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ICJ चुनाव को लेकर शशि थरूर ने इन 7 ट्वीट से उधेड़ कर रख दी ब्रिटेन की बखिया

थरूर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में बतौर जज नियुक्ति के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा में स्पष्ट बहुमत हासिल करने के बावजूद भारतीय उम्मीदवार जस्टिस दलवीर भंडारी की नियुक्ति में अड़ंगा डालने को लेकर भड़के हुए थे. उन्होंने आरोप लगाया कि 'ब्रिटेन संयुक्त राष्ट्र महासभा के बहुमत की इच्छा को बाधित करने की कोशिश कर रहा है'.

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शशि थरूर
शशि थरूर

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केरल के तिरुवनंतपुरम से कांग्रेस सांसद और संयुक्त राष्ट्र के पूर्व राजनयिक शशि थरूर ने संयक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य ब्रिटेन की बखिया उधेड़ दी.

थरूर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में बतौर जज नियुक्ति के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा में स्पष्ट बहुमत हासिल करने के बावजूद भारतीय उम्मीदवार जस्टिस दलवीर भंडारी की नियुक्ति में अड़ंगा डालने को लेकर भड़के हुए थे. उन्होंने आरोप लगाया कि 'ब्रिटेन संयुक्त राष्ट्र महासभा के बहुमत की इच्छा को बाधित करने की कोशिश कर रहा है'.

 सुंयुक्त राष्ट्र के तय नियमों के मुताबिक, आईसीजे में बतौर जज नियुक्ति के लिए उम्मीदवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा में 97 वोट हासिल और सुरक्षा परिषद से 8 वोट हासिल करने होते हैं.

आईसीजे की 15 सदस्यीय पीठ के एक तिहाई सदस्य हर तीन साल में नौ वर्ष के लिए चुने जाते हैं. इसके लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद में अलग अलग लेकिन एक ही समय चुनाव कराए जाते हैं.

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आईसीजे में चुनाव के लिए मैदान में उतरे कुल छह में से चार उम्मीदवारों को महासभा और सुरक्षा परिषद दोनों में पूर्ण बहुमत मिलने के बाद चुन लिया गया. इनमें फ्रांस के रॉनी अब्राहम, सोमालिया के अब्दुलकावी अहमद यूसुफ, ब्राजील के एंतोनियो अगस्ते कानकाडो त्रिनदादे और लेबनान के नवाफ सलाफ शामिल हैं.

ऐसे में जज के एक पद के लिए भंडारी और ब्रिटिश उम्मीदवार क्रिस्टोफर ग्रीनवुड के बीच मुकाबला था. यहां इस एक सीट को लेकर पांच राउंड के चुनाव कराए गए, जहां भंडारी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपना वोट 115 से बढ़ाकर 121 कर, जबकि ग्रीनवुड का कुल वोट 76 से घटकर सोमवार को 68 पर पहुंच गया. हालांकि इसके बावजूद संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद की बैठक आगे के लिए टाल दिया गया.

इससे भड़के थरूर ने एक के बाद एक कई ट्वीट कर करके ब्रिटेन और संयुक्त राष्ट्र के ढांचे पर सवाल उठाए. थरूर ने लिखा, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और महासभा जब अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के जज के लिए भारत और ब्रिटेन के उम्मीदवारों के बीच चुनाव हो रहे हैं, ऐसे वक्त में संयुक्त राष्ट्र की वैधता और प्रभावशीलता दांव पर लगी है. महासभा की आवाज लंबे समय से अनसुनी की जाती रही है.

इसके साथ ही वह ब्रिटेन पर प्रहार करते हुए कहते हैं, 'इस बार संयुक्त राष्ट्र के स्थायी सदस्य का उम्मीदवार महासभा में स्पष्ट बहुमत हासिल करने में नाकाम रहा. महासभा का वोट बीते 70 से अधिक वर्षों से विशेषाधिकारों को अनुचित बढ़ावा दिए के लिए विरोध था. पी5 (5 महाशक्तियां) 40 वोटों से हार गईं!'

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इसके साथ ही उन्होंने लिखा, यह चुनाव किसी न्यायाधीश या जिस देश से वह संबंध रखता है, उसके बारे में नहीं है, बल्कि यह चुनाव महासभा के विशेषाधिकार प्राप्त देशों के एक सदस्य के खिलाफ खड़ा होना है, जो महासभा में बड़े स्तर पर हार गया, लेकिन सुरक्षा परिषद में उसे छह के मुकाबले नौ सदस्यों से बढ़त मिल गई. ब्रिटेन महासभा के बहुमत की इच्छा को बाधित करने की कोशिश कर रहा है.'

थरूर ने इसके साथ ही आरोप लगाया, 'वैश्विक अदालत के न्यायाधीशों को संयुक्त राष्ट्र सदस्यता के बहुमत का प्रतिनिधित्व करना चाहिए. सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यों का क्लब इस तरह आगे नहीं बढ़ सकता.'

थरूर ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के निर्णय को अधिकतर सदस्यों की आवाज को प्रतिबिम्बित करना चाहिए, ना कि लंबे समय से विशेषाधिकार प्राप्त कुछ देशों के निर्णय को. उन्होंने कहा, 'केवल इसी प्रकार का बहुपक्षवाद अंतरराष्ट्रीय समुदाय खासकर युवा पीढ़ी के बीच विश्वास को प्रेरित करेगा.' उन्होंने कहा कि यह भारत या किसी एक देश के बारे में नहीं है. यह न्याय, समता और निष्पक्षता के विचार के बारे में है.

इसके साथ ही उन्होंने कहा, यह बस भारत या किसी एक देश के बारे में नहीं. यह न्याय, समानता और निष्पक्षता के विचार को लेकर है. यह उस भविष्य को लेकर है, जो हम संयुक्त राष्ट्र को लेकर देखते हैं. जिसकी कल्पना हम संयुक्त राष्ट्र और बहुपक्षवाद के बारे में करते हैं. अब यह सुधार का समय है. मैं सुरक्षा परिषद के सदस्यों से अपील करता हूं कि वह भारत के उम्मीदवार के लिए मतदान करें.'

उन्होंने कहा, 'सिद्धांत के इन बिंदुओं के अलावा भारत ने अधिक न्यायसंगत वैश्विक व्यवस्था की तलाश में अपने साझीदारों के साथ हमेशा साझा जिम्मेदारी निभाई है. हमारे मूल्य हमें विवादों के शांतिपूर्ण समाधान और नियम आधारित रचनात्मक बहुलतावाद की ओर ले जाते हैं.'

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