रूस और यूक्रेन युद्ध की शुरुआत नेटो सदस्यता से हुई थी. यूक्रेन द्वारा कहा गया था कि उसे हर कीमत पर नेटो की सदस्यता चाहिए. इस वजह से रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन नाराज हो गए थे और यूक्रेन के खिलाफ सैन्य कार्रवाई शुरू हुई थी. अब यूक्रेन तो अभी के लिए नेटो सदस्यता से पीछे हट गया है, लेकिन फिनलैंड और स्वीडन ने अपना मन बना लिया है. दोनों देश अगले महीने नेटो में शामिल होने को लेकर बड़ा कदम उठाने जा रहे हैं.
अभी तक फिनलैंड और स्वीडन नेटो सदस्यता के लिए जोर नहीं दे रहे थे. लेकिन जब से रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला किया गया है, दोनों ही देश अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं. इसी वजह से फिनलैंड और स्वीडन नेटो सदस्यता के लिए अप्लाई कर सकते हैं. यहां पर ये जानना जरूरी हो जाता है कि रूस हमेशा से इसके खिलाफ रहा है. खुद पुतिन भी कई बार चेतावनी जारी कर चुके हैं. उनकी नजरों में अगर ये दोनों देश नेटो की सदस्यता लेते हैं तो रूस द्वारा बाल्टिक देशों और स्कैंडिनेविया के करीब परमाणु हथियार तैनात कर दिए जाएंगे.
खबर है कि अगले महीने 16 मई को दोनों देशों के नेता मुलाकात करने जा रहे हैं. तब इस नेटो मुद्दे पर विस्तार से चर्चा हो सकती है. अभी तक दोनों ही देश न्यूट्रल चल रहे थे. वे रूस के खिलाफ कोई कदम नहीं उठा रहे थे. लेकिन अब जमीन पर समीकरण बदले हैं, जिस वजह से दोनों ही देश अब रूस की चेतावनी से भी नहीं डर रहे हैं.
स्वीडन में मौजूद अधिकारियों का कहना है कि अमेरिका और ब्रिटेन द्वारा हमेशा से उनका समर्थन किया गया है. उनकी वजह से नेटो की मदद भी लगातार मिलती रही है. ऐसे में अगले कदम के रूप में वे अब नेटो की सदस्यता चाहते हैं. नेटे संगठन की बात करें तो इसका निर्माण 1949 में किया गया था और कुल तीस देश इसमें शामिल हैं. अगर फिनलैंड और स्वीडन को भी सदस्यता दी जाती है तो नेटो का कुल आंकड़ा 32 पर पहुंच जाएगा.