हाल ही में खबर आई थी कि श्रीलंका चीनी जहाजों को अपने हिंद महासागर के बंदरगाहों पर ठहरने से रोकने के लिए एक साल की रोक लगा रहा है. हिंदुस्तान टाइम्स ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि श्रीलंका ने भारत को इस बारे में सूचित किया है कि वो चीन के किसी भी रिसर्च जहाज को अपने बंदरगाह पर रुकने या अपने विशेष आर्थिक क्षेत्र में संचालित होने की अनुमति नहीं देगा. सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट में लिखा गया कि श्रीलंका ने भारत को यह जानकारी कूटनीतिक माध्यम से दी है. इस खबर के सामने आने के बाद चीन की सत्ताधारी कम्यूनिस्ट पार्टी का मुखपत्र माना जाने वाले अखबार ग्लोबल टाइम्स भड़क गया है.
ग्लोबल टाइम्स ने भारत पर तंज करते हुए लिखा है, 'हिंद महासागर केवल और केवल भारत का है और क्षेत्र के देश किस देश के साथ किस तरह का सहयोग करेंगे, यह भारत की मर्जी के हिसाब से होगा- भारत का हालिया संदेश तो यही है.'
दरअसल, चीन का खोजी जहाज Xiang Yang Hong 3, 5 जनवरी से मई के अंत तक दक्षिणी हिंद महासागर में श्रीलंका के विशेष आर्थिक क्षेत्र में रुककर 'अनुसंधान' का काम करने वाला था लेकिन अब श्रीलंकाई अधिकारियों की तरफ से इस जहाज को श्रीलंका में ठहरने की अनुमति नहीं दी जा रही है. यह भारत के लिए अच्छी खबर है क्योंकि चीनी जहाज अक्सर श्रीलंकाई बंदरगाहों पर रुकते हैं जिसे लेकर विश्लेषकों का कहना है कि ये जहाज दक्षिण भारत में रणनीतिक संस्थाओं की जासूसी करते हैं.
श्रीलंका ने भारत को सूचना दी तो भड़क गया ग्लोबल टाइम्स
चीनी जहाज को अपने बंदरगाहों पर रुकने से एक साल के लिए रोकना और उसकी सूचना भारत को देना चीनी अखबार को रास नहीं आया और उसने एक रिपोर्ट में अपनी भड़ास निकाली है.
ग्लोबल टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, 'दो संप्रभु देशों श्रीलंका और चीन के बीच किसी मामले पर श्रीलंका को भारत को सूचित क्यों करना पड़ा? चीन का वैज्ञानिक रिसर्च जहाज, जो कि भारत नहीं बल्कि श्रीलंका जाने वाला था, भारत की रणनीतिक और सुरक्षा चिंताओं को कैसे ट्रिगर करती है? श्रीलंका हिंद महासागर में एक परिवहन केंद्र के रूप में काम करता है, और विभिन्न देशों के रिसर्च जहाज अक्सर फ्यूल के लिए वहां के बंदरगाहों पर रुकते हैं तो चीनी जहाजों को भारत से बार-बार हस्तक्षेप और रुकावट का सामना क्यों करना पड़ता है? कई सवाल खड़े होते हैं.'
चीनी अखबार ने प्रोपेगैंडा फैलाते हुए लिखा है कि भारत श्रीलंका में चीनी जहाजों को ठहरने से रोककर अपनी क्षेत्रीय आधिपत्यवादी मानसिकता को दिखा रहा है. चीनी अखबार ने लिखा है, 'भारत हिंद महासागर को अपना समुद्र मानता है. इससे भी ऊपर भारत दूसरे देशों के हितों और अन्य देशों के साथ उनके सहयोग की उपेक्षा करता है, और जब भी मौका मिलता है, दूसरे संप्रभु देशों के फैसलों में हस्तक्षेप करता है- बस ये साबित करने के लिए कि- दक्षिण एशिया भारत का क्षेत्र है और चीन जिसे भारतीय एक दुश्मन के रूप में देखता है, वो हिंद महासागर से दूर रहे. हम 21वीं सदी में जी रहे हैं लेकिन फिर भी भारत की मानसिकता शीत युद्ध के दौर में ही अटकी हुई है.'
भारत की बढ़ती ताकत से बौखलाया चीनी अखबार
चीन के मुद्दे पर अमेरिका हमेशा से भारत के पक्ष में रहा है और क्षेत्र में चीन की आधिपत्यवादी नीतियों का विरोध करता आया है. इस बात पर भी ग्लोबल टाइम्स ने अपनी खोखली नाराजगी दिखाई है.
शंघाई इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल स्टडीज के रिसर्च फेलो झाओ गैनचेंग के हवाले से चीनी अखबार ने लिखा कि अमेरिका भारत को लुभाकर अपनी इंडो-पैसिफिक रणनीति को बढ़ावा दे रहा है और इसी कारण भारत की क्षेत्रीय आधिपत्यवादी मानसिकता तेजी से मजबूत हो रही है.
ग्लोबल टाइम्स ने आगे लिखा कि नरेंद्र मोदी की सरकार के सत्ता में आने के बाद, भारत ने खुले तौर पर नेबरहुड फर्स्ट नीति का प्रस्ताव रखा और पड़ोसी देशों में अपना निवेश बढ़ाया. भारत अलग-अलग देशों में अपना प्रभाव अलग-अलग स्तर तक बढ़ा चुका है और इसलिए इसके पड़ोसियों का स्वतंत्र रूप से काम करना चुनौतीपूर्ण हो रहा है.
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि भारत नेबरहुड फर्स्ट की नीति धीरे-धीरे 'इंडिया फर्स्ट' में परिवर्तित हो गई है.
भारत श्रीलंका के बुरे वक्त का साथी, फिर क्या कह रहा ग्लोबल टाइम्स
श्रीलंका पिछले कुछ सालों से गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है जिसे देखते हुए भारत ने उसकी खूब मदद की है. साल 2022 में भारत ने श्रीलंका के लिए कई बार मदद का ऐलान किया था. मार्च 2022 में भारत ने खाद्य उत्पादों, दवाओं और बाकी जरूरी सामानों की खरीद के लिए श्रीलंका को एक अरब डॉलर का कर्ज देने का ऐलान किया था. इसके लिए श्रीलंका ने भारत का आभार जताया था. दोनों देशों के बीच की यह दोस्ती चीनी अखबार को रास नहीं आ रही और उसका कहना है कि भारत श्रीलंका की कमजोरी का फायदा उठा रहा है. जबकि चीन पर अक्सर आरोप लगता है कि वह गरीब देशों को कर्ज के जाल में फंसाकर उनकी रणनीतिक पूंजियों पर कब्जा कर लेता है.
ग्लोबल टाइम्स लिखता है, 'श्रीलंका आर्थिक मुश्किलों से गुजर रहा है, ऐसे में अन्य देशों के साथ श्रीलंका के सहयोग में हस्तक्षेप करना इसकी कमजोरी का फायदा उठाना है, जो नैतिक रूप से गैर-जिम्मेदाराना है. यह अंतरराष्ट्रीय संबंधों को नियंत्रित करने वाले बुनियादी मानदंडों के खिलाफ है.'