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पाकिस्तान चाहे भी तो रोहिंगिया मुसलमान नहीं जाएंगे वहां!

बर्मा के जिस क्षेत्र में रोहिंगिया मुसलमान रहते हैं, वहां 98 फीसदी यही मुसलमान हैं. लेकिन पूरे बर्मा की जनसंख्या जोड़े तो ये मुसलमान अल्पसंख्यक हैं.

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रोहिंगिया मुसलमा
रोहिंगिया मुसलमा

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भारत में मोदी सरकार को हिंदू सरकार कहा जाता है. राइट विंग की सरकार. बीजेपी की सरकार. यहां इस सरकार का बनना पाकिस्तान को नागवार गुजरा. उसे लगा कि कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्ना का डर कि आजादी के बाद हिंदुस्तान में मुसलमान सुरक्षित नहीं रहेगा, अब सच हो जाएगा. विदेशी मीडिया को भी यही समझ आया कि इंडिया में हिंदू सरकार बन गई है. लेकिन आज आजादी के लगभग 70 साल बाद भी बर्मा (म्यांमार) में 13 लाख मुसलमान बेघर हैं.

ये मुसलमान रोहिंगिया मुसलमान हैं. सूफी सेक्ट के सुन्नी मुसलमान हैं और आजादी के कई दशकों पहले से बंगाल से पलायन कर म्यांमार में रह रहे थे. पुराने हिसाब-किताब में इन्हें बर्मा का नागरिक माना गया. बर्मा के जिस क्षेत्र में रोहिंगिया मुसलमान रहते हैं, वहां 98 फीसदी यही मुसलमान हैं. लेकिन पूरे बर्मा की जनसंख्या जोड़े तो ये मुसलमान अल्पसंख्यक हैं. बौद्ध धर्म के अनुयायी बर्मा में इनकी नागरिकता का विरोध करते रहे हैं. 2015 में इन मुसलमानों की नागरिकता को म्यांमार सरकार ने खारिज कर दिया है. अब वह चाहता है कि ये मुसलमान अविभाजित बंगाल के उस इलाके में वापस चले जाएं जो अब बांग्लादेश के अधीन है. ये मुसलमान हैं, लेकिन बांग्लादेश इन्हें लेना नहीं चाहता क्योंकि बांग्लादेश से तो हिंदू को छोड़िए, मुसलमान तक पलायन कर भारत में गैरकानूनी शरणार्थी बनने की फिराक में कई दशकों से लगे हैं.

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अब सवाल यह है कि यदि बर्मा के रोहिंगिया मुसलमान बांग्लादेश के हैं और इनका विवाद आजादी के पहले से है, तो क्या आज पाकिस्तान इन मुसलमानों को अपने मुल्क में कुबूल करेगा? भारत का इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है क्योंकि आजादी और बंटवारे के वक्त रोहिंगिया मुसलमान बांग्लादेश या ईस्ट पाकिस्तान के उस इलाके में रहते थे जो मुस्लिम बाहुल था. बंटवारे के नियम के मुताबिक ये स्वाभाविक तौर पर पाकिस्तान का हिस्सा थे. लेकिन ईस्ट पाकिस्तान में गराबी, लाचारी और बर्बरता के चलते ये बर्मा के गैर-रिहायशी इलाकों में बस गए.

आज यह रोहिंगिया मुसलमान बेघर हैं. उनका मामला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेहद पेचीदा मुद्दा बना हुआ है. बर्मा से ये निर्वासित हैं. बिना नागरिकता के दूसरे दर्जे के नागरिक या रिफ्यूजी कह लें. वहीं अमेरिका और यूरोप के देश इन मुसलमानों को बतौर रिफ्यूजी लेने से शायद कतराएं क्योंकि वह खुद मुसलमान शरणार्थियों से गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. इसके बावजूद यह मुसलमान पाकिस्तान या बांग्लादेश की तरफ नहीं देख सकते. क्योंकि इन दोनों ही देशों की हालत इस्लामिक जेहाद और आतंकवाद के चलते बड़ी चुनौतियों के दौर से गुजर रहे हैं.

अब इन रोहिंगिया मुसलमानों की तरह भले पाकिस्तान एक सुन्नी बाहुल देश है. ये रोहिंगिया मुसलमान उनकी ओर मदद किसी मदद के लिए नहीं देख सकते क्योंकि पाकिस्तान में ऐसे शरणार्थियों की हालत बहुत बदतर है. शिया, सूफी, हिंदू और बौद्ध धर्म के लोंगों के लिए पाकिस्तान में वैसे ही कोई जगह नहीं है. म्यांमार में तो सिर्फ इनकी नागरिकता और जमीन छिनी है, पाकिस्तान पहुंचने पर तो सवाल इनके धर्म पर खड़ा हो जाएगा और लॉ ऑफ द लैंड के मुताबिक इन्हें भी गैर-मुसलमान घोषित कर दिया जाएगा.

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