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श्रीलंका: सिर्फ अर्थव्यवस्था ही नहीं, लोकतांत्रिक मूल्य भी गिरे हैं

श्रीलंका गंभीर आर्थिक और राजनीतिक संकट से जूझ रहा है. श्रीलंका की अर्थव्यवस्था तो मुश्किल में है ही, देश के लोकतांत्रिक मूल्यों में भी पिछले कुछ साल में गिरावट आई है.

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sri lanka crisis
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स्टोरी हाइलाइट्स
  • 2018 के बाद बिगड़ते चले गए हालात
  • डेमोक्रेसी इंडेक्स में भी आई है गिरावट

श्रीलंका पतन की कगार पर खड़ा है. आर्थिक उथल-पुथल और वित्तीय व्यवधानों के कारण श्रीलंका के 21 मिलियन लोगों की स्थिति लगभग अनिश्चित हो गई है. यह मनमाने नीतिगत फैसलों, आयात पर देश की अधिक निर्भरता और घटते विदेशी भंडार के कारण हुआ है. देश के पास अब ऋण पर ब्याज का भुगतान करने के लिए भी पर्याप्त धन नहीं बचा है.

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यह हालात तब हैं, जब श्रीलंका का बढ़ता कर्ज 50 अरब डॉलर के आंकड़े को भी पार कर गया है. देश में ईंधन की किल्लत के कारण एंबुलेंस तक का परिचालन प्रभावित हो रहा है. प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति भवन में बैठे हैं और राष्ट्रपति कहां है, इसका पता नहीं है. श्रीलंका में केवल आर्थिक हालात ही खराब नहीं हुए हैं, लोकतांत्रिक मूल्य भी कम होते जा रहे हैं.

संकट कैसे आया

श्रीलंका में साल 2009 में गृह युद्ध की समाप्ति हुई. गृह युद्ध की समाप्ति के बाद श्रीलंका की सरकार ने आर्थिक विकास पर ध्यान देना शुरू किया. हालांकि, साल 2018 के बाद हालात और खराब हो गए जब देश को एक बड़े संवैधानिक संकट का सामना करना पड़ा. साल 2018 के अंत में, राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने तत्कालीन प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को बर्खास्त कर दिया और उनकी जगह महिंदा राजपक्षे को नियुक्त कर दिया.

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श्रीलंका में प्रधानमंत्री पद पर महिंदा राजपक्षे की नियुक्ति के बाद साल 2019 में जनता को लुभाने के लिए सरकार ने व्यापक आयकर कटौती की शुरुआत की. व्यापक आयकर कटौती की वजह से सरकार को राजस्व का भारी नुकसान हुआ और नतीजा ये हुआ कि विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आने लगा. रही-सही कसर कोरोना की महामारी ने पूरी कर दी. कोरोना महामारी की वजह से श्रीलंका का फलता-फूलता पर्यटन उद्योग ठप हो गया.

साल 2021 में सरकार की ओर से लिया गया एक और फैसला श्रीलंका के लिए आत्मघाती साबित हुआ. श्रीलंका सरकार ने रासायनिक उर्वरकों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया. श्रीलंका की सरकार ने स्थानीय जैविक उर्वरकों के उपयोग को बढ़ावा देने का फैसला किया. नतीजा ये हुआ कृषि उत्पादन पर भी विपरीत असर पड़ा.

लोकतांत्रिक मूल्यों में गिरावट

स्वीडन स्थित वी-डेम इंस्टीट्यूट के अनुसार, साल 2018 के बाद से श्रीलंका में लिबरल डेमोक्रेसी इंडेक्स (एलडीआई) में लगातार गिरावट आई है. इंस्टीट्यूट की परिभाषा के अनुसार, एलडीआई राज्य और बहुसंख्यकों के अत्याचार के खिलाफ व्यक्तिगत और अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा करने पर केंद्रित है. यह 2018 में पिछले 50 वर्ष के अपने उच्चतम स्तर पर था जब इसका मूल्य 0.48 था. हालांकि, 2018 के अंत में जब देश एक अभूतपूर्व संवैधानिक संकट से गुजरा, एलडीआई नीचे चला गया.

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वी-डेम संस्थान की नवीनतम रिपोर्ट डेमोक्रेसी रिपोर्ट 2022: ऑटोक्रेटाइजेशन चेंजिंग नेचर इस साल की शुरुआत में आई थी. इस रिपोर्ट में कहा गया कि, "श्रीलंका में परिवर्तन राष्ट्रपति राजपक्षे और उनके परिवार के सदस्यों के तहत सत्ता को केंद्रीकृत करने के लिए संवैधानिक संशोधनों के माध्यम से कार्यकारी शक्ति पर नियंत्रण को हटाने के लिए उठाए गए कदम को दर्शाता है."

डेमोक्रेसी इंडेक्स में भी आई गिरावट

एलडीआई के अलावा, इलेक्टोरल डेमोक्रेसी इंडेक्स भी 2018 के बाद गिर गया. यह शासकों को नागरिकों के प्रति उत्तरदायी बनाने के मूल मूल्य को मापता है. रिपोर्ट के मुताबिक श्रीलंका में लोकतांत्रिक सूचकांकों के साथ-साथ नागरिक समाज की मजबूती को मापने वाले कोर सिविल सोसाइटी इंडेक्स में भी गिरावट आई है. 2018 में यह अपने चरम पर था, जब इसकी वैल्यू 0.89 थी. हालांकि, इसके तुरंत बाद ही इसमें गिरावट शुरू हो गई थी. साल 2021 में यह इंडेक्स 0.43 पर था.

वी-डेम की पिछली रिपोर्ट के अनुसार, श्रीलंका में लोकतांत्रिक सूचकांकों में गिरावट के कई कारणों में से एक यह भी था कि किस तरह से देश ने कोरोना वायरस की महामारी के दौरान कई नए प्रतिबंध लगाकर और नियमों का उल्लंघन करके लोकतांत्रिक मूल्यों को गिराने का प्रयास किया.

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