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युद्ध के 22 दिन, कीव पर नहीं हुआ कब्जा, यूक्रेन का मुंहतोड़ जवाब, गलती कर बैठे पुतिन?

रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध ने व्लादिमीर पुतिन की चुनौतियां कई गुना बढ़ा दी हैं. कहने को उनकी सेना काफी मजबूत है, हथियार भी अत्याधुनिक हैं, लेकिन जमीन पर यूक्रेन संग जारी युद्ध ने कई समीकरण बदल दिए हैं.

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रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन
स्टोरी हाइलाइट्स
  • कीव सुरक्षित, पुतिन परेशान, युद्ध से बढ़ी चुनौती
  • जेलेंस्की का जोर, यूक्रेन का जवाब, लंबा खिचा युद्ध

रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध के 22 दिन हो गए हैं. जमीन पर स्थिति अभी भी ज्यादा नहीं बदली है. रूस की बमबारी जारी है, यूक्रेन का मुंहतोड़ जवाब जारी है और कीव को लेकर आर-पार की जंग दिख रही है. अब कहने को रूस अभी भी ज्यादा ताकतवर दिखाई देता है, लेकिन जमीन पर अपने कम संसाधनों का भी बेहतर इस्तेमाल कर यूक्रेन ने रूस को काफी परेशान किया है.

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युद्ध के 22 दिन, कहां खड़ा रूस?

यही कारण है कि युद्ध के 22 दिन पूरे होने के बाद भी रूसी सेना यूक्रेन की राजधानी कीव पर कब्जा नहीं कर पाई है. अब तो ऐसी खबरें आ रही हैं कि रूस के पास कुछ ही दिनों का गोला-बारूद बचा है. रूस ने जरूर ऐसे दावों को खारिज कर दिया है, लेकिन लगातार मर रहे उसके सैनिक और हथियारों को हो रहा नुकसान अलग ही कहानी बयां करते हैं. यूक्रेन भी लगातार दावा कर रहा है कि अब तक रूस के 100 से ज्यादा रूसी विमानों को नुकसान पहुंचाया गया है, हजारों सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया गया है.

अब सवाल ये उठता है कि क्या व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन पर हमला कर कोई बड़ी गलती कर दी है? जितना आसान वे इस ऑपरेशन को समझ रहे थे, वो उतना ही ज्यादा चुनौतियों वाला साबित हो गया है? सवाल ये भी क्या अब युद्ध के 22 दिन बाद पुतिन, जेलेंस्की संग किसी समझौते पर आने का प्रयास कर रहे हैं? क्या वे अब किसी तरीके से इस युद्ध को खत्म करना चाहते हैं?

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वो प्रस्ताव जो युद्ध का अंत करता

जो खबरें सामने आ रही हैं उसके मुताबिक रूस की तरफ से कुछ प्रस्ताव तो रखे गए हैं. एक प्रस्ताव तो ये है कि यूक्रेन 'न्यूट्रल देश' बन जाए जहां पर बिना किसी गंभीर सैन्य या संप्रभु शक्ति के उसे रहना पड़ेगा. लेकिन यूक्रेन इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर रहा है. इसी वजह से ये युद्ध 22 दिन तक खिच चुका है क्योंकि पुतिन की डिमांड जेलेंस्की मान नहीं रहे हैं और जेलेंस्की के सामने पुतिन बिल्कुल भी झुकने को तैयार नहीं हैं. यही कारण है कि 22 दिन बाद भी जमीन पर तनाव कम होने के बजाय बढ़ता जा रहा है. बातचीत का दौर होता रहता है, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकलता. सहमति किसी बात पर बनती नहीं दिखती.

अब एक तरफ बातचीत फेल हो रही है तो दूसरी तरफ यूक्रेन के लिए दूसरे देशों का समर्थन बढ़ता जा रहा है. पहले कुछ देश सिर्फ प्रतिबंध लगाने तक की मदद करने को राजी हो रहे थे, लेकिन बीते कुछ दिनों में अब यूक्रेन के पास दूसरे देशों से कई अत्याधुनिक हथियार भी आ गए हैं. अब तो अमेरिका भी यूक्रेन को हथियार देने को तैयार हो गया है. ऐसे में कहा ये जा रहा है कि एक तरफ रूस के संसाधन धीरे-धीरे कम हो रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ यूक्रेन का बैकअप काफी मजबूत होता नजर आ रहा है.

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चीन से मदद लेना भी रूस के लिए भारी

एक्सपर्ट मान रहे हैं कि अगर ये युद्ध और ज्यादा दिन चलता है तो इसका नुकसान पुतिन को भी हो सकता है क्योंकि उनके संसाधन कम पड़ेंगे तो मदद करने के नाम पर उनके लिए शायद सिर्फ चीन ही आगे आएगा,और चीन से मदद लेने पर दुनिया के सामने पुतिन की छवि धूमिल हो सकती है. ऐसे में यूक्रेन अगर संकट में है तो पुतिन भी चारों ओर बड़ी चुनौतियों से घिरे हुए हैं.

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