
Russia-Ukraine Conflict: रूस और यूक्रेन के बीच जंग शुरू हो गई है. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) ने यूक्रेन के खिलाफ सैन्य ऑपरेशन शुरू करने का आदेश दे दिया है. इससे पहले सोमवार को पुतिन ने पूर्वी यूक्रेन के डोनेत्स्क (Donetsk) और लुहंस्क (Luhansk) को अलग देश के तौर पर मान्यता देने के बाद वहां सेना भेज दी थी.
रूस और यूक्रेन के बीच इस बार विवाद की जड़ NATO को माना जा रहा है. NATO यानी नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन, जिसे 1949 में शुरू किया गया था. यूक्रेन NATO में शामिल होना चाहता है लेकिन रूस ऐसा नहीं चाहता.
रूस को लगता है कि अगर यूक्रेन NATO में शामिल हुआ तो NATO देशों के सैनिक और ठिकाने के उसकी सीमा के पास आकर खड़े हो जाएंगे. लेकिन सवाल ये है कि रूस NATO से इतना चिढ़ता क्यों है? इसे समझने के लिए पहले NATO क्या है, ये समझना जरूरी है?
दरअसल, 1939 से 1945 के बीच दूसरा विश्व युद्ध हुआ. इसके बाद सोवियत संघ ने पूर्वी यूरोप के इलाकों से सेनाएं हटाने से इनकार कर दिया. 1948 में बर्लिन को भी घेर लिया. इसके बाद अमेरिका ने सोवियत संघ की विस्तारवादी नीति को रोकने के लिए 1949 में NATO की शुरुआत की. जब NATO बना तब इसके 12 सदस्य देश थे, जिनमें अमेरिका के अलावा ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा, इटली, नीदरलैंड, आइसलैंड, बेल्जियम, लक्जमबर्ग, नॉर्वे, पुर्तगाल और डेनमार्क शामिल हैं. आज NATO में 30 देश शामिल हैं.
NATO एक सैन्य गठबंधन है, जिसका मकसद साझा सुरक्षा नीति पर काम करना है. अगर कोई बाहरी देश किसी NATO देश पर हमला करता है, तो उसे बाकी सदस्य देशों पर हुआ हमला माना जाएगा और उसकी रक्षा के लिए सभी देश मदद करेंगे.
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अब बात रूस की चिढ़ क्यों?
दूसरा विश्व युद्ध खत्म होने के बाद दुनिया दो खेमों में बंट गई. दो सुपर पावर बन चुके थे. एक अमेरिका था और एक सोवियत संघ. 25 दिसंबर 1991 को सोवियत संघ टूट गया. टूटकर 15 नए देश बने. ये 15 देश थे- आर्मीनिया, अजरबैजान, बेलारूस, इस्टोनिया, जॉर्जिया, कजाकिस्तान, कीर्गिस्तान, लातविया, लिथुआनिया, मालदोवा, रूस, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, यूक्रेन और उज्बेकिस्तान.
सोवियत संघ के बिखरने के बाद दुनिया में अमेरिका ही एकमात्र सुपर पावर बन गया. अमेरिका के नेतृत्व वाला NATO अपना दायरा बढ़ाता चला गया. सोवियत संघ से टूटकर अलग बने देश NATO के सदस्य बनते चले गए. 2004 में इस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया NATO में शामिल हो गए. 2008 में जॉर्जिया और यूक्रेन को भी NATO में शामिल होने का न्योता दिया गया था, लेकिन दोनों देश सदस्य नहीं बन सके.
रूसी राष्ट्रपति पुतिन NATO के विस्तार आपत्ति जता चुके हैं. पिछले साल दिसंबर में उन्होंने कहा था, 'हमने साफ कह दिया है कि पूरब में NATO का विस्तार मंजूर नहीं है. अमेरिका हमारे दरवाजे पर मिसाइलों के साथ खड़ा है. अगर कनाडा या मैक्सिको की सीमा पर मिसाइलें तैनात कर दी जाएं तो अमेरिका को कैसा लगेगा?'
हालांकि, ऐसा भी कहा जाता है कि एक समय पुतिन रूस को NATO को सदस्य बनवाना चाहते थे, लेकिन अब पुतिन NATO से चिढ़ते हैं. रूस की सीमा से सटे इस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया और तुर्की NATO के सदस्य हैं. अगर यूक्रेन भी NATO से जुड़ जाता है तो रूस पूरी तरह से घिर जाएगा और यही उसे गंवारा नहीं है. पुतिन का तर्क है कि अगर यूक्रेन NATO में जाता है तो भविष्य में NATO की मिसाइलें यूक्रेन की धरती पर मिनटों में आ जाएंगी, जो रूस के लिए बड़ी चुनौती है.
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रूस और NATO में कोई मुकाबला है?
चाहे सैन्य ताकत हो या रक्षा पर खर्च, दोनों ही मामलों में रूस और NATO का कोई मुकाबला नहीं है. NATO के मुताबिक, 2021 में सभी 30 देशों का अनुमानित संयुक्त खर्च 1,174 अरब डॉलर से ज्यादा का है. 2020 में NATO के देशों ने 1,106 अरब डॉलर खर्च किए थे. वहीं, रूस ने 2020 में अपनी रक्षा पर 61.7 अरब डॉलर का खर्च किया था.
NATO के 40 हजार से ज्यादा सैनिक कभी भी लामबंद होने के लिए तैयार हैं. वहीं, अगर युद्ध में सीधे NATO शामिल हुआ तो उसके पास 33 लाख से ज्यादा जवान हैं. वहीं, रूस के पास करीब 12 लाख की सेना है, जिसमें से 8 लाख जवान सक्रिय हैं.
तो फिर रूस क्या चाहता है?
रूस चाहता है कि पूर्वी यूरोप में NATO अपना विस्तार बंद करे. पुतिन यूक्रेन के NATO में शामिल न होने की गारंटी मांग रहे हैं. वो ये भी चाहते हैं कि पूर्वी यूरोप में NATO अपना विस्तार 1997 के स्तर पर ले जाए और रूस के आसपास हथियारों की तैनाती बंद करे.
इसके अलावा रूस ने उन 14 देशों को NATO का सदस्य बनाने को भी चुनौती दी है जो वार्सा संधि (Warsaw Pact) का हिस्सा थे. 1955 में NATO के जवाब में वार्सा संधि हुई थी, जिसका मकसद सभी सदस्य देशों को सैन्य सुरक्षा मुहैया कराना था. हालांकि, सोवियत संघ के टूटने के बाद इस संधि का भी बहुत ज्यादा मतलब नहीं रह गया.
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यूक्रेन क्यों चाहता है NATO में शामिल होना?
1917 से पहले रूस और यूक्रेन रूसी साम्राज्य का हिस्सा थे. रूसी क्रांति के बाद जब साम्राज्य बिखरा तो यूक्रेन ने खुद को स्वतंत्र देश घोषित कर दिया. लेकिन कुछ ही सालों बाद सोवियत संघ में शामिल हो गया.
1991 में यूक्रेन को आजादी मिली. यूक्रेन के दो हिस्से हैं, पहला है पूर्वी और दूसरा पश्चिमी. पूर्वी यूक्रेन के लोग खुद को रूस के करीब मानते हैं तो पश्चिमी यूक्रेन के लिए यूरोपियन यूनियन के.
पूर्वी यूक्रेन के कई इलाकों पर रूसी समर्थित अलगाववादियों का कब्जा है. यहां के डोनेत्स्क और लुहंस्क को भी रूस ने अलग देश के तौर पर मान्यता दे दी है. 2014 में रूस ने हमला कर क्रीमिया को अपने देश में मिला लिया था.
रूस की तुलना में यूक्रेन की सेना काफी छोटी है. रूस के पास जहां 8.5 लाख से ज्यादा सक्रिय जवान हैं तो यूक्रेन के पास 2 लाख सक्रिय जवान हैं. रूस का रक्षा बजट भी यूक्रेन से 10 गुना ज्यादा है. ऐसे में अपनी आजादी को बरकरार रखने के लिए यूक्रेन को ऐसे सैन्य संगठन की जरूरत है जो उसकी रक्षा कर सके और NATO से बेहतर कोई दूसरा संगठन नहीं हो सकता.