जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे (Japan Former PM Shinzo Abe) की हत्या जिस बंदूक से की गई है, वह एक देसी कट्टा या तमंचा है. जिसे हत्यारे ने अपने घर पर बनाया था. जापान में हथियारों को लेकर बेहद सख्त कानून है. हर कोई हथियार नहीं रख सकता. इसलिए हत्यारे ने इस बंदूक अपने घर पर ही बनाया था. जिसे जिपगन (Zipgun) कहते हैं. ये भारत के कुछ राज्यों में अपराधियों द्वारा उपयोग में लाए जाने वाले कट्टे या तमंचे की तरह ही होता है.
जिपगन (Zipgun) को साधारण भाषा में इंप्रोवाइज्ड फायरआर्म्स (Improvised Firearms), पाइप गन (Pipe Gun) या स्लैम गन (Slam Gun) भी कहते हैं. इन हथियारों को अधिकृत फैक्ट्रियों में नहीं बनाया जाता. ये अवैध रूप से तैयार किए जाते हैं. इनका मुख्य उद्देश्य सिर्फ टारगेट को मारना होता है. इनकी क्वालिटी और सटीकता का कोई भरोसा नहीं होता. इसलिए कई बार ऐसे बंदूकों का उपयोग करते समय ये विस्फोट करके फट जाते हैं.
आमतौर पर अपराधी और घुसपैठिये ऐसी बंदूकों का उपयोग करते हैं. या फिर हिंसक समूहों द्वारा किया जाता है. कई देशों में ऐसे बंदूक सुरक्षा या शिकार के लिए भी बनाए जाते हैं. जापान के पूर्व पीएम को मारने के लिए जिस तरह के जिप गन का उपयोग किया गया है. उसमें दो मेटल पाइप, तार, लकड़ी के ब्लॉक, सैलोटेप और लिथियम बैटरी विस्फोट के लिए उपयोग की गई थीं. नीचे दिए गए इंफोग्राफिक्स में आपको यह आसानी से दिख जाएगा.
क्या होते हैं जिपगन (Zipgun)?
किसी भी जिपगन (Zipgun) को बनाने के लिए सिर्फ तीन चीजों की प्रमुख तौर पर जरूरत पड़ती है. पहली बैरल यानी नली. कट्टे और तमंचे के लिए ऐसी नलियां भारत में गाड़ियों के स्टीयरिंग पाइप को काटकर बनाया जाता है. जापान में इसके लिए हत्यारे ने किसी और तरीके का उपयोग किया होगा. दूसरी ब्रीचब्लॉक (Breechblock) यानी जो विस्फोटक को आगे बढ़ाने और प्रेशर क्रिएट करने का काम करता है. तीसरा फायरिंग मैकेनिज्म. शिंजो आबे के हत्यारे ने अपनी जिपगन में लिथियम बैटरी को फायरिंग एक्टिवेट करने के लिए चुना है. यानी करंट के जरिए बिना किसी आवाज के बंदूक में विस्फोट होगा. बैरल के अंदर मौजूद गोली धमाके के साथ टारगेट पर जाकर लगेगी.
कितनी होती है जिपगन (Zipgun) की रेंज?
जिपगन (Zipgun) की रेंज छोटी दूरी के लिए किया जाता है. इसमें कम ताकत वाली गोलियां लगती हैं. आमतौर पर .22 कैलिबर या फिर 12 बोर या फिर 9 मिमी की. एक रबर बैंड से फायरिंग पिन को ताकत मिलती है. जैसे धनुष-तीर का मैकेनिज्म होता है. रबर जितना पीछे जाएगा उतनी ही तेजी से वो फायरिंग पिन को हिट करेगा. उतनी ही तेजी से गोली बाहर निकलेगी. अगर रबर बैंड कमजोर होगा तो बंदूक की ताकत कम हो जाती है. यहां पर हत्यारे ने लिथियम आयन बैट्री की मदद से फायरिंग के लिए स्पार्क का उपयोग किया होगा.
अलग-अलग देश में कट्टे का अलग-अलग नाम
जिपगन (Zipgun) यानी देसी कट्टा या देसी तमंचा. भारत में इसे क्या कहते हैं वो हम आपको बता चुके हैं. लेकिन अर्जेंटीना में इसे तुम्बेरा (Tumbera), मलेशिया में बाकाकुच (Bakakuk) और फिलिपींस में सुपंक (Sumpak) कहते हैं. ये बंदूकें कीलों, स्टील पाइप, लकड़ी के ब्लॉक्स, स्ट्रिंग्स, रबर बैंड्स, बैट्री आदि से बनाई जाती हैं. ज्यादा बेहतर तमंचे का मतलब होता है उसमें ज्यादा अच्छी और डिजाइन की गई धातु या लकड़ी लगाई गई है, यानी उसकी उपयोग दो या तीन बार से ज्यादा किया जाता सकता है.
कितने प्रकार के होते हैं ये जिपगन (Zipgun)?
जिपगन (Zipgun) के देसी कट्टे का एक प्रकार है. ये कई तरह के बनाए जाते हैं. जिपगन (Zipgun) के अलावा पेन गन (Pen Guns) का उपयोग पहले होता था. ये बेहद छोटी पिस्टल होती थीं, यानी आपकी कलम पिस्टल होती थी. जिसमें से एक या दो राउंड फायर करने की क्षमता होती थी.
इसके अलावा पाइप गन (Pipe Guns) भी होती हैं. द्वितीय विश्व युद्ध के समय फिलिपींस में इनका उपयोग सबसे ज्यादा किया गया था. सबसे ज्यादा उपयोग गुरिल्ला युद्ध के समय किया जाता था. इसमें दो पाइप्स को जोड़कर सिंगल शॉट वाली गन बनाई जाती थी.
पाकिस्तान-अफगानिस्तान में सबसे ज्यादा बड़ी मंडी
इतना ही नहीं बाद में ऐसी बंदूकों का उपयोग अलग-अलग चीजों में किया जाने लगा. जैसे टॉर्च में, मोबाइल फोन गन, स्टिक फोन, केन गन, फिंगर रिंग गन, लाइटर गन या सिगरेट केस गन. इनके अलावा देसी ऑटोमैटिक मशीन गन भी बनने लगी हैं. पाकिस्तान और अफगानिस्तान में तो ऐसे हथियारों की खुली मंडी लगती है. वहां पर खाइबर पास में ब्रिटिश मार्टिनी राइफल की नकल से लेकर AK-47 तक की हूबहू नकल मिलती है. आमतौर पर इन्हें दर्रा आदम खेल नाम के इलाके में बनाया जाता है.
भारत, द. अफ्रीका और चीन में भी लगता है बाजार
भारत के बिहार और पूर्वांचल के इलाकों में ऐसे देसी कट्टे, तमंचे और राइफल बनाए जाते हैं. दक्षिण अफ्रीका के जुलूलैंड में देसी बंदूकें बनती है. आमतौर पर ये पुल एंड रिलीज तकनीक पर काम करने वाली होती हैं. चीन में भी इस तरह के हथियारों का बाजार है. फिलिपींस के सेबू प्रांत के डानाओ शहर में तो यही काम होता है. रूस, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी अंडरग्राउंड फैक्ट्रियां हैं, जहां पर ऐसी बंदूकें बनाई जाती हैं.