यूनाइटेड नेशन्स रिफ्यूजी एजेंसी UNHCR ने साल 2021 में बांग्लादेश में बसे रोहिंग्या मुस्लिमों की हालत पर सवाल उठाते हुए उनकी तुलना कैदियों से कर दी. यूएन का आरोप है कि 10 लाख से ज्यादा रिफ्यूजी वहां लगातार खतरों के बीच रह रहे हैं. ये आरोप पहली बार नहीं लगा. म्यांमार से भागकर बांग्लादेश पहुंचे रोहिंग्याओं को वहां की सरकार ने कॉक्स बाजार में बसा तो दिया, लेकिन वहां की आबादी लगातार बढ़ती गई. यहां तक कि मानव तस्करी और ड्रग्स जैसे मामले आने लगे.
कौन हैं रोहिंग्या और क्यों भागे म्यांमार से
ये सुन्नी मुस्लिम हैं, जो म्यांमार के रखाइन प्रांत में रहते आए थे. बौद्ध आबादी वाले म्यांमार में रोहिंग्या मुस्लिम माइनॉरिटी में हैं. इनकी आबादी 10 लाख से कुछ ज्यादा बताई जाती रही. लगातार सैन्य शासन के बाद थोड़े स्थिर हुए इस देश में जनगणना के दौरान रोहिंग्याओं को शामिल नहीं किया गया. कहा गया कि वे बांग्लादेश से यहां जबरन चले आए और उन्हें लौट जाना चाहिए.
इस घटना के बाद हुई सांप्रदायिक हिंसा
बौद्ध आबादी के बीच मुस्लिमों को लेकर गुस्सा तब और भड़का जब रोहिंग्याओं ने एक युवा बौद्ध महिला की बलात्कार के बाद हत्या कर दी. इसके बाद से सांप्रदायिक हिंसा शुरू हुई और रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार से खदेड़े जाने लगे. साल 2017 में नरसंहार के बीच बड़ी संख्या में ये लोग भागकर बांग्लादेश पहुंच गए.
मदद के आश्वासन पर दिया ठिकाना
इसी साल पूरे 7 वर्ष हो जाएंगे, जब लाखों रोहिंग्या मुस्लिम जान बचाने के लिए पड़ोसी देश बांग्लादेश आए. बांग्लादेश खुद आर्थिक तौर पर काफी मजबूत नहीं है, लेकिन मानवीय आधार पर वो शरणार्थियों को अपने यहां बसाने के लिए तैयार हो गया. इसमें बड़ा हाथ यूएन का भी था. उसने और कई दूसरी इंटरनेशनल संस्थाओं ने बांग्लादेश को काफी मदद देने का वादा किया.
यूएन ने जॉइंट रिस्पॉन्स प्लान लॉन्च किया, जिसके बारे में दावा किया जाता है कि संस्थाओं ने रोहिंग्या मुसलमानों की मदद के लिए 943 मिलियन डॉलर की रकम जमा की. ये सिर्फ बांग्लादेश में बसे शरणार्थियों के लिए थी. इसमें उनके लिए शेल्टर, खाना-पानी और हेल्थकेयर जैसी बेसिक सुविधाएं शामिल थीं.
इसके अलावा भी सेंट्रल इमरजेंसी रिस्पॉन्स फंड जैसी कई तरह की योजनाओं के जरिए भरपूर फंडिंग हुई. म्यांमार में हो चुके रोहिंग्या नरसंहार को पूरी दुनिया की सहानुभूति मिली थी, और बांग्लादेश उन्हें शरण देकर एक तरह से हीरो की भूमिका में था.
इस समुद्र तटीय हिस्से में शरण मिली
बांग्लादेश के दक्षिणपूर्वी तट कॉक्स बाजार में शरणार्थियों को बसाया जाने लगा. बंगाल की खाड़ी के इस लंबे समुद्री तट में शेल्टर बनने लगे. सरकार के रिफ्यूजी रिलीफ एंड रीपेट्रिएशन कमीशन के अनुसार, कॉक्स बाजार एरिया में 1 लाख 20 हजार से ज्यादा शेल्टर बने. इसके साथ बाकी सुविधाएं भी दी गईं. इसपर कुल कितना खर्च आया, इसका आंकड़ा तो नहीं मिलता, लेकिन वर्ल्ड बैंक के अनुमान को मानें तो स्थानीय सरकार ने 1 बिलियन डॉलर से भी ज्यादा रकम रिफ्यूजियों को बसाने पर खर्च की.
कॉक्स बाजार में रहते रिफ्यूजी करने लगे शिकायत
लगभग 10 लाख शरणार्थियों के साथ कॉक्स बाजार दुनिया का सबसे बड़ा रिफ्यूजी कैंप कहलाने लगा. यहां अलग-अलग कॉलोनी जैसे सेटलमेंट में लोग रहते हैं. लेकिन जब बांग्लादेशी सरकार शरणार्थियों के लिए इतना कुछ कर रही है तो फिर समस्या कहां हुई? इसका जवाब भी यही कैंप है.
किया म्यांमार लौटने का आह्वान
रिफ्यूजी बसा तो दिए गए, लेकिन लाखों लोगों के एक साथ रहने के वैसे इंतजाम नहीं हो सके. कैंप में रहने वाले लोग आरोप लगाने लगे कि लोकल लोग उनसे बुरा व्यवहार करते हैं. उनके पास न काम है, न खाने के लिए पैसे. यहां तक कि वे एक कैंपेन चलाने लगे, जिसे नाम दिया बारी चलो (बाड़ी चलो यानी घर लौट चलो). कॉक्स बाजार में रहते रिफ्यूजियों का कहना है कि इससे बेहतर वे म्यांमार में ही थे. कम से कम वो उनका अपना घर तो था.
सरकार का अलग है तर्क
इधर बांग्लादेशी सरकार का कहना है कि रोहिंग्या शरणार्थी खुद ही सेटल नहीं होना चाहते. वे स्थानीय लोगों, दुकानदारों से झगड़ते हैं. कॉक्स बाजार से नशे और मानव तस्करी जैसी खबरें भी आने लगीं. इंटरनेशनल स्तर पर अपनी छवि बचाए रखने के लिए बांग्लादेश ने एक नया फैसला किया. उसने कहा कि कॉक्स बाजार में भीड़ ज्यादा हो गई है. इसी वजह से सारी दिक्कतें हो रही हैं. तो भीड़ कम करने के लिए वो रोहिंग्याओं को एक द्वीप पर सेटल करने की सोचने लगी.
कैसा है नया द्वीप और क्या दिक्कत है
ये भाषण चार द्वीप था. कोई मामूली रिहाइशी आइलैंड नहीं, बल्कि साइक्लोन से घिरा हुआ द्वीप, जहां कोई नहीं रहता. साल 2021 के आखिर तक भाषण चार में 20 हजार से ज्यादा शरणार्थी जबरन भेज दिए गए. अनुमान है कि कुल एक लाख रिफ्यूजी वहां शिफ्ट किए जा सकते हैं. इसके लिए शेल्टर, अस्पताल भी बनकर तैयार हो गए.
लगातार तूफान आते रहते हैं
बांग्लादेश के तटीय इलाकों से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ये द्वीप लगातार बाढ़ और तूफान जैसी समुद्री आपदाओं में रहता आया है. लेकिन सबसे खतरनाक बात ये है कि इसे अस्तित्व में आए ही लगभग 2 दशक हुए हैं. ऐसे में डर है कि दोबारा भी ये बना द्वीप समुद्र में न समा जाए.
यही कारण है कि वहां पर कभी कोई नहीं बसा. लेकिन अब शरणार्थी कैंपों से लाकर रोंहिग्याओं को वहां छोड़ा जा रहा है. इसपर कई इंटरनेशनल संस्थाएं आरोप लगा रही हैं कि बांग्लादेश ने शरण देकर दुनिया की तारीफ और फंडिंग भी पा ली, और अब शरणार्थियों को समुद्र में मरने के लिए छोड़ रहा है.