अमेरिका का दुश्मन होना खतरनाक हो सकता है, लेकिन दोस्त होना जानलेवा होता है... ये अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर का कथन है और इसे अमेरिका ने एक बार फिर साबित कर दिया है. जबकि यूक्रेन इसका खामियाजा भुगत रहा है.
पिछले एक साल से यूक्रेन के बॉर्डर पर रूस के सैनिक जमा हो रहे थे और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन रूस को धमकी देने में लगे हुए थे, फिर भी वो रूस को यूक्रेन पर हमला करने से रोक नहीं पाए और अब जब रूस ने पूरी ताकत के साथ यूक्रेन पर हमला कर दिया है तो अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने युद्ध के मैदान में यूक्रेन को अकेला छोड़ दिया है. जिसके बाद यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने कह दिया है कि यूक्रेन अब अमेरिका से दोस्ती की जानलेवा कीमत चुका रहा है.
रूसी सेना ने यूक्रेन पर मिसाइलें मार-मार उसकी हालत खराब कर दी है. इस बीच फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों ने कहा कि हम बिना किसी हिचकिचाहट के यूक्रेन का समर्थन करेंगे और हम अपने यूरोपीय सहयोगियों की संप्रभुता और सुरक्षा की जिम्मेदारी लेंगे. यूक्रेन के न्यूक्लियर ठिकाने पर रूसी सेना ने अपने सैनिक उतार दिए हैं और नाटो वादा कर रहा है कि हम रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाएंगे. ये तो हद ही हो गई कि जिन देशों के भरोसे यूक्रेन ने रूस से पंगा लिया, जिस अमेरिका के दम पर यूक्रेन ने पुतिन को चैलेंज किया, अब वही देश यूक्रेन से उचित दूरी बनाकर बैठे हैं.
पुतिन फायर करके बता रहे हैं कि मैं झुकेगा नहीं...
यूक्रेन पर पुतिन अपनी पूरी ताकत के साथ फायर करके बता रहे हैं कि मैं रूकेगा नहीं. पुतिन ने ये कहा भी कि कोई बाहरी देश बीच में पड़ा तो अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहे. उधर, यूक्रेन को मदद देने के बजाय बाइडेन मुरझाए हुए फ्लावर बनकर बता रहे हैं कि मैं कुछ करेगा नहीं. बाइडेन ने कहा कि मेरी पुतिन से बात करने की कोई योजना नहीं है. पुतिन की चुस्ती और बाइडेन की सुस्ती के बीच हमले झेल रहे यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की अभी भी कह रहे हैं कि मैं झुकेगा नहीं. जेलेंस्की ने कहा कि हमें मिलकर यूक्रेन को बचाना चाहिए, लोकतांत्रिक दुनिया को बचाना चाहिए. हम यह करेंगे.
जब रूस और यूक्रेन के बीच बातचीत के जरिये मामला सुलझाने का वक्त था, तब बाइडेन रूस को धमकी पर धमकी देकर पुतिन को उकसा रहे थे, लेकिन अब जब पुतिन ने यूक्रेन पर फुल स्केल अटैक कर दिया है, तब भी यूक्रेन की मदद के लिए अपने सैनिक उतारने के बजाय बाइडेन यूक्रेन को सिर्फ जुबानी समर्थन दे रहे हैं. बाइडेन ने कहा कि मैंने कल रात यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की से बात की थी और मैं उन्हें आश्वासन देता हूं कि संयुक्त राष्ट्र और सहयोगी अपने देश की रक्षा करते हुए यूक्रेनी लोगों का समर्थन करेंगे.
सबसे ज्यादा निगेटिव रोल बाइडेन का है: एक्सपर्ट
ज्यादा दिन पुरानी बात नहीं है, जब बाइडेन दहाड़े मारकर धमकी देते थे कि अगर रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो विश्व युद्ध होगा. लेकिन बाइडेन की धमकियों को पुतिन ने मिसाइल अटैक से उड़ा दिया. रूस अब जल्द ही यूक्रेन पर कब्जा भी कर लेगा. लेकिन विश्व युद्ध नहीं हुआ क्योंकि रूस से युद्ध करने की हिम्मत किसी देश ने नहीं दिखाई. खुद को सुपरपावर कहने वाले अमेरिका ने भी नहीं. एक्सपर्ट पूर्व राजनयिक राजीव डोगरा कहते हैं कि जो इसको कहते थे कि हम आपके लिए जान कुर्बान करने के लिए तैयार हैं. नेटो की मेंबरशिप देने को तैयार है. एक किनारा कर लिया. सबसे ज्यादा नेगेटिव रोल बाइडेन का है.
रूस की सेना का अकेले अपने दम पर सामना करने में जुटे यूक्रेन को अमेरिका ने ही नहीं बल्कि उन सभी देशों ने भी पीठ दिखा दी है जिन्होंने यूक्रेन को रूस के खिलाफ साथ देने का वादा किया था. यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की रूस के हमले का जवाब देने के लिए यूक्रेन के नागरिकों से अपील कर रहे हैं क्योंकि वो समझ चुके हैं कि उन्हें बचाने कोई नहीं आएगा. अमेरिका, यूरोपियन यूनियन और नाटो पुतिन के आगे सबकी हवा खराब हो चुकी है.
जेलेंस्की ने कहा कि मैंने बाइडेन, जॉनसन, चार्ल्स मिशेल, डूडा, नौसेदा से बात की. हम पुतिन विरोधी गठबंधन बनाएंगे. मैंने पहले ही विश्व के नेताओं से पुतिन के खिलाफ हरसंभव प्रतिबंध लगाने, पूर्ण पैमाने पर रक्षा सहायता शुरू करने, हमलावरों के लिए यूक्रेन के ऊपर हवाई क्षेत्र बंद करने का आह्वान किया है. यूक्रेन पर रूस के हमलों के बाद जिस तरह यूक्रेन को अकेले छोड़ दिया गया है. यूक्रेन के इतिहास में इस युद्ध के नंबर वन विलेन पुतिन नहीं बल्कि बाइडेन होंगे, जिन्होंने यूक्रेन की पीठ में ऐसा छुरा घोंपा है जिसके जख्म आने वाले कई सालों तक रिसते रहेंगे.
पहले भी पीठ दिखा चुका है अमेरिका
20 सालों तक अफगानिस्तान में अपना सैन्य अभियान चलाने के बाद अमेरिका पिछले साल अगस्त में उल्टे पैर भाग चुका है, जिसके बाद तालिबान ने एक बार फिर अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा कर लिया. ऐसा ही धोखा अमेरिका ने सोमालिया को दिया था, जब 1993 में सोमालियाई विद्रोही सेना से लड़ाई में अमेरिकी सेनाओं ने बीच में ही मैदान छोड़ दिया था.
अप्रैल 1961 में क्यूबा में फिदेल कास्त्रो का तख्ता पलट करने के लिए अमेरिका ने विद्रोहियों को ट्रेनिंग और हथियार दिए, लेकिन जब कास्त्रो के खिलाफ हमलावरों की मदद के लिए अमेरिका को बमबारी करनी थी तो वो मुकर गया.
1975 में अमेरिका ने भी अपना असली रंग दिखाया था, जब वो वियतनाम में 19 साल लड़ने के बाद देश छोड़कर चला गया था, क्योंकि 19 साल की जंग में 58 हजार अमेरिकी सैनिक मारे जाने के बावजूद अमेरिका कम्युनिस्ट सेना से हार गया था.