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क्या सऊदी अरब को नहीं फिलिस्तीन की परवाह? इजरायल के साथ शांति पर US को भेजा ये संदेश

सऊदी अरब और इजरायल के बीच शांति समझौते पर लंबे समय से बातचीत चल रही थी. प्रिंस मोहम्मद अपने देश को सुरक्षित करना चाहते हैं और इस मोर्चे पर वह किसी तरह का रोड़ा नहीं चाहते. गाजा युद्ध के बीच सऊदी का रुख स्पष्ट है और एमबीएस इजरायल से सिर्फ फिलिस्तीन को एक देश के रूप में मान्यता देने पर सिर्फ सहमति चाहते हैं. आइए समझते हैं पूरा मामला.

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जो बाइडेन, प्रिंस मोहम्मद
जो बाइडेन, प्रिंस मोहम्मद

इजरायल और हमास की जंग कमोबेश चार महीने से चल रही है. इस दौरान इजरायली सेना ने तमाम गाजा में जबरदस्त तबाही मचाई. महिलाओं और बच्चों की मौतों और गाजा की तबाही पर कोई अगर खामोश रहा तो वो है अरब मुल्क, जो इजरायल के साथ शांति कायम करने की चाहत रखते हैं. सऊदी अरब भी इजरायल के साथ शांति समझौते की जद्दोजहद में जुटा है. अमेरिका में इसी साल आम चुनाव है और इससे पहले मोहम्मद बिन सलमान रक्षा की डील फाइनल करना चाहते हैं.

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सऊदी अरब की कोशिश है कि इजरायल बस इतना कबूल कर ले कि वो फिलिस्तीन को एक अलग देश के रूप में मान्यता देगा और मांग के मुताबिक, फिलिस्तीन की सीमा स्वीकार करेगा. मसलन, एमबीएस चाहते हैं कि इजरायल लंबे समय से चल रहे टू-स्टेट फॉर्मूले पर कम से कम अपनी सहमति दे दे. अक्टूबर में हमास द्वारा इजरायल पर हमले के बाद सऊदी-इजरायल के बीच होने वाले संभावित समझौते को स्थगित करना पड़ा था.

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सऊदी अरब की सुरक्षा एमबीएस के लिए अहम

प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान सऊदी अरब को सुरक्षित करने और "दुश्मन" ईरान के खतरों को दूर करने के लिए उत्सुक हैं. वह सऊदी अरब की तेल पर निर्भरता कम करने की कोशिश में हैं और यही वजह है कि वह अमेरिका का दामन थामे रखना चाहते हैं. शांति समझौते के बाद एमबीएस को यह उम्मीद है कि सऊदी की सुरक्षा बढ़ेगी और साथ ही अर्थव्यवस्था को भी बल मिलेगा. 

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प्रिंस मोहम्मद के बारे में कहा जाता है कि वह सऊदी को 2030 तक तेल इकोनॉमी से मुक्त करने के अपने विजन पर काम कर रहे हैं और इस दौरान वह किसी भी तरह का रोड़ा नहीं चाहते. न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने अपनी एक रिपोर्ट में मोहम्मद के करीबी सूत्रों के हवाले से बताया था कि उन्हें 'फिलिस्तीन के मुद्दे पर कुछ ज्यादा फर्क नहीं पड़ता.' मसलन, फिलिस्तीन के मुद्दे पर एमबीएस का रुख स्पष्ट है और सऊदी को सुरक्षित करने की दिशा में किसी तरह के समझौते के पक्ष में नहीं हैं.

बस इजरायल स्वीकार कर ले टू-स्टेट फॉर्मूला

रॉयटर्स ने ही अपनी एक ताजा रिपोर्ट में कहा है कि इजरायल को मान्यता देने और अमेरिकी समझौते को पटरी पर लाने के बारे में बातचीत में कुछ ढील देने के लिए, सऊदी अरब अमेरिका के सामने यह स्पष्ट कर चुका है कि वे फिलिस्तीन के रूप में एक देश बनाने के लिए कोई ठोस कदम उठाने पर जोर नहीं देंगे. मसलन, इसकी बजाय अगर इजरायल बस यह स्वीकार कर ले कि वो दो देश (इजरायल-फिलिस्तीन) बनाने के पक्ष में है, सऊदी के लिए यह काफी होगा.

जो बाइडेन के लिए शांति समझौता फायदे का सौदा

इजरायल और सऊदी अरब के बीच अगर शांति समझौते पर डील फाइनल होती है तो यह सिर्फ इजरायल की ही जीत नहीं होगी बल्कि इसका बड़ा हकदार अमेरिका होगा, जो ईरान को "सबक" सिखाने की चेतावनियां देता है. अब्राहम समझौते को डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में लॉन्च किया गया था, जिसे अब तक यूनाइटेड अरब अमीरात समेत तीन खाड़ी मुल्क स्वीकार कर चुके हैं. अगर सऊदी अरब भी इस समझौते को स्वीकार करता है और इजरायल के साथ शांति कायम करता है तो यह जो बाइडेन की कूटनीतिक जीत होगी, जो 5 नवंबर 2024 के मतदान में भी उनके लिए फायदे का सौदा होगा.

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इजरायल करेगा स्वीकार या सऊदी देगा फिलिस्तीन की कुर्बानी?

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सऊदी अरब ने निजी तौर पर अमेरिका से गाजा युद्ध रोकने की अपील की है. वाशिंगटन गल्फ रिसर्च सेंटर थिंक टैंक के प्रमुख अब्देलअजीज अल-साघेर ने बताया कि सऊदी चाहता है कि पहले युद्ध रुके, गाजा में मानवीय मदद भेजी जाए और इजरायल फिलिस्तीन को एक देश के रूप में मान्यता देने की अपनी प्रतिबद्धता जाहिर करे. बकौल थिंक-टैंक "सऊदी अरब इसके इतर कुछ नहीं कर सकता." 

हालांकि, समस्या यह है कि प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू अपने कार्यकाल के दौरान फिलिस्तीन के सख्त खिलाफ रहे हैं. साथ ही उन्होंने फिलिस्तीन बनाने के सऊदी और अमेरिका दोनों की मंशाओं को खारिज किया है. अब देखने वाली बात होगी कि बेंजामिन नेतन्याहू सऊदी की डिमांड पर सहमत होते हैं या सऊदी अरब ही अपनी रक्षा बढ़ाने पर फिलिस्तीन की कुर्बानी देता है.

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