scorecardresearch
 

सऊदी अरब और ईरान की कूटनीतिक दोस्ती का भारत पर क्या असर?

दशकों से दुश्मन रहे सऊदी अरब और ईरान ने राजनयिक संबंध बहाल करने की घोषणा की है. साल 2016 में सऊदी अरब ने शिया धर्मगुरु को फांसी पर चढ़ा दिया था. इसके बाद दोनों देशों ने अपने राजनयिक रिश्ते खत्म कर दिए थे. आइए जानते हैं कि इस समझौते का भारत पर क्या असर पड़ेगा?

Advertisement
X
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (फोटो- रॉयटर्स)
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (फोटो- रॉयटर्स)

मिडिल ईस्ट में दशकों से दुश्मन रहे इस्लामिक देश सऊदी अरब और ईरान ने राजनयिक संबंध बहाल करने की घोषणा की है. हाल ही में चीन की राजधानी बीजिंग में चार दिनों तक चली बातचीत के बाद दोनों देश राजनयिक संबंध बहाल करने पर राजी हुए हैं. इस समझौते को कराने में चीन की अहम भूमिका बताई जा रही है. बीजिंग में हुआ सऊदी-ईरान समझौता अगर सफल रहा तो भारत समेत दुनिया भर में इसके दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं.  

Advertisement

दोनों देशों के बीच समझौता हो जाने तक इस बातचीत को गुप्त रखा गया था. जानकारों का मानना है कि यह समझौता सऊदी अरब और ईरान के बीच सालों से जारी तनाव के कम होने का एक संकेत है. इस समझौते का अमेरिका, फ्रांस, जॉर्डन समेत कई पश्चिमी देशों ने स्वागत किया है, लेकिन भारत ने अभी तक इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. 

भारत के नजरिए से यह समझौता इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत ने पिछले कुछ सालों से मध्य-पूर्व खासकर खाड़ी देशों के साथ कई अहम समझौता किए हैं, जिसमें यूएई के साथ सीईपीए यानी व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौता (Comprehensive Economic Partnership Agreement) भी शामिल है.

भारत पर कितना असर?

वर्तमान में भारत का रिश्ता ईरान और सऊदी अरब दोनों से ठीक है. लंबे समय से भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में सऊदी अरब का अहम रोल रहा है. इराक के बाद भारत सबसे ज्यादा कच्चा तेल सऊदी अरब से खरीदता रहा है. लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से भारत ने सऊदी अरब और इराक के बजाय रूस से सबसे ज्यादा कच्चा तेल खरीदा है.

Advertisement

दूसरी तरफ 2010-11 तक ईरान भी भारत के लिए दूसरा सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता देश था, लेकिन अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण भारत को ईरान से व्यापार कम करना पड़ा.

दरअसल, परमाणु कार्यक्रम की वजह से अमेरिका ने ईरान पर तमाम प्रतिबंध लगा दिए थे, जिसके बाद भारत ने ईरान से तेल खरीदना कम कर दिया था. इस तरह ईरान, भारत से दूर होता गया और चीन से उसकी उसकी नजदीकियां बढ़ती गई. ऐसे में सऊदी अरब और ईरान के बीच बदलते रिश्ते और इस पर भारत की चुप्पी से चर्चा तेज हो गई हैं. 

यह चर्चा इसलिए भी मायने रखता है क्योंकि दोनों देशों को करीब लाने में चीन ने अहम भूमिका निभाई है. इस समझौते में चीन की अहम भूमिका से न केवल पश्चिम एशिया में एक बड़ा पुनर्गठन की संभावना है, बल्कि अमेरिका के लिए भी एक तरह से बड़ा भू-राजनीतिक खतरा है.  

हालांकि, ईरान के साथ भारत का मजबूत संबंध रहा है. मध्य एशियाई देशों तक संपर्क स्थापित करने के लिए भारत ईरान से संबंध मजबूत करता रहा है. इसके अलावा ईरान में चाबहार बंदरगाह बनाने में भी भारत सहयोग कर रहा है. सऊदी अरब भी भारत को मित्र राष्ट्र की तरह देखता है. कश्मीर मुद्दे पर दोनों देश भारत के प्रति नरम रुख अपनाते हैं.

Advertisement

विशेषज्ञों का मानना है कि चूंकि भारत के दो दोस्त ईरान और सऊदी अरब जो पहले दुश्मन थे, अब वो दोस्त बन रहे हैं. ऐसे में वर्तमान स्थितियां भारत के लिए थोड़ी अनुकूल दिख रही हैं. इससे वैश्विक कूटनीति में भारत के लिए दुविधा कुछ कम हो सकती है.

जेएनयू में पश्चिम एशिया के विशेषज्ञ प्रोफेसर एके पाशा ने बीबीसी से बात करते हुए कहा, "परमाणु कार्यक्रम के कारण लगे प्रतिबंध और अमेरिकी दबाव की वजह से भारत को ईरान से व्यापार कम करना पड़ा. ये भारत के लिए मुश्किल रहा लेकिन इससे अभी तक कुछ खास नुकसान नहीं हुआ है. लेकिन अगर पाकिस्तान में सैन्य शासन आता है या अफगानिस्तान में कुछ और बदलाव होता है तो भारत-ईरान संबंधों पर असर होगा."
 

चीन की ग्लोबल डिप्लोमैटिक पावर बनने की इच्छा

पश्चिम एशिया में लंबे समय से अमेरिका का प्रभाव रहा है. प्रमुख वैश्विक शक्ति के रूप में अमेरिका का संघर्ष-ग्रस्त क्षेत्रों में काफी भू-राजनीतिक प्रभाव रहा है. सऊदी अरब और ईरान के बीच समझौते में चीन की अहम भूमिका इस क्षेत्र में अमेरिकी प्रभाव को कम करने का संकेत है.

'द न्यूयार्क टाइम्स' का कहना है कि चीन ने लंबे समय से दोनों देशों के साथ संबंध बनाए रखा है. यह समझौता पश्चिम एशिया क्षेत्र में चीन के बढ़ते राजनीतिक और आर्थिक दबदबे की ओर इशारा करता है. 

Advertisement

पूर्व अमेरिकी राजनयिक डेनियल रुसेल ने रॉयटर्स से बात करते हुए कहा, "सऊदी अरब और ईरान के बीच राजनियक संबंध बहाल कराना चीन के लिए बड़ी बात है, उसमें भी तब जब वो खुद इस विवाद का हिस्सा नहीं था. चीन का यह कदम विश्व मंच पर बड़ी कूटनीतिक भूमिका निभाने की इच्छा को दर्शाता है."

सऊदी अरब और ईरान के बीच समझौता

चीन के शीर्ष राजनयिक वांग यी की मौजूदगी में ईरान की सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सचिव अली शामखानी और सऊदी अरब के सुरक्षा सलाहकार मुसैद बिन मोहम्मद अल-एबन ने इस समझौते पर दस्तखत किए हैं. 

'द न्यूयॉर्क टाइम्स' के मुताबिक, इस समझौते के तहत ईरान और सऊदी अरब ने दो महीने के भीतर एक दूसरे के देशों में दूतावासों को फिर से खोलने और व्यापार, निवेश और सांस्कृतिक समझौते को फिर से शुरू कर सात साल से बंद राजनयिक संबंध को बहाल करने की घोषणा की है.

सऊदी-ईरान विवाद की असली वजह

सऊदी अरब और ईरान के बीच विवाद की असली वजह इस्लामी संप्रदायवाद है. ईरान शिया बहुल देश है, जबकि सऊदी अरब को सुन्नी इस्लाम का धार्मिक घर माना जाता है. सांप्रदायिक प्रतिद्वंद्विता बाद में दोनों देशों के बीच क्षेत्रीय आधिपत्य के लिए संघर्ष में बदल गया. 

बीबीसी के अनुसार, साल 2016 में सऊदी अरब ने शिया धर्मगुरु को फांसी पर चढ़ा दिया था. इसके बाद दोनों देशों ने अपने राजनयिक रिश्ते खत्म कर दिए थे. फांसी दिए जाने के बाद से सऊदी और और ईरान के बीच भारी तनाव रहा है. 

Advertisement

 

Advertisement
Advertisement