श्रीलंका की राजनीति में लंबे समय से मौजूद राजपक्षे परिवार के सदस्यों ने एक-एक कर इस्तीफा दे दिया. सबसे पहले 9 मई को तत्कालीन प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने इस्तीफा दिया. इसके एक महीने बाद 9 जून को तत्कालीन वित्त मंत्री बासिल राजपक्षे ने इस्तीफा दे दिया. फिर एक महीने बाद यानी 9 जुलाई को प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के आवास पर हमला कर दिया. ऐसे में सवाल ये कि क्या राजपक्षे परिवार के लिए 9 नंबर अभिशाप है?
श्रीलंका की सत्ता के शिखर पर दशकों से राजपक्षे परिवार का राज है. राजपक्षे परिवार के तीन भाई कुछ महीने पहले तक श्रीलंका की सत्ता पर राज कर रहे थे. राजपक्षे परिवार पर आरोप लगते रहे हैं कि उन्होंने देश की अर्थव्यवस्था को तबाह कर दिया है.
राजपक्षे परिवार ने ऐसे शुरू की थी अपनी राजनीति
कहा जाता है कि राजपक्षे परिवार में सियासत की शुरुआत 1930 के दशक में हुई. राजपक्षे परिवार के डॉन डेविड राजपक्षे सबसे पहले सरपंच चुने गए. डेविड राजपक्षे के बेटे डॉन मैथ्यू राजपक्षे 1936 में हंबनटोटा जिला परिषद चुने गए. डॉन मैथ्यू की मौत के बाद उनके भाई डॉन एल्विन 1945 में हुए उपचुनाव में निर्विरोध जीते.
1947 में संसदीय चुनाव में राजपक्षे परिवार के डॉन एल्विन बेलिएट्टा से सांसद चुने गए. डॉन एल्विन की 9 संतानें (छह लड़के और तीन लड़कियां) थीं. इसमें सबसे बड़े थे चामल, दूसरे नंबर पर महिंदा, फिर जयंती, टुडोर, गोटबाया, बासिल, प्रीति, डुडले और गांधीनी.
एल्विन की मौत के बाद उनके बेटे महिंदा राजपक्षे ने राजनीति शुरू की. साल 2005 में महिंदा राजपक्षे देश के राष्ट्रपति चुने गए. इसके बाद राजपक्षे परिवार के लोग सत्ता के महत्पपूर्ण पदों पर काबिज हो गए. महिंदा राजपक्षे ने अपने छोटे भाई और तत्कालीन राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को डिफेंस सेक्रेट्री नियुक्त कर दिया. उन्होंने अपने एक और छोटे भाई बासिल राजपक्षे को राष्ट्रपति का मुख्य सलाहकार नियुक्त किया.
साल 2010 में महिंदा फिर से राष्ट्रपति चुने गए. सबसे बड़े भाई चमल राजपक्षे को भी सत्ता में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया और वो कई बार मंत्री रहे. इसे लेकर राजपक्षे परिवार पर परिवारवाद, निरंकुशता और सरकारी संसाधनों के गलत इस्तेमाल के आरोप लगने लगे. एक वक्त कहा जाने लगा कि राजपक्षे परिवार देश की 70 फीसद बजट पर प्रत्यक्ष नियंत्रण रखता है.
इन्हीं आरोपों-प्रत्यारोपों के बीच साल 2015 का राष्ट्रपति चुनाव महिंदा राजपक्षे हार गए. लेकिन साल 2019 में फिर से राजपक्षे परिवार श्रीलंका के सबसे बड़े पद पर काबिज हुआ. इस बार महिंदा राजपक्षे के भाई गोटाबाया राजपक्षे राष्ट्रपति चुने गए. उनके सत्ता में आते ही भाई महिंदा राजपक्षे प्रधानमंत्री चुन लिए गए.
राजपक्षे परिवार ने श्रीलंका की कैसे लगाई लंका
महिंदा राजपक्षे- 2005 से 2015 तक राष्ट्रपति रहे. 2015 में मैत्रिपाला सिरिसेना को हराकर प्रधानमंत्री बने. महिंदा पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे. श्रीलंका एयर फोर्स का आरोप था कि राष्ट्रपति चुनाव के दौरान महिंदा और उनके परिवार ने जनता के पैसे का इस्तेमाल अपनी निजी यात्रा के लिए किया. मई 2015 में विदेश मंत्री मंगला समरवीरा ने आरोप लगाया कि राजपक्षे परिवार की विदेशों में 18 अरब डॉलर की संपत्ति है. आरोप के बाद जनता सड़कों पर उतरी, तब महिंदा ने पीएम पद से इस्तीफा दे दिया था.
गोटबाया राजपक्षे- गोटबाया महिंदा के छोटे भाई हैं. वे श्रीलंका के राष्ट्रपति हैं. राजनीति में आने से पहले सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल रहे हैं. 2015 में इंटरपोल ने खुलासा किया कि गोटबाया के रक्षा सचिव रहते हुए सैन्य खरीद में 10 मिलियन डॉलर का घोटाला हुआ था. मार्च 2015 में श्रीलंका की एक कोर्ट ने सैन्य जहाज का इस्तेमाल करने पर गोटबाया के ट्रैवल पर बैन लगा दिया था. गोटबाया पर मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप भी लगते रहे हैं.
बासिल राजपक्षे- बासिल श्रीलंका के वित्त मंत्री रहे हैं. वे भी महिंदा के छोटे भाई हैं. बासिल पर भी भ्रष्टाचार के आरोप और सरकारी संपत्तियों के दुरुपयोग के आरोप लगते रहे हैं. सरकारी ठेकों में कथित कमीशन लेने की वजह से उन्हें मिस्टर 10 परसेंट कहा जाता है. महिंदा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहते हुए बासिल पर कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट में फंड का गलत इस्तेमाल करने का भी आरोप लगा है. 2016 में एक कोर्ट ने बासिल के 16 एकड़ में बने लग्जरी विला को नीलाम करने का आदेश दिया था.