीका गया और वहां से यूरोप आया. इन तीन महादेशों की यात्रा में सुनक परिवार की 3 पीढ़ियों का समय गुजर गया, तब जाकर ऋषि सुनक को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री का ताज मिला है. 

बात लगभग 90 साल पहले की है. अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत के गुजरांवाला से एक खत्री युवा अच्छी जिंदगी की तलाश में सात समंदर पार जाने के लिए अपना बोरिया बिस्तर समेट रहा था. इस युवक का नाम था रामदास सुनक. खत्री पंजाब का वो समुदाय है जिसका कभी बिजनेस में दखल रहता था. इसके साथ ही ये परिवार बही-खातों और क्लर्की का काम भी बढ़िया से कर लेता था. 

1935 के आस पास ऋषि सुनक के दादा रामदास सुनक गुंजरावाला से 5000 किलोमीटर लंबी यात्रा पर निकले. गुजरांवाला सिख साम्राज्य के संस्थापक महाराजा रंजीत सिंह की जन्मभूमि है. रामदास सुनक का लक्ष्य था ईस्ट अफ्रीका में बसा छोटा सा देश केन्या. तब केन्या में भी अंग्रेजों का राज था. 5000 किलोमीटर की दूरी तय कर जब रामदास सुनक केन्या की राजधानी नैरोबी पहुंचे तो यहां भी उनका पुश्तैनी कौशल काम आया और उन्हें काम मिला क्लर्क का. 

Advertisement

नैरोबी में दादा करते थे क्लर्की

ऋषि सुनक की दादी सुहाग रानी सुनक गुजरांवाला से दिल्ली आ गई थीं. दिल्ली से वह अपनी दादी के साथ 1937 में नैरोबी पहुंचीं. 

ऋषि सुनक अपनी पत्नी अक्षता के साथ (फाइल फोटो)

रामदास सुनक और सुहाग रानी सुनक को 6 बच्चे हुए. 3 बेटे और 3 बेटियां. ऋषि सुनक के पिता यशवीर सुनक का 1949 में नैरोबी में जन्म हुआ था. 17 साल की आयु में ऋषि के पापा यशवीर सुनक ने दूसरा और सुनक परिवार ने तीसरा महादेश लांधा और वे अफ्रीका से ब्रिटेन आ गए. ये साल 1966 था. यशवीर सुनक करियर की तलाश में केन्या से ब्रिटेन के लीवरपूल आ गए. बाद में उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ लीवरफूल में डॉक्टरी की पढ़ाई की. यशवीर सुनक अभी साउथेम्पटन में रहते हैं. 

ऋषि सुनक की फैमिली का भारतीय संस्कृति में गहरी आस्था है. उनके दादा रामदास सुनक ने 1971 में साउथैम्पटन में वैदिक सोसायटी हिन्दू टेंपल की स्थापना की थी.  1980 के दशक में ऋषि के पिता यश इस मंदिर के साथ ट्रस्टी के रूप में जुड़े रहे. यहां उन्होंने लोगों को भोजन करवाया था. 

नानी को बेचने पड़े थे शादी के गहने 

ऋषि सुनक के माता पक्ष की बात करें तो उनके नाना रघुवीर बेरी भी पंजाब के रहने वाले हैं. बेहतर करियर की तलाश में वे बतौर रेलवे इंजीनियर Tanganyika चले गए. ये क्षेत्र अभी तंजानिया में आता है. यहां पर उनका विवाह 16 साल सरक्षा से हुआ. 1966 में ही ये परिवार ब्रिटेन आ गया.  लेकिन इसके लिए सरक्षा को अपने शादी के गहने बेचने पड़ गए थे. इस कपल को तीन बच्चे हुए. इन्हीं में से एक थी ऊषा सुनक. ऊषा सुनक ने ब्रिटेन में फार्मासिस्ट की डिग्री ली. 

Advertisement
फुर्सत के पलों में ऋषि सुनक (फोटो- फेसबुक)

ब्रिटेन आकर रघुबीर बेरी ब्रिटिश सरकार के रेवेन्यू विभाग में नौकरी करने लगे. रघुबीर बेरी को उनके काम के लिए ब्रिटिश सरकार ने सम्मानित किया और वे ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश अम्पायर के सदस्य नियुक्ति किए गए. 92 साल के रघुवीर बेरी अभी लंदन में रहते हैं. बेरी परिवार के दूर के रिश्तेदार अभी पंजाब के लुधियाना में रहते हैं. 

यशवीर और ऋषि अपने बच्चों ऋषि, राखी और संजय के साथ (फाइल फोटो)

ऋषि के माता-पिता ऊषा और यशवीर ब्रिटेन में एक दूसरे से मिले. 1977 में लेस्टर में इनकी शादी हुई.  1980 में Southampton में ऋषि सुनक का जन्म हुआ.  

सुनक ने ऐसे याद किया था नाना को

इस साल जुलाई में ऋषि ने अपने खानदान की यात्रा को याद करते हुए लंदन में इंडियन ग्लोबल फोरम की एक मीटिंग में कहा था, "मेरे नानीजी के पूर्वी अफ्रीका में एक विमान में चढ़ने के साठ साल बाद, अक्टूबर की एक गर्म धूप वाली शाम में, उनकी परपोती, मेरे बच्चे, हमारे घर के बाहर गली में खेल रहे थे, दरवाजे पर रंगोली बना रहे थे,दीये जला रहे थे; दीपावली पर कई अन्य परिवारों की तरह मस्ती कर रहे थे. तब तो गली डाउनिंग स्ट्रीट थी और दरवाजे का नंबर 11 था." बता दें कि सुनक तब ब्रिटेन के वित्त मंत्री थे. 

Advertisement
ऋषि सुनक बच्चों के साथ फुटबॉल खेलते हुए. (फाइल फोटो-फेसबुक)

ऋषि सुनक अपने अतीत को ईमानदारी से स्वीकार करते हैं और उस पर गर्व करते हैं. उनका कहना है, "मैं जहां से आया हूं, उस पर मुझे अविश्वसनीय रूप से गर्व है.  मैं कौन हूं ये हमेशा मेरे अस्तित्व से जुड़ा रहेगा. और यह मुझे एक ऐसे देश में रहने के लिए खुशी देता है, जहां मेरे जैसा कोई तमाम चुनौतियों के बावजूद चांसलर बन सकता है. हमारा काम अब यह सुनिश्चित करना है कि यह ब्रिटिश भारतीय कहानी का अंत नहीं है, बल्कि शुरुआत है."

इसी लंदन में ऋषि सुनक को अपनी जीवनसंगिनी मिली.स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में भारत के बिजनेसमैन नारायणमूर्ति की बेटी अक्षता से ऋषि सुनक की मुलाकात हुई. जिन्हें प्रतिष्ठित फुलब्राइट स्कॉलरशिप के तहत यहां एडमिशन मिला था. तब ऋषि स्टैनफोर्ड से एमबीए कर रहे थे. 2009 में इन दोनों ने शादी कर ली. ऋषि और अक्षता की दो बेटियां हैं कृष्णा और अनुष्का. दोनों बेटियों का झुकाव भारतीय शैली की नृत्य परंपरा में है. 

 

Advertisement
Advertisement