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बांग्लादेश में बिना विपक्ष के चुनाव में शेख हसीना ने पांचवीं बार मारी बाजी, जानिए खालिदा जिया कैसे सियासी सीन से दो दशक में हो गईं गायब

बांग्लादेश में एक बार फिर शेख हसीना प्रधानमंत्री बनने जा रही हैं. उन्होंने लगातार चौथी बार जीत हासिल की. हालांकि, देश में वे पांचवीं बार पीएम बनेंगी. इस बार आम चुनाव में हसीना की पार्टी आवामी लीग को 300 में से दो-तिहाई से ज्यादा सीटों पर जीत मिली है.

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बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना और पूर्व पीएम खालिदा जिया.
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना और पूर्व पीएम खालिदा जिया.

बांग्लादेश में एक बार फिर शेख हसीना की सरकार बन गई है. उन्होंने देश में लगातार चौथी बार जीत हासिल की है. हालांकि, उनकी यह पांचवी बार सरकार होगी. बीच में एक बार देश में खलीदा जिया की सरकार रही है. इस जीत के साथ शेख हसीना बांग्लादेश में सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहने वाली नेता बनने जाएंगी. विपक्षी दलों ने आम चुनाव का बायकॉट किया था.

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बांग्लादेश में शेख हसीना की अवामी लीग पार्टी ने छिटपुट हिंसा और मुख्य विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और उसके सहयोगियों के बहिष्कार के कारण हुए आम चुनावों में भारी बहुमत हासिल किया है. हसीना की पार्टी ने 300 सीटों वाली संसद में 223 सीटें जीतीं. 299 सीटों के लिए चुनाव हुआ था. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एक उम्मीदवार की मौत के कारण वहां बाद में उपचुनाव होगा.

कैसे बांग्लादेश में हाशिए पर आ गईं खालिदा जिया....

खालिदा जिया के पति जिया-उर-रहमान बांग्लादेश के राष्ट्रपति रह चुके हैं. वे एक सैन्य शासक से राजनेता बने थे. जिया पर आरोप है कि उन्होंने अपने पति के नाम पर बने एक अनाथालय में धन का गबन किया है. भ्रष्टाचार के दो आरोपों में 2020 में 17 साल की जेल की सजा सुनाई गई थी. बाद में जिया को सशर्त रिहाई दे दी गई थी. वे इस समय घर में नजरबंद हैं. उन्होंने बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) बनाई है. बांग्लादेश में खालिद जिया की सरकार का कार्यकाल 1991 से 1996 तक और 2001 से 2006 तक रहा है.

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'15 साल से ज्यादा समय एक भी चुनाव नहीं जीती BNP'

दरअसल, पिछले एक दशक के दौरान बीएनपी संकट में घिरी रही है. भ्रष्टाचार के मामले में खालिद जिया जेल गईं तो पार्टी के सामने नेतृत्व संकट गहरा गया. बाद में BNP ने जमात-ए-इस्लामी से गठबंधन किया, जिसके बाद यह पार्टी धीरे-धीरे पिछड़ती चली गई. जानकार कहते हैं कि BNP ने बांग्लादेश में लोकप्रियता खो दी है. पिछले 15 साल से ज्यादा वक्त से पार्टी एक भी चुनाव नहीं जीत सकी है. जानकार कहते हैं कि खालिदा पर विदेशी चंदे में गबन के आरोप भी लग चुके हैं. उनके बेटे तारिक रहमान लंदन में निर्वासित जीवन बिता रहे हैं. तारिक को साल 2004 में शेख हसीना की हत्या करवाने के आरोप में सजा दी गई थी. मां-बेटे की की गैर मौजूदगी ने पूरी पार्टी को कमजोर कर दिया है.

2009 से लगातार जीत रहीं शेख हसीना

खालिदा जिया 1991 से 1996 तक पीएम रहीं. उसके बाद शेख हसीना पीएम बनीं. वे 1996 से 2001 तक पीएम रहीं. खालिद जिया की फिर सत्ता में एंट्री हुई. उन्होंने साल 2001 से    2006 तक सरकार चलाई. बाद में 2009 में शेख हसीना दूसरी बार पीएम बनीं और लगातार जीत हासिल कर रही हैं.

'जातीय पार्टी को 11 सीटें मिलीं'

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संसद में मुख्य विपक्षी दल जातीय पार्टी को 11 सीटें मिलीं. बांग्लादेश कल्याण पार्टी ने एक सीट पर जीत हासिल की. जबकि 62 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार विजयी हुए. जातीय समाजतांत्रिक दल और वर्कर्स पार्टी ऑफ बांग्लादेश ने एक-एक सीट जीती. रविवार को मतदाताओं ने वोटिंग में बहुत कम दिलचस्पी दिखाई. अवामी लीग के उम्मीदवारों और अवामी लीग के 'निर्दलीय' उम्मीदवारों के बीच मुकाबला देखने को मिला. चुनाव से पहले बीएनपी की बहिष्कार की धमकी के बाद हसीना प्रशासन ने कई रणनीतियां अपनाईं, जिनमें कथित तौर पर दबाव बनाना शामिल था.

'2009 से पीएम हैं शेख हसीना'

76 वर्षीय हसीना अवामी लीग की अध्यक्ष भी हैं. उन्होंने गोपालगंज-3 सीट से जबरदस्त जीत हासिल की. संसद सदस्य के रूप में शेख हसीना का आठवां कार्यकाल है. 2009 से रणनीतिक रूप से बांग्लादेश में शासन कर रहीं हसीना ने एकतरफा चुनाव में रिकॉर्ड जीत हासिल की है. बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर्रहमान की बेटी शेख हसीना  2009 से बांग्लादेश की प्रधानमंत्री हैं.

'वोटर्स में नहीं रहा उत्साह'

देश में 1991 में लोकतंत्र की बहाली के बाद से दूसरी बार सबसे कम मतदान देखा गया है. फरवरी 1996 के विवादास्पद चुनावों में 26.5 प्रतिशत मतदान हुआ था, जो बांग्लादेश के इतिहास में सबसे कम वोटिंग प्रतिशत रहा था. रविवार के चुनाव में दोपहर तीन बजे तक 27.15 प्रतिशत मतदान हुआ था. शाम चार बजे मतदान समाप्त होने के बाद चुनाव आयोग ने बताया कि लगभग 40 प्रतिशत मतदान हुआ है. यानी एक घंटे में 13 प्रतिशत तक मतदान में उछाल आया था. पार्टी नेताओं ने दावा किया कि कम मतदान इस बात का सबूत हैं कि उनका बहिष्कार आंदोलन सफल रहा है. इस कार्यक्रम से शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक विरोध कार्यक्रमों में तेजी आएगी.

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'चुनाव से 15 पार्टियों ने बनाई थी दूरी'

बता दें कि पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया (78 साल) के नेतृत्व वाली बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) ने चुनाव का बहिष्कार कर दिया था और वोटिंग के दिन मतदान से दूरी बना ली थी. पार्टी मंगलवार से शांतिपूर्ण सार्वजनिक सहभागिता कार्यक्रम के जरिए अपने सरकार विरोधी आंदोलन को तेज करने की योजना बना रही है. इससे पहले भी बीएनपी ने 2014 में चुनाव का बहिष्कार किया था. हालांकि, 2018 में BNP ने चुनाव में हिस्सा लिया था. इस बार फिर  चुनाव का बहिष्कार किया. 15 अन्य राजनीतिक दलों ने भी चुनाव का बहिष्कार किया था.

'निर्दलीय उम्मीदवारों की जीत ने चौंकाया'

चुनावों से पहले हसीना की सरकार ने हजारों प्रतिद्वंद्वी राजनेताओं और समर्थकों को गिरफ्तार कर लिया था. इस कदम की विपक्ष ने निंदा की थी. हसीना ने जातीय पार्टी और अन्य सहयोगियों के साथ सीटों का बंटवारा किया और चुनाव को भागीदारीपूर्ण और प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए अपनी पार्टी के सभी नेताओं और कार्यकर्ताओं को निर्दलीय उम्मीदवारों के रूप में दौड़ में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया था. लेकिन निर्दलीय उम्मीदवारों की अप्रत्याशित जीत ने पॉलिटिकल सैनेरियो को काफी हद तक बदल दिया है. यह सत्तारूढ़ दल के भीतर आंतरिक प्रतिस्पर्धा के एक नए युग की ओर इशारा भी कर रहा है.

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अवामी लीग के महासचिव ओबैदुल कादिर ने दावा किया कि लोगों ने वोट देकर बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी के चुनाव बहिष्कार को खारिज कर दिया है. कादिर ने कहा, मैं ईमानदारी से उन लोगों को धन्यवाद देता हूं जिन्होंने 12वें राष्ट्रीय संसदीय चुनावों में भाग लेने के लिए बर्बरता, आगजनी और डर की परवाह नहीं की. शांतिपूर्ण मतदान के बीच शुक्रवार देर रात से देशभर में करीब 18 आगजनी की घटनाओं की सूचना मिली. इनमें से 10 जगहों पर पोलिंग बूथों को निशाना बनाया गया. बीडी न्यूज अखबार ने कहा, जैसे ही बांग्लादेश अवामी लीग इस नए कार्यकाल में कदम रख रहा है, विपक्ष का नया आकार देश की संसदीय गतिशीलता और राजनीतिक संतुलन के भविष्य के बारे में महत्वपूर्ण सवाल खड़े कर रहा है.

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