रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग और तेज हो चुकी है. अभी तक रूस कीव पर अपना कब्जा तो नहीं जमा पाया है, लेकिन उसके हमले और सैन्य कार्रवाई और ज्यादा घातक होती जा रही है. बुधवार को भी यूक्रेन के रक्षा मंत्रालय के पास बड़ा धमाका हुआ है. बताया गया है कि रूसी सेना ने मिसाइल स्ट्राइक के जरिए ये हमला किया है.
रूसी सेना के हमले तेज, कीव पर कब्जा नहीं
अभी तक किसी के घायल होने की या फिर नुकसान की कोई खबर नहीं है, लेकिन इस धमाके की पुष्टि कर दी गई है. पिछले दो दिनों से रूसी सेना द्वारा लगातार हमले किए जा रहे हैं. यूक्रेन के कई इलाकों में बमबारी के जरिए इमारतों को खंडर में तब्दील कर दिया गया है. रूस की पूरी कोशिश है कि आने वाले दिनों में यूक्रेन की राजधानी कीव पर कब्जा जमाया जाए. लेकिन अमेरिका की माने तो अभी तक रूस इस लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाया है. उसकी सेना की उपस्थिति जरूर पहले से ज्यादा है, लेकिन अभी भी यूक्रेन का एयरस्पेस काम कर रहा है, रूसी सैनिक को भी यूक्रेन के नागरिकों का हर मोड़ पर सामना करना पड़ रहा है.
अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के एक सदस्य ने कहा है कि रूस पिछले कुछ दिनों से कीव पर कब्जा करने की पूरी कोशिश कर रहा है, लेकिन जमीन पर उसे वो सफलता नहीं मिल पा रही जिसकी वो उम्मीद लगाए बैठा है. उनके मुताबिक कीव के बाहर खड़ी रूसी सेना के पास अब खाने और दूसरे संसाधनों की भी कमी होने लगी है. ऐसे में यूक्रेन से ज्यादा इस समय उस रूसी सेना की चुनौती बढ़ गई है.
नेटो देशों की सुरक्षा बड़ा मुद्दा
अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन भी इस युद्ध के बीच अब हरकत में आ गए हैं. उनकी नेटो देशों के विदेश मंत्रियों संग एक अहम मुलाकात होने वाली है. उनकी पूरी कोशिश है कि नेटो देशों के खिलाफ रूस कोई कार्रवाई ना कर पाए. अभी तक लगातार राष्ट्रपति पुतिन द्वारा नेटो देशों को भी चेतावनी दी जा रही है. कहा जा रहा है कि उनकी तरफ से यूक्रेन की मदद ना की जाए. लेकिन क्योंकि नेटो देश अभी यूक्रेन को हथियार दे रहे हैं, ऐसे में उनकी सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा बन गया है. वैसे इस मुलाकात के अलावा एंटनी यूक्रेन बॉर्डर पर फंसे शरणार्थियों से भी मिलने जा रहे हैं.
वैसे इस समय युद्ध जरूर यूक्रेन और रूस में चल रहा है, लेकिन अर्थव्यवस्था के लिहाज से इसका असर पूरे यूरोपीय संघ पर भी पड़ने वाला है. इसी वजह से यूरोपीय संघ के वित्त मंत्रियों की एक अहम बैठक हो चुकी है. बताया जा रहा है कि इस युद्ध की वजह से ऊर्जा की कीमतों में बड़ा उछाल आ सकता है, सप्लाई चेन भी प्रभावित हो सकती है.