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श्रीलंका: खाने के लिए कुछ नहीं, भूखे बच्चों के सामने रोजा का बहाना करने को मजबूर महिला

श्रीलंका में लोगों को एक वक्त का खाना तक नसीब नहीं हो पा रहा. माताएं अपने बच्चों से रमजान का बहाना कर रही हैं ताकि वो तीन वक्त खाना न मांगे बल्कि सुबह के वक्त कुछ खाकर सारा दिन गुजार दें. बच्चे भूख के कारण इधर-उधर रोते दिखाई दे रहे हैं.

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श्रीलंका में जरूरी खाद्य वस्तुओं की भारी कमी है (Photo- Reuters)
श्रीलंका में जरूरी खाद्य वस्तुओं की भारी कमी है (Photo- Reuters)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • श्रीलंका में खाद्य वस्तुओं की कमी
  • बढ़ती महंगाई से भूखे रहने पर मजबूर लोग
  • भूख से बिलख रहे बच्चे

श्रीलंका में खाद्य संकट गहराता जा रहा है जिसकी मार वहां के आम लोगों पर पड़ रही है. लोग भुखमरी का शिकार हो रहे हैं. तीन वक्त के बजाए केवल एक वक्त का खाना ही जुटा पर रहे हैं.

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श्रीलंका की राजधानी कोलंबो से सटे इलाके में रहने वाली फातिमा अरूज की कहानी रुला देने वाली है. उन्होंने भुखमरी संकट के बीच अपने दो छोटे बच्चों से ये झूठ बोल रखा है कि रमजान का महीना है इसलिए सबको उपवास रखना है.

खाना नहीं तो बच्चों से किया रमजान का नाटक

उन्होंने खलीज टाइम्स को बताया, 'मैंने अपने बच्चों से कहा है कि ये रमजान का महीना है और इसलिए हम उपवास कर रहे हैं. इन्हें कुछ और मत बता दीजिएगा.' 

फातिमा के बच्चों की उम्र 5 वर्ष और 6 वर्ष है. उनके 36 साल के पति दिहाड़ी मजदूरी करते हैं और वो डिप्रेशन के शिकार रहे हैं. फातिमा अपने बच्चों को तीन वक्त का खाना नहीं खिला सकतीं इसलिए उन्हें अपने बच्चों से झूठ बोलना पड़ रहा है कि रमजान के कारण उपवास रखा जा रहा है.

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फातिमा कहती हैं, 'हम तड़के सुबह अपना उपवास तोड़ने के बाद सादा दलिया, पानी में भिगोए हुए चावल और प्याज का इंतजाम कर पाते हैं. इससे बच्चे चुप रहते हैं.'

गांव के गांव भुखमरी के कगार पर

चरमराती अर्थव्यवस्था वाले श्रीलंका में फातिमा अकेली नहीं हैं, जो अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रही हैं. उत्तर-पश्चिमी श्रीलंका के कल्पितिया इलाके में, जो दुनिया के सबसे खूबसूरत समुद्र तट स्थलों में से एक है, सभी गांव भुखमरी झेल रहे हैं.

तीन बच्चों की सिंगल मदर रहमत नियास अपने रोते हुए बच्चों से घिरी हैं. वो कहती हैं, 'हम अब ज्यादातर समय भूखे रहते हैं. कुछ लोग दया करके हमें खाने के लिए मछलियां दे जाते हैं, उसी से हम पेट भरते हैं. मैं जितना कमाती हूं, वो अब भोजन खरीदने के लिए पर्याप्त नहीं है.'

इस इलाके के फूस के घरों में, मछुआरे और मजदूर रहते हैं.

कोविड ने तोड़ दी श्रीलंका की कमर

पर्यटन पर निर्भर ये द्वीप कोविड -19 महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुआ है. आलोचक इस बदहाली के लिए सरकार को दोष दे रहे हैं.

आयात पर निर्भर श्रीलंका विदेशी मुद्रा डॉलर की कमी का सामना कर रहा है. इस कारण श्रीलंका दिवालिया होने के कगार पर आ गया है. मुद्रास्फीति रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है. देश में खाने-पीने के वस्तुओं की कमी हो गई है जिससे महंगाई आसमान छू रही है और लोगों को भरपेट भोजन नहीं मिल पा रहा.

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श्रीलंका को 2022 में 7 अरब डॉलर कर्ज का भुगतान भी करना है. 18 जनवरी तक सरकार को  50 करोड़ डॉलर और जुलाई में 1 अरब डॉलर चुकाने होंगे.

कोलंबो गजट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, श्रीलंका पिछले दशक से लगातार दोहरे घाटे का सामना कर रहा है- राजकोषीय घाटा और व्यापार घाटा. 2014 के बाद से, श्रीलंका पर विदेशी ऋण का बोझ बढ़ रहा है और 2019 में ये सकल घरेलू उत्पाद का 42.6 प्रतिशत तक पहुंच गया.

2019 में देश का कुल विदेशी कर्ज 33 अरब डॉलर आंका गया था, जो श्रीलंका पर एक बड़ा बोझ है.

सबसे कम सीसी रेटिंग

अमेरिकी क्रेडिट रेटिंग एजेंसी फिच ने पिछले महीने श्रीलंका को सबसे कम सीसी रेटिंग दी थी. वर्षों से अपने बढ़ते विदेशी कर्ज के बावजूद कभी भी श्रीलंका के दिवालिया होने की नौबत नहीं आई. लेकिन ये रेटिंग श्रीलंका के लिए एक बड़ा झटका था. अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इस साल श्रीलंका के उस साफ-सुथरे रिकॉर्ड का अंत हो सकता है कि वो कभी दिवालिया नहीं हुआ. 

IMF से मदद लेने से श्रीलंका का इनकार

श्रीलंका के अर्थशास्त्री समेत अंतर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्री भी मांग कर रहे हैं कि सरकार अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से कर्ज लेकर इस स्थिति से बाहर निकलने की कोशिश करे लेकिन बुधवार को सरकार ने IMF से मदद लेने से इनकार कर दिया.

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एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सेंट्रल बैंक के गवर्नर, अजीत निवार्ड कैब्राल ने मीडिया से कहा कि देश आईएमएफ में जाने के बजाय चीन से नया कर्ज लेना पसंद करेगा जिसका वो पहले से ही बहुत अधिक ऋणी है.

उन्होंने कहा, 'आईएमएफ कोई जादू की छड़ी नहीं है. इस समय अन्य विकल्प आईएमएफ में जाने से बेहतर हैं.'

पिछले रविवार को श्रीलंका-चीन द्विपक्षीय संबंधों के 65 साल पूरे होने के मौके पर राष्ट्रपति गोटाभाया राजपक्षे ने चीनी विदेश मंत्री वांग यी के साथ देश के  चीनी कर्ज को पुनर्निर्धारित करने की मांग की थी. चीन श्रीलंका का सबसे बड़ा कर्जदाता है. श्रीलंका पर 35 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज है. देश पर चीन का 4 अरब डॉलर का कर्ज है.

भारत भी श्रीलंका को कर्ज देकर उसकी मदद कर रहा है लेकिन केवल यही दो देश श्रीलंका की मदद नहीं कर रहे बल्कि श्रीलंका कई और देशों का कर्जदार है.

कई देश दे रहे श्रीलंका को कर्ज

जून में बांग्लादेश ने श्रीलंका को 20 करोड़ डॉलर मुद्रा अदला-बदली के तहत उधार दिया. ईरान और कतर से भी श्रीलंका ने कर्ज लिया है. इन सबके बावजूद भी श्रीलंका देश में खाद्य और ऊर्जा संकट को रोक नहीं पाया है.

झींगा किसान शेवंता रत्नायके कहते हैं, 'बिजली कटौती से हमारी उत्पादन लागत 50 प्रतिशत से अधिक बढ़ गई है क्योंकि अब हमें जनरेटर चलाना पड़ता है. इसके साथ ही डॉलर की कीमत बढ़ने के कारण झींगा के लिए आयातित भोजन की लागत बढ़ गई है. हमें नुकसान हो रहा है. हम आगे ये काम नहीं कर पाएंगे और मुझे नहीं पता कि आगे क्या करना है.'

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आयात पर निर्भर श्रीलंका

श्रीलंका चावल, चीनी और दूध पाउडर सहित अपनी बुनियादी खाद्य आपूर्ति को पूरा करने के लिए भी आयात पर बहुत अधिक निर्भर है. विदेशी मुद्रा के खत्म होने और श्रीलंकाई रुपये में 11.1 प्रतिशत से अधिक की गिरावट के कारण आवश्यक वस्तुओं की कीमत बढ़ गई है. नवंबर में कम ब्याज दरों को बनाए रखने के लिए सरकार द्वारा रिकॉर्ड पैसे की छपाई के बाद श्रीलंका में महंगाई और बढ़ गई.

पिछले साल अप्रैल में, राष्ट्रपति राजपक्षे ने घोषणा की कि श्रीलंका में पूरी तरह से जैविक खेती होगी और श्रीलंका हरित अर्थव्यवस्था वाला दुनिया का पहला देश बनेगा. उन्होंने रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और खरपतवारनाशी के आयात और उपयोग पर तुरंत प्रतिबंध लगा दिया. आयातित उर्वरक पर प्रतिबंध लगाने का प्रतिकूल असर किसानों और खेती पर पड़ा. इस वजह से भी खाद्यान्न की और कमी हो गई.

31 अगस्त को, सरकार ने आपातकाल की स्थिति घोषित कर दी और लोगों को कम कीमत पर राशन देना शुरू किया. लेकिन इससे कालाबाजारी बढ़ी जिसके बाद गोदामों से माल जब्त करने और किसानों को अनाज सरकार की एजेंसी को बेचने के लिए मजबूर करने के लिए सेना को तैनात किया गया. सब्जियों की कीमतें 400 प्रतिशत से अधिक बढ़ी जिसके बाद आम लोगों की थाली से सब्जियां गायब होने लगीं.

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लोग भुखमरी के कगार पर हैं. फातिमा कहती हैं, 'पिछले हफ्ते स्कूल शुरू हो गए हैं, लेकिन मैं बच्चों को स्कूल नहीं भेज पाऊंगी. मैं खाने का खर्चा तो उठा नहीं सकती फिर उनके यूनिफॉर्म और किताबों के लिए पैसे कहां से लाऊंगी.' 

 

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