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Sri Lanka Economic Crisis: क्या रानिल विक्रमसिंघे लौटा पाएंगे श्रीलंका के अच्छे दिन? भारत के रहे हैं करीब

Sri Lanka Economic Crisis: रानिल विक्रमसिंघे श्रीलंका के नए प्रधानमंत्री बन गए हैं. विक्रमसिंघे भारत के करीब रहे हैं. प्रधानमंत्री बनने के बाद उनकी सबसे बड़ी चुनौती श्रीलंका को इस आर्थिक संकट से निकालने की है.

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73 साल के रानिल विक्रमसिंघे चार बार श्रीलंका के प्रधानमंत्री रहे हैं. (फाइल फोटो-PTI)
73 साल के रानिल विक्रमसिंघे चार बार श्रीलंका के प्रधानमंत्री रहे हैं. (फाइल फोटो-PTI)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • बतौर पीएम 4 बार भारत आ चुके हैं विक्रमसिंघे
  • विक्रमसिंघे ने कहा, भारत से रिश्ते बेहतर होंगे
  • श्रीलंका को आर्थिक संकट से निकालने की चुनौती

Sri Lanka Economic Crisis: श्रीलंका में आर्थिक संकट के बीच रानिल विक्रमसिंघे (Ranil Wickremesinghe) नए प्रधानमंत्री बन गए हैं.उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती क्या है? वो सभी को पता है. उनके कंधों पर श्रीलंका को आर्थिक संकट से निकालने का जिम्मा है. विक्रमसिंघे भारत के अच्छे दोस्त रहे हैं. उनके प्रधानमंत्री बनने पर भारतीय उच्चायोग ने कहा कि भारत श्रीलंका की नई सरकार के साथ काम करने को उत्सुक है.

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विक्रमसिंघे चौथी बार है श्रीलंका के प्रधानमंत्री बने हैं. हालांकि, वो कभी भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके हैं. विक्रमसिंघे यूनाइटेड नेशनल पार्टी (UNP) के सांसद हैं. 2020 के चुनाव में यूएनपी ने मात्र एक सीट जीती थी और वो सीट थी विक्रमसिंघे की. 

आर्थिक संकट की वजह से देश में हुए हिंसक प्रदर्शनों के बाद इसी हफ्ते महिंदा राजपक्षे (Mahinda Rajapaksa) ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद से ही रानिल विक्रमसिंघे के नाम की चर्चा शुरू हो गई थी. गुरुवार को राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे (Gotabaya Rajapaksa) ने उन्हें प्रधानमंत्री नियुक्त किया.

विक्रमसिंघे को अक्टूबर 2018 में तत्कालीन राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने प्रधानमंत्री पद से हटा दिया था. फिर दो महीने तक चली उठापठक के बाद सिरिसेना ने उन्हें वापस इस पद पर बहाल कर दिया था. 

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श्रीलंका में बुनियादी चीजों की भी कमी पड़ रही है. (फाइल फोटो-PTI)

भारत से बेहतर होंगे श्रीलंका के संबंध

रानिल विक्रमसिंघे को भारत का करीबी माना जाता है. जबकि, महिंदा राजपक्षे चीन के करीबी थे. राजपक्षे की सरकार में ही श्रीलंका पर कर्ज बढ़ता गया. राजपक्षे की सरकार के दौरान श्रीलंका ने चीन से करीब 7 अरब डॉलर का कर्ज लिया. इसने श्रीलंका को आर्थिक संकट में ढकेल दिया.

मौजूदा आर्थिक संकट के बीच विक्रमसिंघे के प्रधानमंत्री बनने पर भारतीय उच्चायोग ने ट्वीट कर कहा कि श्रीलंका के लोगों के प्रति भारत का कमिटमेंट जारी रहेगा. उच्चायोग ने कहा कि भारत श्रीलंका में राजनीतिक स्थिरता की उम्मीद करता है और श्रीलंका के प्रधानमंत्री के रूप में रानिल विक्रमसिंघे की सरकार के साथ काम करने के लिए तत्पर है.

वहीं, विक्रमसिंघे का कहना है कि उनकी सरकार में भारत से रिश्ते और बेहतर होंगे. श्रीलंका की स्थानीय मीडिया के अनुसार, गुरुवार शाम को शपथ लेने के बाद जब उनसे भारत-श्रीलंका रिश्तों को लेकर सवाल पूछा गया तो विक्रमसिंघे ने कहा कि 'रिश्ते और बेहतर होंगे.'

विक्रमसिंघे के प्रधानमंत्री रहते हुए भारत और श्रीलंका के रिश्ते मजबूत रहे हैं. प्रधानमंत्री के तौर पर विक्रमसिंघे चार बार भारत का दौरा कर चुके हैं. उन्होंने अक्टूबर 2016, अप्रैल 2017, नवंबर 2017 और अक्टूबर 2018 में भारत का दौरा किया था.

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उन्हीं की सरकार में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने भी दो बार श्रीलंका की यात्रा की थी. विक्रमसिंघे की सरकार में भारत ने श्रीलंका की 1990 एंबुलेंस सिस्टम सेट अप करने में मदद की थी. कोरोना के दौरान ये सेवा बेहद मददगार साबित हुई.

श्रीलंका को आर्थिक संकट से निकालने में भारत में भी मदद कर रहा है. भारत अब तक 3.5 अरब डॉलर की मदद कर चुका है. इसके अलावा खाने-पीने का सामान, ईंधन और दवाओं जैसी जरूरी चीजें भी भेज रहा है. भारत की मदद पर कुछ दिन पहले रानिल विक्रमसिंघे ने आभार जताया था. उन्होंने कहा था कि भारत ने हमारी बहुत मदद की है. वो आर्थिक मदद के अलावा दूसरे तरीकों से भी मदद कर रहा है. इसलिए, हमें उनका आभारी होना चाहिए.

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केरोसिन खरीदने के लिए लाइन में खड़े लोग. (फाइल फोटो-PTI)

क्या श्रीलंका को संकट से निकाल पाएंगे विक्रमसिंघे?

श्रीलंका इस वक्त अपने सबसे बुरे आर्थिक संकट से जूझ रहा है. वहां खाने-पीने का सामान और दवाओं जैसी बुनियादी चीजों की कीमतें आसमान छू रहीं हैं. लोग सड़कों पर उतर आए हैं और वहां हिंसक प्रदर्शन हो रहे हैं. 

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1948 में आजाद हुआ श्रीलंका दिवालिया हो चुका है. उसका विदेशी मुद्रा भंडार लगभग खाली हो चुका है. श्रीलंका के केंद्रीय बैंक के मुताबिक, अप्रैल 2022 तक विदेशी मुद्रा भंडार में सिर्फ 2 अरब डॉलर से भी कम हो गया है. विदेशी मुद्रा भंडार खाली होने से श्रीलंका आयात नहीं कर पा रहा है. 

श्रीलंका पर 51 अरब डॉलर से ज्यादा का कर्ज है. इसमें से 10 फीसदी अकेले चीन का है. 2021 तक श्रीलंका पर उसकी जीडीपी का 105% तक का कर्ज है. उसकी मुद्रा तेजी से गिरती जा रही है और एक डॉलर का भाव 360 श्रीलंकाई रुपये से ज्यादा हो गया है.

ऐसे में विक्रमसिंघे के पास श्रीलंका को इस आर्थिक संकट से निकालने की सबसे बड़ी चुनौती है. स्थानीय मीडिया के मुताबिक, शपथ लेने के बाद विक्रमसिंघे ने कहा कि मैंने श्रीलंका को आर्थिक संकट से निकालने की चुनौती ली है और मैं अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाकर रहूंगा.

 

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