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जंगल में एयरड्रॉप, लैंंड माइंस, थर्मल ब्लैंकेट... 40 दिनों तक यूक्रेन में घुसकर ऑपरेशन करने वाले 3 रशियन सैनिकों की कहानी

रूसी मरीन के सैनिक जिसे कोड नेम बायबा मिला था, यूक्रेन के जंगल में हुई एक लड़ाई को याद करते हुए कहता है, "मुझे एक गोली लगी, लेकिन गोली मेरे शरीर को नहीं बल्कि मेरे कवच पर लगी. मैं गिर गया, तड़तड़, तड़तड़... मैंने दुश्मन पर पूरी मैगजीन ही खाली कर दी, एक ग्रेनेड फेंका, फिर फायर किया और रेंगने की कोशिश करने लगा."

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तीन रशियन सैनिकों ने आजाद कराया इलाका. (फोटो- स्पूतनिक)
तीन रशियन सैनिकों ने आजाद कराया इलाका. (फोटो- स्पूतनिक)

"हमने लोमड़ी की मांद जैसे बिल बनाए, उसमें FPV ड्रोन लगाए. थर्मल इमेजिंग से खुद को बचाने के लिए कवर का इस्तेमाल किया. इसके लिए हम थर्मल ब्लैंकेट का प्रयोग कर रहे थे, मैं खुद को थर्मल ब्लैंकेट से ढक लिया करता था. मेरा एक भरोसेमंद साथी था, वो जख्मी हो गया था. मैंने उसका इलाज किया. मौका पड़ने पर भागना भी पड़ता था."

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"40 दिनों में, दुश्मन हम तीनों को मिटाने में नाकाम रहे. उन्हें एहसास हुआ कि इस क्षेत्र में कोई है, उन्होंने एयरड्रॉप और मोर्टार के साथ गोलीबारी की बरसात कर दी. माइंस बिछाने के दौरान एक रात मैं चोटिल हो गया."

रणभूमि के ये अनुभव उन रूसी मरीन सैनिकों के हैं जिन्हें जिन्हें फरवरी 2025 के मध्य में रूस के कुर्स्क क्षेत्र में एक घने जंगल के बीच बसे एक गांव में एक मिशन के साथ एयरड्रॉप किया गया था. ये मिशन था एक गांव को यूक्रेन के कब्जे से 'आजाद' करने का. 

कड़कड़ाती सर्दी में  कुमिस (Kumys), बायबा (Byba), और बुबा (Buba) कोड नेम के ये तीन रूसी मरीन सैनिक दुश्मन के इलाके में 40 दिनों तक रहे. शत्रुओं के हमले को झेला, लैंड माइंस को डिएक्टिवेट किया नए लैंड माइंस बिछाए और आखिरकार कुरिलोव्का गांव को यूक्रेन के कब्जे से आजाद करा लिया. 

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रूसी न्यूज एजेंसी स्पूतनिक ने इन तीन सैनिकों के बहादुरी के किस्सों को दुनिया के सामने लाया है. 

कुमिस,बायबा और बुबा रूसी सेना के काला सागर बेड़े की 810वीं मरीन ब्रिगेड के सैनिक हैं. यह कहानी विपरित हालात में उनकी साहस, संघर्ष और जीवित रहने की अद्भुत क्षमता को दर्शाती है. 

कुरिलोव्का की लड़ाई के नायकों में से एक सैनिक ग्रुप कमांडर कुमिस यूनिट में सबसे अनुभवी सेनानियों में से एक हैं. 

दुश्मन जैसे आगे बढ़ा लैंड माइंस फट गया

फरवरी के मध्य में, कुमिस और दो लड़ाकों बायबा और बूबा को कुरिलोव्का के दक्षिणी बाहरी इलाके में एक जंगल में चुपके से ड्राप किया गया. 
ताकि सुमी क्षेत्र में यूक्रेनी सैनिकों के लिए वापसी के संभावित मार्गों को खत्म किया जा सके, साथ ही साथ उनके पास पहुंचने वाले मदद के संभावित सभी रास्तों को तबाह किया जा सके. 

इस ऑपरेशन की कामयाबी के बाद बूबा ने स्पूतनिक से कहा, "हमारे ग्रुप को काम दिया गया था कि हम जंगल के एक इलाके में जाएं, वहां कब्जा करें और पूरे क्षेत्र में, रास्तों पर लैंड माइंस बिछा दें, ताकि वहां से होकर दुश्मन के टैंक और सेनाएं नहीं गुजर सकें. संक्षेप में हमने सड़कों पर लैंड माइंस बिछाया, रेंग कर चले और फिर खेतों में बूबी ट्रैप (किसी वस्‍तु में छुपाया गया यंत्र जो छूने वाले व्‍यक्ति को मार, घायल या चौंका देता है) बिछा दिया.हमने एक क्षेत्र पर कब्जा किया, और अपनी लाइन पर डटे रहे. तब कुरिलोव्का शत्रु के ही कब्जे में था. हमने कुरिलोव्का से ठीक पीछे अपनी पोजिशन ली जबकि हमारी मुख्य सेना धीरे-धीरे इस गांव पर कब्जा कर रही थी. 

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"ऐसा हमने इसलिए किया क्योंकि वे पीछे न जा पाए. और युद्ध के नए रसद न ला पाएं. मुझे एक घटना याद आती है हमने लैंड माइंस बिछा दी थी, ग्रेनेड लगा दिए थे, जैसे ही दुश्मन का एक समूह उधर से जाना चाहा एक धमाका हुआ. मैंने वहां खून के निशान देखे. वे लोग इससे आगे नहीं जा सके. "

यूक्रेनी सैनिकों से जब्त हथियार. (फोटो- स्पूतनिक)

बूबा ने कहा कि इस दौरान हम बर्फबारी के बीच लोमड़ी की मांद जैसा बिल बनाकर रह रहे थे. और थर्मल ब्लैंकेट के जरिये दुश्मन से अपनी रक्षा कर रहे थे. 

अपने ऑपरेशन को याद करते हुए कुमिस ने स्पूतनिक से कहा, "मुझे जो सबसे ज्यादा याद है वह यह है कि कैसे तीन यूक्रेनी सैनिक हमारे सामने कुरिलोव्का के बाहरी इलाके में एक घर के तहखाने में छिर गए, और हमने उनकी ओर ड्रोन उड़ाया. उसी समय, 810वीं ब्रिगेड की दो बटालियनों ने उत्तर और पूर्व से कुरिलोव्का पर हमला किया. 

कुमिस ने कहा, "ड्रोन ने हमला किया, और दो मिनट बाद दो यूक्रेनी सैनिक बाहर निकल कर जंगल में भागने लगे, लेकिन मेरे साथियों ने वहां उन पर फायर किया. हमने एक को मार दिया. दूसरा घर के पीछे लेट गया और मैं उसकी ओर घूम कर गया और 10-15 मीटर दूर से उस पर फायर किया और उसे खत्म कर दिया. फिर मैंने घर के बेसमेंट में ग्रेनेड फेंककर तीसरे को खत्म कर दिया."

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लोमड़ी की मांद में थर्मल कंबल लपेट कर...

40 दिनों का ये मिशन खाने-पीने के लिए चुनौतियां लेकर आया. गुरिल्ला युद्ध के तकनीक का प्रयोग करते हुए ये सैनिक रात में लोमड़ी के रहने जैसा मांद खोदते और थर्मल कंबल को लपेट कर उसमें घुसकर जान बचाते, ऐसा इसलिए करना जरूरी था कि ताकि  थर्मल इमेजर वाले हेलीकॉप्टर उन्हें पहचान न सकें.  

इन सैनिकों ने खाने में यूक्रेनी सैनिकों से जब्त खाने का इस्तेमाल किया और मौका मिलने पर ड्रोन से गिराए गए खाने को खाया. पानी के लिए वे बर्फ को गैस बर्नर पर पिघलाते और उसे ही पीते थे. 

जंगल की तेज सर्दी और लगातार खतरे के बीच ये सैनिक 40 दिनों तक जीवित रहे. इस दौरान उन्हें न केवल प्राकृतिक परिस्थितियों, बल्कि यूक्रेनी सेना के हमलों और निगरानी से भी बचना पड़ा. 

पूरी मैगजीन ही खाली कर दी

कोड नेम बायबा इस ऑपरेशन को याद करते हुए कहता है कि इन 40 दिनों के दौरान हम असली भाई बन गए. बायबा कहता है, "सौभाग्य से हमारा नेतृत्व अनुभवी कुमिस ने किया. दो-तीन बार उसके फैसलों ने हमारी जान बचाई."

कुरिलोव्का को 'आजाद' कराने के दौरान कई बार इन सैनिकों की जान पर बन आई. बायबा कहता है, " हम प्लेखोवो के नजदीक थे, हमारा काम एक जगह को क्लियर करना था. अपने ग्रुप के कवर का सहारा लेते हुए मैं जंगल के किनारे आ गया. तभी मुझे एक गोली लगी, लेकिन गोली मेरे शरीर को नहीं बल्कि मेरे कवच पर लगी. मैं गिर गया, मैंने दुश्मन पर पूरी मैगजीन ही खाली कर दी, एक ग्रेनेड फेंका, फिर फायर किया और रेंगने की कोशिश करने लगा. हालांकि मुझे बाद में पता लगा कि मुझे गोली लगी है."

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जब बायबा से पूछा गया कि क्या आपको वहां डर लग रहा था. तो उन्होंने बिना कोई डींग हांके इसका ईमानदार उत्तर दिया, "डरावना माहौल तो हमेशा होता है, मैं उन लोगों पर विश्वास नहीं करता हूं  जो कहते हैं कि डर नहीं लगता है, डर तो लगता ही है लेकिन मैं भाग्य को शुक्रिया कहना चाहता हूं कि मैं बच गया. 
 

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