12वीं से 13वीं सदी के ग्रेट ब्रिटेन में लगातार काफी सारे युद्ध होते. यूरोप भी इससे अछूता नहीं था. वहां स्पेन से लेकर फ्रांस, जर्मनी और पुर्तगाल लगातार अपना साम्राज्य बढ़ाने के लिए दूसरे देशों की सीमाओं पर हमला करते. एक तरह से कहें तो ये युद्ध का दौर था. इसमें शारीरिक-मानसिक तौर पर तंदुरुस्त हर आदमी का सेना के लिए काम करना जरूरी था. लेकिन बहुत से रईस ऐसे थे, जो जंग पर जाकर अपंग होने या जान गंवाने से डरते. ऐसे लोग सीधे-सीधे राजा को मना नहीं कर सकते थे. तो इसका भी तोड़ निकाला गया.
शौकीन अमीर बचते थे जंग पर जाने से
किंग हैनरी प्रथम के दौर से लेकर 13वीं सदी के आखिर तक बुजदिली का टैक्स लागू रहा. अगर आप सेना में भर्ती नहीं होना चाहते तो बदले में पैसे दे दीजिए. इससे दूसरे सैनिकों की भर्ती हो जाती थी और राजकोश भी भरा रहता था. यहां तक कि ज्यादा पैसे देने वाले सामंतों और दूसरे अमीर लोगों को सेना की ट्रेनिंग से भी छुटकारा मिल जाता और वे मजे में राग-रंग में डूबे रहते.
शासकीय जबान में इस टैक्स को स्कूटेज कहा गया
ये लैटिन भाषा के स्कटम से निकला है, जिसका मतलब है शील्ड या कवच. फ्यूडल लॉ में ये वो कर है, जो नाइट के पद पर बैठा शख्स राजा को देता है. लेकिन नाइट तक ये रकम वो अय्याश रईस पहुंचाते तो किसी भी तरह की शारीरिक मेहनत और लड़ाई से बचते. कई बार पैसों की बजाए दूसरी चीजें भी टैक्स के रूप में दी जाती थीं. जैसे अगर राजा का मन किसी शानदार घोड़े पर आ गया हो तो वो घोड़ा खरीदकर राजकोष में जमा करना होता. बदले में एक लिखित करार होता, जिसमें एक तय समय के लिए टैक्स देने वाले को जंग पर जाने से छूट मिल जाती.
खजाना भरने लगा, सेनापति गायब होने लगे
वैसे तो स्कूटेज का चलन यूरोपियन देशों में भी था, लेकिन 12वीं सदी की शुरुआत में ब्रिटेन में ये खूब चला. धीरे-धीरे कर की रकम बढ़ती चली गई. ये राजकोष में तो जाती ही थी, साथ ही साथ उन बड़े लोगों में भी बंटने लगी, जो सेना की अगुवाई करते. 13वीं सदी में ऐसा हाल हो गया कि जिसे देखो वही सेना में जाकर हाथ-पांव गंवाने से बचने के लिए पैसे जमा करने लगा. राजा के पास खजाना तो होगा, लेकिन सेना और सेनापति ही नहीं होंगे तो क्या फायदा! आखिरकार 14वीं सदी में स्कूटेज को पूरी तरह से खत्म कर दिया गया. गुस्साए हुए सामंतों ने खूब हो-हल्ला किया, लेकिन ये टैक्स दोबारा शुरू नहीं हुआ.
राजस्व भरने के लिए नई-नई तरह के टैक्स लगाए जाने लगे
लगभग सभी तरह के कर अमीरों के लिए थे. और टैक्स पे करना उनके लिए एक तरह से गर्व की भी बात थी. अमीर टैक्स-पेयर की बात राजा भी सुनता था. उस दौर में एक टैक्स खिड़कियों पर लगने लगा. इसकी शुरुआत साल 1696 में ब्रिटिश राजा विलियम तृतीय ने की थी. ये एक तरह का प्रॉपर्टी टैक्स था जो इस आधार पर दिया जाता कि आपके घर में कितनी ज्यादा खिड़कियां हैं.
विंडो टैक्स की वसूली ज्यादा आसान थी
तब बड़े महलनुमा घर होते थे, जिनमें खूब सारी खिड़कियां भी होतीं. 6 खिड़कियों के बाद ये टैक्स लागू हो जाता. तो अमीरों की जेब पर काफी वजन पड़ने लगा. यहां तक कि लागू होने से लेकर साल 1808 तक ये टैक्स छह गुना बढ़ा दिया गया. ये कर वसूलना आसान था, क्योंकि तब अपार्टमेंट तो होते नहीं थे और हर घर की खिड़कियां दूर से ही नजर आ जातीं.
जल्द ही लोगों ने इसका भी तोड़ खोज निकाला
वे अपने घरों की ज्यादा से ज्यादा खिड़कियां ब्लॉक करने लगे. यहां तक कि जो नए घर बन रहे थे, उनमें बहुत कम या खिड़कियां ही नहीं थीं. आबादी बढ़ रही थी. नए घर भी बन रहे थे, लेकिन राजस्व में खास बढ़त नहीं हो रही थी. इसी समय आबादी में बीमारी की खबरें भी आने लगीं. तब उस दौर के डॉक्टरों ने विंडो टैक्स का भारी विरोध शुरू कर दिया. उनका कहना था कि ये टैक्स रोशनी और सेहत पर टैक्स है. साल 1851 में विंडो टैक्स को पूरी तरह से खत्म कर दिया गया और इसकी जगह हाउस टैक्स लागू हो गया.
विंडो टैक्स के विरोध और उसके खत्म होने के ही समय लंदन में एक मैगजीन निकली. पंच मैगजीन को दुनिया में पहली ऐसी व्यंग्य पत्रिका की तरह भी जाना जाता है, जो कार्टून के जरिए प्रशासन का नियमों का मजाक बनाती. मैगजीन ने भी विंडो टैक्स पर एक के बाद एक कई कार्टून छापे, जिसके बाद ही राजा पर इस बेहद अजीबोगरीब टैक्स को खत्म करने का दबाव बढ़ा.