ब्लैक सी लंबे समय से व्यापार और ट्रांसपोर्टेशन के लिए अहम क्षेत्र रहा है. यह न केवल फूड एक्सपोर्ट का एक प्रमुख मार्ग है, बल्कि विभिन्न देशों के प्रभाव क्षेत्र के लिए भी संघर्ष का मैदान रहा है. ऐसे में अमेरिका की मध्यस्थता में रूस और यूक्रेन ने ब्लैक सी में नौसैनिक संघर्ष विराम पर सहमति व्यक्त की है. व्हाइट हाउस के अनुसार, यह समझौता 'सुरक्षित नेविगेशन सुनिश्चित करने, बल प्रयोग खत्म करने और कॉमर्शियल जहाजों के सैन्य उपयोग को रोकने' के उद्देश्य से किया गया है.
ब्लैक सी का रणनीतिक महत्व
ब्लैक सी यूक्रेन के लिए समुद्री व्यापार और सुरक्षा का एकमात्र प्रमुख मार्ग है. यह क्षेत्र लंबे समय से यूरोपीय देशों के बीच वर्चस्व की लड़ाई का केंद्र रहा है. रूस, यूक्रेन, रोमानिया, बुल्गारिया, तुर्की और जॉर्जिया वे देश हैं जो ब्लैक सी के पास के हैं. ये अपने-अपने विशेष आर्थिक क्षेत्रों के साथ इसमें हिस्सेदारी रखते हैं.
बता दें कि तुर्की इस क्षेत्र में एक अहम ताकत है, जिसकी सबसे लंबी तटरेखा (coastline) है और जो बोस्फोरस (bosphorus) और डार्डानेल्स जलडमरूमध्य (Dardanelles Strait) के जरिए भूमध्य सागर तक पहुंच को कंट्रोल करता है.
रूस के लिए ब्लैक सी क्यों जरूरी है?
ब्लैक सी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की वैश्विक शक्ति महत्वाकांक्षाओं का केंद्र है. यह इलाका रूस को भूमध्य सागर और स्वेज नहर तक पहुंचने का सबसे छोटा रास्ता मुहैया कराता है.
तुर्की और ब्लैक सी की भौगोलिक राजनीति
साल 1936 में मोंट्रेक्स समझौते के तहत तुर्की को ब्लैक सी तक पहुंच नियंत्रित करने का अधिकार मिला, जिसमें शांति और युद्धकाल में नागरिक और सैन्य जहाजों की आवाजाही को लेकर विशेष प्रावधान किए गए.
ब्लैक सी क्षेत्र में नाटो और रूस का टकराव
कोल्ड वॉर के बाद, ब्लैक सी क्षेत्र की राजनीतिक स्थिति में बड़े बदलाव हुए. बुल्गारिया और रोमानिया 2004 में नाटो का हिस्सा बने और 2007 में यूरोपीय संघ में शामिल हो गए. वहीं, जॉर्जिया, मोल्दोवा और यूक्रेन ने भी पश्चिमी देशों के साथ अपने संबंध मजबूत करने की कोशिश की.
रूस ने इस बढ़ते नाटो प्रभाव का जवाब देते हुए 2008 में जॉर्जिया पर हमला किया और 2014 में क्राइमिया पर कब्जा कर लिया. इसके बाद रूस ने ब्लैक सी को मिलिट्री ज़ोन बना दिया, जिससे नाटो सहयोगियों के लिए सुरक्षा खतरे बढ़ गए.
यूक्रेनी हमलों के बाद बदला शक्ति संतुलन
2023 तक रूस ब्लैक सी में रणनीतिक बढ़त बनाए हुए था, लेकिन यूक्रेन ने रूसी ब्लैक सी फ्लीट पर लगातार हमले कर इसे कमजोर कर दिया. यूक्रेनी हमलों ने रूस के प्रमुख युद्धपोत 'मॉस्कवा' को निष्क्रिय कर दिया, जिससे क्षेत्र में शक्ति संतुलन तुर्की की ओर ट्रांसफर हो गया.
ब्लैक सी के लिए रूस-यूक्रेन की व्यापारिक निर्भरता
रूस और यूक्रेन दोनों ही ब्लैक सी पर अपने व्यापार के लिए निर्भर हैं. साल 2022 में, संयुक्त राष्ट्र और तुर्की ने ब्लैक सी ग्रेन इनिशिएटिव की मध्यस्थता की थी, ताकि यूक्रेन को अपने अनाज निर्यात की अनुमति मिल सके. हालांकि, रूस ने 2023 में इस समझौते से खुद को बाहर कर लिया और पश्चिमी प्रतिबंधों का हवाला देते हुए कृषि उत्पादों के निर्यात में कठिनाइयों की शिकायत की.
ब्लैक सी ग्रेन डील: खाद्य संकट का समाधान
रूस-यूक्रेन युद्ध ने वैश्विक खाद्य आपूर्ति श्रृंखला को गंभीर रूप से प्रभावित किया. विशेष रूप से ओडेसा बंदरगाह पर रूसी नाकाबंदी के कारण यूक्रेनी अनाज निर्यात ठप हो गया, जिससे वैश्विक खाद्य संकट उत्पन्न हो गया. अफ्रीका और मध्य पूर्व के देश, जो यूक्रेनी गेहूं पर निर्भर थे, भारी कमी का सामना करने लगे.
संयुक्त राष्ट्र और तुर्की की मध्यस्थता से ब्लैक सी ग्रेन डील हुई, जिसमें यूक्रेन को सुरक्षित समुद्री गलियारों से अनाज निर्यात करने की अनुमति दी गई. रूस को भी अपने अनाज और उर्वरक निर्यात की छूट दी गई, जिससे उसकी पश्चिमी प्रतिबंधों की शिकायतें कम हो सकें.
ऐसे में अब उम्मीद जताई जा रही है कि अमेरिका द्वारा मध्यस्थता किए गए इस युद्धविराम से ब्लैक सी में स्थिरता लौट सकती है, लेकिन रूस-यूक्रेन संघर्ष का दीर्घकालिक समाधान अभी भी तय नहीं है. ब्लैक सी न केवल सैन्य टकराव का केंद्र बना रहेगा, बल्कि वैश्विक व्यापार और ऊर्जा आपूर्ति के लिए भी रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बना रहेगा.