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श्रीलंका की संसद ने PM राजपक्षे को दिखाया बाहर का रास्ता, 10 पॉइंट में समझें पूरी कहानी

श्रीलंका के राष्ट्रपति सिरिसेना ने रानिल विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री के पद से हटाने के बाद नए प्रधानमंत्री के रूप में महिंदा राजपक्षे की नियुक्ति की थी, लेकिन जब उनको लगा कि संसद में राजपक्षे को बहुमत नहीं मिलेगा, तो उन्होंने संसद भंग कर दी थी.

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महिंदा राजपक्षे (फाइल फोटो - रॉयटर्स)
महिंदा राजपक्षे (फाइल फोटो - रॉयटर्स)

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श्रीलंका में जारी राजनीतिक संकट खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. सुप्रीम कोर्ट के बाद अब संसद ने राष्ट्रपति सिरिसेना को तगड़ा झटका दिया है. बुधवार को श्रीलंका की संसद ने राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना द्वारा नियुक्त प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को बाहर का रास्ता दिखा दिया है.

साल 2015 के चुनाव में लंबे समय से राष्ट्रपति रहे राजपक्षे को सिरिसेना और विक्रमासिंघे ने मिलकर हराया था. साल 2015 में राष्ट्रपति पद के लिए सिरिसेना और राजपक्षे एक दूसरे के प्रतिद्वंदी थे, लेकिन अब दोनों साथ आ गए हैं. वहीं, उस समय सहयोगी रहे सिरिसेना और विक्रमसिंघे एक दूसरे के खिलाफ हो गए हैं.

बताया जा रहा है कि पिछले कुछ समय से दोनों नेताओं के बीच मनमुटाव चल रहा था. विक्रमसिंघे कई फैसले बिना सिरिसेना से सलाह किए ही ले रहे थे और सिरिसेना उनको खारिज कर रहे थे.

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बुधवार को श्रीलंकाई संसद ने राजपक्षे और उनके नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित कर दिया है. संसद में अविश्वास प्रस्ताव पारित होने के साथ ही महिंदा राजपक्षे पीएम पद से बाहर हो गए हैं. 10 पॉइंट में समझिए श्रीलंका में सत्ता संघर्ष का पूरा मामला-

1- 26 अक्टूबर को श्रीलंकाई राष्ट्रपति सिरिसेना ने रानिल विक्रमसिंघे को हटाकर महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्री नियुक्त किया था. हालांकि जब उनको लगा कि संसद में महिंदा राजपक्षे को बहुमत नहीं मिलेगा, तो उन्होंने संसद को ही भंग कर दिया था.

इसको श्रीलंका की कई राजनीतिक पार्टियों और चुनाव आयोग के सदस्य प्रोफेसर रत्नाजीवन हूले ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. इनकी याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने संसद भंग करने के राष्ट्रपति के फैसले को पलट दिया था.

2- 26 अक्टूबर के बाद पहली बार बुधवार को श्रीलंकाई संसद की बैठक बुलाई गई. संसद के स्पीकर कारू जयसूर्या ने घोषणा की कि 225 सदस्यीय संसद में बहुमत ने महिंदा राजपक्षे के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन किया है. उन्होंने राजपक्षे समर्थकों के विरोध के बीच घोषणा करते हुए कहा, 'मतदान के बाद अब साफ हो गया है कि महिंदा राजपक्षे सरकार के पास बहुमत नहीं है.'

3- बुधवार को अविश्वास प्रस्ताव के दौरान राजपक्षे के समर्थकों ने संसद की कार्यवाही बाधित करने की भी कोशिश की. राजपक्षे के समर्थकों के कार्यवाही बाधित करने के बीच स्पीकर ने ध्वनिमत के आधार पर मतों की गणना की. इसके बाद बृहस्पतिवार सुबह 10 बजे तक के लिए सदन की बैठक स्थगित कर दी गई.

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4- रानिल विक्रमसिंघे की यूनाइटेड नेशनल पार्टी (UNP) के उप नेता सजित प्रेमादासा ने बताया कि संसद में महिंदा राजपक्षे सरकार बहुमत साबित करने में विफल रही है. अब राजपक्षे को पद छोड़ना होगा, क्योंकि संसद में उनके पास बहुमत नहीं है.

5- मंगलवार को श्रीलंकाई सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति सिरिसेना के संसद भंग करने के विवादित फैसले को पलटने दिया था और पांच जनवरी को चुनाव कराने की तैयारियों पर रोक लगा दी थी. इसके बाद ही स्पीकर जयसूर्या ने बुधवार सुबह संसद का यह आकस्मिक सत्र बुलाया गया था.

6- मंगलवार को श्रीलंका की शीर्ष अदालत ने कहा था कि सिरिसेना के संसद भंग करने के फैसले पर सात दिसंबर तक के लिए रोक लगाई जाती है. इस बाबत अंतिम आदेश सुनाने से पहले राष्ट्रपति के फैसले के खिलाफ दायर सभी याचिकाओं पर अगले महीने सुनवाई की जाएगी.

7- प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को हटाने के बाद राष्ट्रपति सिरिसेना ने 16 नवंबर तक के लिए संसद स्थगित कर दी थी. हालांकि अपने इस कदम के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय और घरेलू दबाव के कारण उन्हें 14 नवंबर को सदन की बैठक बुलाने की अनुमति देनी पड़ी थी.

8- अपदस्थ प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे की यूनाइटेड नेशनल पार्टी (UNP), मुख्य विपक्षी पार्टी तमिल नेशनल अलायंस (TNA) और वामपंथी जनता विमुक्ति पेरामुना (JVP) उन 10 समूहों में शामिल रहे, जिन्होंने शीर्ष अदालत में याचिकाएं दायर कर संसद भंग करने के राष्ट्रपति सिरिसेना के कदम को अवैध ठहराने की मांग की थी.

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याचिकाकर्ताओं में चुनाव आयोग के सदस्य प्रोफेसर रत्नाजीवन हूले भी शामिल रहे. इसके अलावा गैर सरकारी संगठन ‘सेंटर फॉर पॉलिसी ऑल्टरनेटिव्ज’ (CPA) ने भी राष्ट्रपति के कदम को चुनौती देने के लिए एक याचिका दायर की थी.

9- वहीं, श्रीलंकाई राष्ट्रपति ने संसद भंग करने के अपने फैसले का बचाव किया था. उन्होंने कहा था कि प्रतिद्वंद्वी सांसदों के बीच झड़पों से बचने के लिए यह फैसला लिया गया है. मीडिया में कुछ खबरें आईं थी कि 14 नवंबर को शक्ति परीक्षण के दौरान नेताओं के बीच झड़पें होंगी. ये याचिकाएं श्रीलंकाई सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस नलिन पेरेरा, न्यायमूर्ति प्रसन्ना जयवर्द्धने और न्यायमूर्ति प्रियंथा जयवर्द्धने की पीठ के समक्ष पेश की गई थीं.

10- 225 सदस्यीय सदन में बहुमत के लिए कम से कम 113 सांसदों के समर्थन की जरूरत होती है. राजपक्षे के खिलाफ 122 सांसदों ने अविश्वास प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए. वहीं, राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना की अगुवाई वाले यूनाइटेड पीपुल्स फ्रीडम अलायंस (यूपीएफए) ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया.

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