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रूस ने यूक्रेन पर हमला क्यों किया? रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के एक कदम से दुनिया टेंशन में क्यों आ गई? यूक्रेन से रूस क्या चाहता है? क्यों दो पड़ोसी मुल्क एक दूसरे के दुश्मन हो गए? आखिर यूक्रेन ने क्या किया कि रूस अमेरिका और NATO के सदस्य देशों की नाराजगी मोल लेकर यूक्रेन पर अपनी मिसाइलें दागने लगा?
ऐसे कई सवाल हैं जिनका जवाब दुनिया जानना चाह रही है. हम आपको बताते हैं कि पूर्वी यूरोप के इस इलाके में क्यों रूस ने युद्ध का ऐलान कर दिया है?
1- सहोदर हैं रूस और यूक्रेन
जैसे स्वतंत्र भारत और पाकिस्तान एक ही दिन अस्तित्व में आए, उसी दिन तरह रूसी गणराज्य और यूक्रेन एक ही दिन वजूद में आए. ये दिन था 25 दिसबंर 1991. इस दिन सोवियत रूस (USSR) का विघटन हो गया और 15 नए देश बने. इन 15 देशों में में यूक्रेन और रूस भी थे. बता दें कि 1991 से पहले सोवियत रूस दुनिया की दो धुव्रीय व्यवस्था में साम्यवादी ब्लॉक का नेतृत्व करता था और अमेरिका से इसका जबर्दस्त कॉम्पीटिशन था. तब सोबियत रूस और अमेरिका के बीच ऐसी कट्टर प्रतिद्वंदिता थी दोनों देश कई बार युद्ध के मुहाने पर आ गए. 1945 से लेकर 1991 के इस दौर को दुनिया शीत युद्ध के नाम से जानती है. लेकिन इस रेस में पूंजीवादी अमेरिका विजयी रहा और 25 दिसंबर 1991 को USSR 15 देशों में बंट गया. इसके साथ ही अमेरिका पूरी दुनिया का अगुवा बन गया.
2- 1991 में मन मसोसकर रह गया रूस
USSR 1991 में कई हिस्सों में बंट गया. कई रूसियों ने इस घटनाक्रम को अपमान की घूंट की तरह पिया. क्योंकि USSR में शामिल रहे 15 रिपब्लिक का अगुवा रूसी गणराज्य ही था और उसे ये बात काफी अखर रही थी. तब रूस की हालत काफी कमजोर थी. उसे न चाहते हुए भी अपने साम्राज्य का पतन बर्दाश्त करना पड़ा. वह मन मसोसकर रहा गया. इधर USSR के विघटन के बाद भी अमेरिका रूस को दबाता रहा. अमेरिका ने सैन्य संगठन NATO (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी आर्गनाइजेशन) के जरिये USSR से अलग हुए देशों पर चारा डालना शुरू कर दिया और इन देशों को अपने प्रभाव में लेने लगा.
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3-पूर्वी यूरोप को कूटनीति का अखाड़ा बना चुका है NATO
1991 में USSR से अलग होकर 15 देश बने. ये देश हैं. आर्मीनिया, अजरबैजान, बेलारूस, इस्टोनिया, जॉर्जिया, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, लातविया, लिथुआनिया, माल्डोवा, रूस, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, यूक्रेन और उज़्बेकिस्तान. 2004 में इन 15 में 3 देश , लातविया, लिथुआनिया और इस्टोनिया NATO के सदस्य बन गए. इसका मतलब ये था कि अमेरिका अब रूस की गर्दन तक पहुंच चुका था. क्योंकि बाल्टिक क्षेत्र में स्थित ये तीनों देश USSR से निकले थे और इनकी सीमाएं रूस से मिलती थी. बता दें कि NATO देशों के बीच ये समझौता है कि अगर नाटो के किसी भी एक देश पर हमला होता है तो उसे NATO के सभी सदस्य अपने ऊपर हमला मानेंगे और अपनी मिली जुली सैन्य शक्ति से जवाब देंगे. नाटो में अभी 30 देश हैं. इस तरह से NATO के जरिए अमेरिका ने रूस की घेराबंद शुरू कर दी.
4-NATO मेंबर बनना चाहता है यूक्रेन, पुतिन को कतई मंजूर नहीं
यूक्रेन और रूस की सीमाएं मिलती हैं. यूक्रेन भी अपनी ताकत बढ़ाने के लिए NATO में शामिल होना चाहता था. यूक्रेन अपनी भौगौलिक स्थिति का फायदा उठाते हुए अमेरिका से मांग करने लगा कि उसे भी NATO का सदस्य बनाया जाए. यूक्रेन के राष्ट्रपित जेलसिंकी के इस कदम से पुतिन बेहद चिढ़ गए. उन्होंने यूक्रेन बॉर्डर पर अपनी सेना भेजनी शुरू कर दी. यूक्रेन के साथ रूस के टेंशन की ये तात्कालिक वजह है.
5- यूक्रेन को पश्चिम की कठपुतली बताते हैं पुतिन
रूस खुलेआम यूक्रेन को पश्चिमी दुनिया की कठपुतली है बताता है. रूस कहता है कि अमेरिका समेत NATO के सदस्य देश ये लिखित गारंटी दें कि वे अपनी सैन्य गतिविधियां पूर्वी यूरोप और यूक्रेन में न करें. पुतिन तो यह भी कहते हैं कि यूक्रेन कभी एक स्वतंत्र राज्य था ही नहीं.
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6-1999 से ही एजेंडे पर लगे हैं पुतिन
जब NATO की आड़ में अमेरिका पूर्वी यूरोप में अभी गतिविधियां बढ़ा रहा था तो पुतिन भी चुप नहीं बैठे थे. पुतिन पहले भी कह चुके हैं कि अगर उनका वश चले तो वे USSR के विघटन को पलट कर रख दें. बता दें कि रूस की राजनीति में पुतिन की एंट्री साल 1999 में होती है. इसके बाद वे 2000 में राष्ट्रपति बनते हैं. इसके बाद से ही वे 1991 की कथित 'ऐतिहासिक गलती' को 'सुधारने' में लगे हैं. पुतिन ने 1999 में ही चेचन्या को रूस में मिला लिया था.
इसके बाद से पुतिन USSR के पुरातन गौरव को हासिल करने में लगे रहे. आज पुतिन ने जो रणनीतिक कदम उठाया है 2008 में भी पुतिन ने वैसा ही किया था. उन्होंने USSR के अंग रहे जॉर्जिया के दो राज्यों को स्वतंत्र देश की मान्यता दे दी और वहां अपना सैन्य अड्डा बना लिया.
7-क्रीमिया पर कब्जा
2014 में पुतिन ने यूक्रेन का हिस्सा रहे क्रीमिया पर कब्जा कर लिया. क्रीमिया काला सागर में स्थित एक क्षेत्र है. यह यूक्रेन और रूस दोनों के करीब है. यहां की काफी आबादी रूसी भाषा बोलती है. पुतिन ने पहले यहां रूसी समर्थक सरकार बनवाई फिर अपनी सेना भेज कर इस इलाके पर कब्जा कर लिया.
8-यूक्रेन भले ही देश अलग है लेकिन रूसी संस्कृति का व्यापक प्रभाव है
क्रीमिया पर रूसी कब्जे ने अमेरिका और NATO को टेंशन में डाल दिया. अमेरिका को समझ में आ गया कि अगर रूस को न रोक गया तो यूक्रेन का स्वतंत्र अस्तित्व भी खतरे में आ सकता है. इसलिए यूक्रेन को NATO में मिलाने की कोशिशें होने लगी. लेकिन पुतिन इसका विरोध कर रहे थे. दरअसल यूक्रेन की आबादी में रूस का व्यापक प्रभाव है. यहां हर पांच में से एक व्यक्ति रूसी भाषा बोलता है. यहां पर रूस का सांस्कृतिक प्रभाव है. अगर यूक्रेन के पूरब के हिस्से की बात करें तो यहां के लोग अपने आप को रूस के करीबी समझते हैं जबकि पश्चिम के लोग खुद को यूरोप से नजदीक मानते हैं. इस देश में इसी प्रभुत्व की लड़ाई है. यूक्रेन का पूर्वी हिस्सा रूस से सटा है और यहां लोग रसियन बोलते हैं जबिक पश्चिम में ठीक इसके विपरित है. रूसी एलिट्स इसी सांस्कृतिक प्रभाव का हवाला देकर यूक्रेन के पूर्वी हिस्से को रूस में विलय को जायज मानते हैं.
9-लुहंस्क और डोनेत्स्क संप्रभु देश की मान्यता देकर पुतिन ने बता दिए थे इरादे
राष्ट्रपति पुतिन ने पहले यूक्रेन के दो प्रदेशों लुहंस्क और डोनेत्स्क को स्वतंत्र देश की मान्यता दी. ये दोनों प्रदेश यूक्रेन के इसी पूर्वी इलाके में स्थित हैं. यहां रूस रणनीति के तहत अलगाववादी ताकतों को हवा देता है और खुलेआम इस प्रदेश को इतिहास और भूगोल का हवाला देते हुए रूस के ऐतिहासिक गणराज्य का हिस्सा बताता है. इसी रणनीति पर काम करते हुए पुतिन ने 21 फरवरी को यूक्रेन के दो अशांत क्षेत्रों को संप्रभु राष्ट्र की मान्यता दे दी.
10-मौका मिलते ही कीव में गरजने लगी रूसी मिसाइलें
पुतिन के इस कदम के साथ ही दुनिया को रूस के अगले कदम का अंदाजा हो गया था. पुतिन ने धीरे-धीरे अपनी सेना को इन दोनों प्रदेशों की ओर रवाना कर दिया. यहां यह दिलचस्प है कि यूक्रेन पर हमले को रूस कब्जा नहीं बताता है. रूस का दावा है कि वो यूक्रेन के लोगों को यूक्रेनी अत्याचार से मुक्ति दिलाना चाहता है. 24 फरवरी को जब सुबह-सुबह यूक्रेन की राजधानी कीव में बैलिस्टिक मिसाइलें कहर बरपाने लगी तो रूस की ओर से एक बार फिर यही कहा गया कि वह यूक्रेन के लोगों को आजाद कराने के लिए ये हमला कर रहा है और उसका शहरों पर कब्जा करने का कोई इरादा नहीं है.