सऊदी अरब अपनी अंतरराष्ट्रीय छवि बदलने की कोशिश में लगा हुआ है. सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान कई ऐतिहासिक सुधार कर रहे हैं जिससे देश के भविष्य को लेकर रूढ़िवादियों और प्रगतिशील लोगों के बीच एक नया विवाद खड़ा हो गया है. इसी बीच मोहम्मद बिन सलमान ने पिछले सप्ताह अपने एक निकट सहयोगी अली अल-हुवैरिनी को खो दिया जो इन सुधारों में उनके साथ खड़े थे.
अली अल-हुवैरिनी एक सऊदी अभिनेता, निर्देशक, विचारक और कवि थे. वो हॉलीवुड से फिल्म निर्देशन में डिग्री हासिल करने वाले पहले सऊदी नागरिक थे. उन्हें सऊदी का अभिजात्य वर्ग एक उदार और सुधारवादी व्यक्ति के रूप में देखता था. अल-हुवैरिनी को इस्लामिक इतिहास पर विवादास्पद विचारों के लिए जाना जाता था.
उनके निधन ने एक बार फिर सऊदी अरब में चल रहे सुधार पर बहस छेड़ दी है. हाल के वर्षों में एक इंटरव्यू में, अल-हुवैरिनी ने अल-अंडालस, जो कि इबेरियन प्रायद्वीप में मुस्लिम शासित क्षेत्र था, में इस्लाम की उपस्थिति को 'अरब का पिछड़ापन' कहा था.
अधिकांश इबेरियन प्रायद्वीप पर 8वीं से 15वीं शताब्दी तक मुसलमानों का शासन था. इतिहासकार इसे इस्लाम के स्वर्ण काल में से एक के रूप में मानते हैं. मध्ययुगीन यूरोप में अल-अंडालस ज्ञान का एक महत्वपूर्ण केंद्र था.
800 से अधिक वर्षों तक अल-अंदालुस मुस्लिम दुनिया और यूरोप, दोनों के लिए ज्ञान का केंद्र था. इस इबेरियन प्रायद्वीप को अंततः ईसाई स्पेनिश सम्राटों ने जीत लिया और मुसलमानों द्वारा बनाए गए सभी निर्माणों को नष्ट कर दिया था. केवल विश्व प्रसिद्ध अलहम्ब्रा महल छोड़ दिया गया.
इस अवधि के बारे में पूछे जाने पर अल-हुवैरिनी ने कहा था कि इस क्षेत्र में मुसलमानों ने कुछ भी बड़ा काम नहीं किया था. उनका कहना था, 'ये संस्कृति के ऐसे पहलू हैं जिन पर हमें गर्व करने का कोई अधिकार नहीं है. इसमें गर्व करने की क्या बात है? 800 साल और आपने अल्हाम्ब्रा के अलावा कुछ भी पीछे नहीं छोड़ा?'
अल-हुवैरिनी ने इबेरियन प्रायद्वीप में मुस्लिम विस्तार को लेकर Sword Of the Arab में इस्लामिक इतिहास की जो व्याख्या की है, उसकी काफी आलोचनाएं हुई हैं.
अल-हुवैरिनी ने कहा था, 'इस्लाम एक विस्तारवादी आंदोलन नहीं है. इस्लाम एक संदेश है. लोगों को इस्लाम की शिक्षा दें और उन्हें अपनी क्षमताओं के अनुसार इसे स्वीकार करने के लिए छोड़ दें. मुझ पर अपने विश्वास को न थोपें.'
इस्लामी इतिहास पर अल-हुवैरिनी के विचार हाल के वर्षों में सऊदी अरब में बदलाव को भी दर्शाते हैं. सऊदी अरब इस्लाम को फिर से फ्रेम कर रहा है. जो इस्लामी विद्वान इन नए सुधारों की प्रशंसा नहीं करते, उन्होंने या तो सार्वजनिक रूप से बोलना बंद कर दिया है या वो सलाखों के पीछे हैं.
एक विश्लेषक के अनुसार, सऊदी अरब की धार्मिक पहचान मौजूदा नेतृत्व के दृष्टिकोण से मेल नहीं खाती. सऊदी अरब के उभरते हुए नेता देश में एक नया राष्ट्रवाद लेकर आए हैं जिसका उद्देश्य युवा नेतृत्व की शक्ति में वृद्धि करना और सुधारों को बढ़ावा देना है.
बदलाव के क्षेत्र में सऊदी सरकार का हालिया कदम संगीत समारोह का आयोजन करना था. देश की राजधानी रियाद में दिसंबर में चार दिवसीय इलेक्ट्रॉनिक संगीत समारोह आयोजित किया गया था. अधिकारियों ने दावा किया कि इस कार्यक्रम में 7 लाख लोग शामिल हुए.
सरकार ने इस्लाम के सबसे पवित्र स्थल मक्का की मस्जिद में जाने वालों को लेकर भी नियम बनाए जिसे लेकर आलोचक प्रिंस सलमान पर भड़क गए. कोविड को देखते हुए एक सरकार ने नए नियम लागू किए हैं, जिसके तहत मस्जिद में जा रहे लोगों को कोविड-19 को रोकने के लिए सामाजिक दूरी बनाने की आवश्यकता है.
लोगों ने सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि मस्जिद में जाने को लेकर नियम बनाए गए जबकि संगीत समारोह में एक साथ लाखों लोग जमा हो रहे हैं.
एक सऊदी विश्लेषक ने कहा कि सऊदी का समाज तेजी से इस तरह के बदलावों का आदी नहीं है. ऐसे में समाज में इन सुधारों को लेकर नया विवाद खड़ा हो सकता है.