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कंगाल हो चुके श्रीलंका में भारतीय कंपनियों ने 6 महीने में लगा दिए 270 करोड़ रुपये

साल 1948 में आजाद हुआ श्रीलंका अब तक के सबसे बुरे आर्थिक संकट से जूझ रहा है. श्रीलंका को इस संकट से उबारने में भारत उसकी मदद कर रहा है. इस साल 3.5 अरब डॉलर से ज्यादा की मदद भारत कर चुका है.

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1948 में आजाद हुआ श्रीलंका गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है. (फाइल फोटो-PTI)
1948 में आजाद हुआ श्रीलंका गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है. (फाइल फोटो-PTI)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • दिसंबर-मई तक 270 करोड़ रुपये का निवेश किया
  • 2021-22 में दोनों में 50 हजार करोड़ का कारोबार

पड़ोसी देश श्रीलंका गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है. वहां लोगों को खाने-पीने की वस्तुएं और दवा जैसी बुनियादी चीजें भी नहीं मिल पा रही हैं. 

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श्रीलंका को इस आर्थिक संकट से निकालने में भारत 'पड़ोसी पहले' नीति के तहत मदद कर रहा है. भारत इस साल अब तक 3.5 अरब डॉलर यानी 27 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की मदद कर चुका है. इसके अलावा खाने-पीने का सामान और दवाओं जैसी बुनियादी जरूरतों को भी पूरा कर रहा है. 

इतना ही नहीं, श्रीलंका के केंद्रीय बैंक को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को जो 1 अरब डॉलर का भुगतान करना था, उसे भी अभी टाल दिया है. साथ ही भारत ने श्रीलंका को 40 करोड़ डॉलर का भुगतान अपनी ही करंसी से करने को कहा है. आरबीआई का कर्ज लौटाने के लिए श्रीलंका को भारत ने 3 महीने का समय भी दे दिया है.

दो दिन पहले यानी 16 जुलाई को ही भारत ने श्रीलंका को राशन भेजा है. श्रीलंका में स्थित भारतीय उच्चायोग के मुताबिक, 8 करोड़ श्रीलंकाई रुपये का सूखा राशन दिया गया है. 

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भारत ऐसे हालात में श्रीलंका की मदद कर रहा है, जब वहां अब तक का सबसे बुरा आर्थिक संकट है. अर्थव्यवस्था चौपट हो चुकी है और इस वजह से लोगों के पास अब खाने-पीने का सामान भी नहीं बचा है.

वर्ल्ड फूड प्रोग्राम का कहना है कि श्रीलंका के 63 लाख लोग खाने के संकट से जूझ रहे हैं. अगर जल्द ही कुछ नहीं किया गया, तो वहां हालात बद से बदतर होने में देर नहीं लगेगी. वर्ल्ड फूड प्रोग्राम के मुताबिक, अभी भी वहां 67 लाख लोग ऐसे हैं जो सही डाइट नहीं ले रहे हैं और 53 लाख लोगों ने खाना कम कर दिया है. 

गहरे आर्थिक संबंध हैं दोनों में

- साल 2000 में भारत और श्रीलंका के बीच फ्री ट्रेड एग्रीमेंट हुआ था. इसके बाद से हर साल भारत-श्रीलंका के बीच कारोबार बढ़ता जा रहा है. दोनों ही देश एक-दूसरे के बड़े ट्रेडिंग पार्टनर हैं. 

- इस समझौते के अमल में आने के बाद श्रीलंका के कुल एक्सपोर्ट में भारत की हिस्सेदारी बढ़कर 60% से ज्यादा हो गई. हालांकि, भारत के एक्सपोर्ट में श्रीलंका की हिस्सेदारी अब भी काफी कम है. 

- कॉमर्स मिनिस्ट्री के आंकड़ों के मुताबिक, 2021-22 में भारत ने श्रीलंका में 43,333 करोड़ रुपये का सामान एक्सपोर्ट किया था. जबकि, इस साल श्रीलंका से महज 7,530 करोड़ रुपये का सामान खरीदा था. 

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विदेशी निवेश भी बढ़ रहा

- भारत बड़ा कारोबारी देश तो है ही, साथ ही श्रीलंका में विदेशी निवेश (FDI) करने में भी आगे है. कई भारतीय कंपनियों ने श्रीलंका में निवेश किया हुआ है. 

- श्रीलंका के बोर्ड ऑफ इन्वेस्टमेंट (BOI) के मुताबिक, 2005 से 2019 के बीच श्रीलंका में भारतीय कंपनियों ने 1.7 अरब डॉलर का निवेश किया था. ये रकम कितनी बड़ी है इसे इससे समझा जा सकता है कि श्रीलंका का कुल विदेशी मुद्रा भंडार इस समय तकरीबन इतना ही है.

- भारतीय कंपनियां श्रीलंका में पेट्रोलियम, टूरिज्म, होटल, मेनुफैक्चरिंग, रियल एस्टेट, टेलीकॉम, बैंकिंग और फाइनेंशियल सर्विस में निवेश करती हैं. 

- आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक, बीते 6 महीने में भारतीय कंपनियों ने श्रीलंका में 3.4 करोड़ डॉलर यानी करीब 270 करोड़ रुपये का निवेश किया है. इनमें से ज्यादातर रकम श्रीलंकाई कंपनियों को कर्ज के तौर पर दी गई है. ये आंकड़े दिसंबर 2021 से मई 2022 से बीच के हैं.

श्रीलंका पर संकट के 4 बड़े कारण

- चीन से नजदीकियां: 2015 में महिंदा राजपक्षे की सरकार आने के बाद से चीन से नजदीकियां बढ़ीं. चीन ने इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश के नाम पर भारी कर्ज दिया. कर्ज के बोझ तले श्रीलंका के आर्थिक संकट के पीछे चीन को बड़ी वजह माना जा रहा है. 

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- कर्जा बढ़ाः श्रीलंका पर विदेशी कर्ज लगातार बढ़ता गया. श्रीलंका के केंद्रीय बैंक के मुताबिक, 2010 में देश पर 21.6 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज था, 2016 में बढ़कर 46.6 अरब डॉलर हो गया. अभी श्रींलका पर 51 अरब डॉलर से ज्यादा का कर्ज है. 

- विदेशी मुद्रा भंडार में कमीः ज्यादा कर्ज लेने और कम कमाई होने से श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से कम हुआ. अप्रैल 2018 में करीब 10 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार था, जो मई 2022 तक घटकर 1.7 अरब डॉलर का हो गया. 

- टूरिज्म पर मारः श्रीलंका की अर्थव्यवस्था काफी हद तक टूरिज्म पर निर्भर है. कोरोना की वजह से टूरिज्म पर बहुत बुरी मार पड़ी है. श्रीलंका की GDP में टूरिज्म और उससे जुड़े सेक्टरों की हिस्सेदारी 10% के आसपास है. विदेशी पर्यटकों के न आने से भी विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आई.

 

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