साल 1947, जब भारत गुलामी से आजाद हो रहा था, रूस में एकाएक एक शहर उग आया. सिटी-40. कई खाली जगहों को मिलाकर बने इस शहर में सबकुछ था. बाजार, बड़े अस्पताल और बढ़िया स्कूल. कुछ अलग था तो ये कि यहां की लगभग 1 लाख आबादी अपने इलाके से बाहर नहीं जा सकती थी. न ही रूस के बाकी लोग यहां आ सकते थे. शहर के हर कोने पर सुरक्षाबल तैनात था, जो पक्का करता कि लोग यहीं बने रहें. एक दिक्कत और थी- यहां के बाशिंदों का नाम जनगणना लिस्ट में नहीं था. यानी वे होकर भी नहीं थे.
ऊपर से सबकुछ नॉर्मल दिखता है
अब अगर आप रूस जाएं तो यहां अजरस्क नाम का शहर मिलेगा. सिटी-40 कहीं नहीं है. शहर नक्शे में भी है और शहर के लोग भी सेंसस में शामिल हैं. बड़े-बड़े पार्क्स में बच्चे खेलते और लोग कामधाम करते दिख जाएंगे. सड़क किनारे ताजा फल-सब्जियां भी बिक रही होंगी, लेकिन एक फर्क होगा. खरीदने से पहले इन फलों को एक खास उपकरण से गुजारा जाएगा. ये Geiger उपकरण है, वो चीज जो खाने या किसी भी चीज में खतरनाक रेडिएशन बताती है. यही अकेली चीज है, जो इस शहर के काले रहस्य से परदा उठाती है.
यहां रहने वाले इस सच को जानते हैं
वे जानते हैं कि उनके यहां मिलता पानी, उनके यहां उगती ब्रोकली और मशरूम, या फूल तक जहरीले हो सकते हैं. वे जानते हैं कि अगर गलती से भी वे रेडिएशन चेक किए बिना कुछ खाएं-पिएं तो बीमार हो सकते हैं, या मौत भी हो सकती है. रेडिएशन के चलते ही अजरस्क को दुनिया की कुछ सबसे जहरीली जगहों में शामिल किया जाता है. यहां तक कि इसे धरती का कब्रिस्तान कहते हैं.
लेकिन इतना भयंकर रेडिएशन क्यों है?
इसकी शुरुआत सेकंड वर्ल्ड वॉर के बाद हुई. साल 1946 में तत्कालीन सोवियत संघ ने चुपचाप एक शहर बसाना शुरू किया. यहां एक शहर के लिए जरूरी सारी सुविधाएं थीं, लेकिन सबसे ज्यादा जोर न्यूक्लियर प्लांट पर था. इस प्लांट में काम करने के लिए सोवियत संघ के कोने-कोने से सबसे तेज वैज्ञानिक और वर्कर छांटे गए और उन्हें परिवार समेत यहां ले आया गया.
रातोरात बहुत से वैज्ञानिक अपने घरों से गायब हो गए. फैमिली ने खोजबीन की तो पुलिस ने सहायता का दिखावा करते हुए आखिर में उन्हें लापता घोषित कर दिया. पुलिस को ये पता था कि वे किसी खास वजह से गायब किए गए हैं, लेकिन ये उन्हें भी नहीं पता था कि वे कहां हैं और वजह क्या है.
बाहरी दुनिया छोड़ने के बदले मिली भारी रकम
शहर में बसाए लोगों से कॉन्ट्रैक्ट कराया गया कि वे बाहर की दुनिया से कोई संपर्क नहीं रखेंगे. न कोई चिट्ठी-पत्री, न फोन-तार. बाहर निकलने की बात तो छोड़ ही दें. लेकिन सवाल ये है कि लोग ऐसे अनाम होकर जीने के लिए क्यों तैयार हुए?
इसकी वजह है दूसरे युद्ध के बाद के हालात. तब सोवियत समेत लगभग पूरी दुनिया में ही भारी गरीबी थी. लोग भूख से मर रहे थे. इन हालातों में यहां के लोगों को भरपेट खाना, आलीशान घर और शानदार पैसे दिए गए. बच्चों के लिए बढ़िया स्कूल थे. यहां वो सबकुछ था, जो बाहर की दुनिया के लिए सपना था. साथ में ये भरम भी डाला गया कि न्यूक्लियर प्रोग्राम का हिस्सा बनने पर किसी समय उनका नाम इतिहास में लिखा जाएगा.
धीरे-धीरे खतरनाक रेडिएशन पूरी आबादी पर असर डालने लगा
बच्चे-बूढ़े-जवान सब कैंसर जैसी बीमारियों से मरने लगे. रूस ने चूंकि काफी सीक्रेसी बरती इसलिए कितने लोग असमय मरे, इसका डेटा नहीं मिलता, लेकिन दावा किया जाता है कि 50 के दशक की शुरुआत में काफी लोगों की मौत रेडिएशन-जन्म बीमारियों से हुई.
रेडिएशन ओवरडोज से हजारों मौतें
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में इस बारे में एक पेपर भी छपा. कैंसर मॉर्टेलिटी रिस्क अमंग वर्कर्स एट मायक न्यूक्लियर कॉम्प्लेक्स नाम से छपी रिसर्च में बताया गया कि कैसे एक प्लांट के पास रहने वाले रेडिएशन का शिकार हो रहे हैं. माना जाता है कि साल 1948 से अगले 10 सालों के भीतर साढ़े 17 हजार लोग रेडिएशन ओवरडोज से मरे.
न्यूक्लियर प्लांट में एक के बाद एक तीन भयानक हादसे भी हुए
सितंबर 1957 में हुआ हादसा सबसे बड़ा माना जाता है, जिसमें रेडियोएक्टिव वेस्ट का कूलिंग सिस्टम फेल होने से वेस्ट गर्म होते-होते लगभग 350 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचकर विस्फोट हो गया. कितने इंसान, कितने पशु मरे, इसकी कोई जानकारी नहीं. बाकी दुनिया को साल 1976 में इस हादसे का पता लग सका, जब खुद सोवियत संघ के इतिहासकार Zhores Medvedev ने इस बारे में बताया. नदी किनारे रेडियोएक्टिव कूड़ा जमा करने का भी लंबा असर रहा. पानी-मिट्टी सब जहरीले हो गए.
सिटी-40 के परमाणु हादसों की तुलना चेर्नोबिल से होती है. चेर्नोबिल हादसा भी अप्रैल 1986 में रूस के ही परमाणु संयंत्र में हुआ था, जिसमें विस्फोट से रातोरात कितने ही लोग मारे गए. बाद के समय में वहां रहने वाली आबादी में कैंसर के मामले दर्ज किए गए, जो बहुत कमउम्र थे. जहरीली हवा का असर जब दूसरे देशों तक पहुंचने लगा, तब जाकर सोवियत संघ ने इसकी जानकारी संयुक्त राष्ट्र में दी थी.
पानी में बह रहा जहर
अजरस्क के आसपास की नदियों, खासकर Karachay झील के बारे में माना जाता है कि उसके पानी में चेर्नोबिल से भी ढाई गुना ज्यादा रेडिएशन है. इसे मौत की झील भी कहते हैं. इसके बाद भी लोग यहां रह रहे हैं. फिलहाल सिटी-40 का नाम अजरस्क तो हो चुका, ये नक्शे का हिस्सा तो है, लेकिन यहां जाना और फोटोग्राफी प्रतिबंधित है. जगह-जगह रूसी और अंग्रेजी भाषा में पाबंदी के नोटिस लगे हैं.